Wednesday, 3 July 2019

किस रिश्ते में बाँधू तुमको!

तुझसे दूर लेकिन बेहद क़रीब तुमसे,
मुश्किल हो रहा ये रिश्ता निभना हमसे,
तुम क्या लगते मेरे ज़माना पूँछें मुझसे,
नही सूझता कि लोगों को समझाऊँ कैसे।

ये संगत पुरानी, पसंद तेरे तरीक़े हमको,
रहना संग मेरा तेरे नहीं पसंद किसी को,
रिश्तों को नाम देना ज़रूरी है क्या, कोई बताए हमको,
नही समझ पा रहा किस रिश्ते में बाँधू तुमको ।

सोचते तो हैं मगर...

सोचते तो हैं मगर
मगर मेरे बस में नहीं
नहीं कर सकते हम
हम ख़यालों में बुनते
बुनते चाँद सितारे
सितारों का आँचल
आँचल में चेहरा
चेहरा ऐसा कि परे कल्पना
कल्पना में क्या जीना
जीना क्या तेरा बिना
बिना तेरे अब कुछ और नही सोचना
सोचते तो हैं मगर!

उड़ान...

ज़माने के लोहे की चोट खाकर,
वक़्त की भट्टी में खुदको पिघलाकर,
सब्र के साँचे में मैंने ख़ुद को ढाला है,
झेलकर सारी मुश्किलों की तपिश,
इरादों को यूँ फ़ौलाद मैंने किया है,
कि उड़ने को हूँ तैयार और अब,
आसमाँ मेरे परों में आ गया है।

कोई ख़्वाहिश नही!

कोई ख़्वाहिश नही
ऊँचाई की
चाहत केवल एक
पहचान की
उम्मीदों से भरा जीवन
रहे व्यस्त हरदम
रोज़ नयी शुरुवात हो
तुमसे एक ख़ास बात हो
बस इतना सक्षम रहूँ
सबकी ज़रूरतों में हाज़िर हरदम रहूँ
रहूँ बिंदास रहे कोई तनाव नही
और कोई ख़्वाहिश नही।

माँ

माँ जब तुमने मुझे छुवा था,
जीवन का तब संचार हुआ था ।
आकर दुनिया में मैंने जब खोली अपनी आँखें
चेहरा देख तेरा मुझको तब पहला प्यार हुआ था ।
रोना गाना चीख़ना चिल्लाना सभी शिकायत तुझसे थी
तूने हंस कर मेरी हर हरकत पर जमकर लाड़ लुटाया था ।
चलना बोलना खाना खेलना सब कुछ तेरा दिया हुआ
भुलकर सोना जागना  माँ तूने ख़ुद को भी भुलाया था।
मैन क्या कर पाउँगा अकेले अब भी दिल घबराता है
दिल ढूँढ़े तुझे जब जब ख़तरा कोई मँडराता है।
जुड़ी रहे ये डोर सदा तू रहे हमेशा क़रीब मेरे ,
मैं शेर ज़माने में तब तक जब तक पीछे तेरा सहारा था।

उनका असर!

गरम हवाएँ चारो तरफ़, चल रही लू हर तरफ़,
नही समझ पा रहे मिज़ाज, मौसम के जानकार हर तरफ़,
कोई हमसे पूछे वजह, कि वो आज ही गए हैं शहर छोड़कर,
इसलिए नाराज़ होकर चल रही हैं गरम हवाएँ हर तरफ़।

सब कुछ सम्भव है, तू धरा को उँगलियों पर उठा कर तो देख,
समय भी ठहरता है, तू उनकी ज़ुल्फ़ों की छांव में बैठकर तो देख।

कुछ दिखता नही इतनी काली रात है, कहीं ये अमावस तो नही ,
अँधेरा ही अँधेरा हर तरफ़ कहीं ये, उनके ज़ुल्फ़ों की छांव तो नहीं।

आज़मा लो!

आग अभी बाकी है कि नही
जांच कर के देख लो कि
खुराफ़ात बाकी है कि नही
तुम सोच रहे हो कि समय बदल गया
वो पहले वाला आनंद बाकी है कि नही
समय निकालो और कभी मुलाकात तो करो
तब तो पता चलेगा कि पहले जैसी गर्मी बाकी है कि नहीं।