Thursday 9 May 2019

एक बात बोलूँ...

एक बात बोलूँ
मैं इन आँखों से
तुम समझ लेना
अपनी आँखों से।
इशारों में बता देना
दे देना एक मुस्कान
न कोई राज खोलना
बेवजह क्या बोलना।

मेरे हमसफ़र आओ

मेरे हमसफ़र आओ
आओ साथ चलें
चलें हम बहुत दूर
दूर इतने कि न रहें मजबूर
मजबूर क्यों रहना
रहना इतने पास
पास इतने कि हो साँसे महसूस
महसूस करें इक दूजे को आओ
आओ मेरे हमसफर आओ।

सफ़र

मुसाफ़िर ही तो थे रास्तों से रुककर दिल्लगी क्या करते ,
कोई हाल पूछने वाला भी तो न था पैर पसार कर भी क्या करते।

उनकी नज़रों से मिल जायें ये नज़रें इससे ज़्यादा क्या चाहते,
फ़क़त इश्क़ ही तो है कोई शहर तो नहीं जो हम यहाँ बस जाते।

थका हूँ, बहुत दूर से आया हूँ इक लम्बा सफ़र तय करके,
ज़ुबान से दर्द बयाँ करूँ ज़रूरी तो नहीं, ये पैरों के छाले क्या कुछ नहीं बताते।

दहलीज़ पर तिरे दी है दस्तक, बहुत मज़बूर थे हम अपने दिल के वास्ते,
वरना हर गली में मशहूर है तेरे दिलों से खेलने के क़िस्से, तुझे इस दिल से खेलने का मौक़ा क्यूँ देते।

अब तेरा इंतज़ार नही...

खुद से ईमानदार बहुत थे,आदतन जिम्मेदार बहुत थे,
बेईमानी का तो सवाल ही न था, तुम रुके होते तब तो कुछ कहते।
तुमने आवाज न दी और न किया इंतज़ार और सफर में आगे चल दिये,
दिल को मनाया और रास्ते बदल दिए हमने, बेगैरत तेरा इंतज़ार क्या करते।

मिट्टी के घर याद आते है ....

बेमतलब का सबसे मिलना जुलना था,
रिश्ते वो पक्के बहुत याद आते हैं।
गर्मी की छुट्टी वो दादी-नानी का गाँव,
आम के बाग और ताल-तलैया याद आते हैं।
तपती गर्मी, भरी दुपहरिया और सखी-सहेलियाँ
सावन की ऋतु के वो झूले याद आते हैं।
छत पर सोना और वो बूढ़े पीपल की सरसराहट
खुले आसमान में वो तारे याद आते हैं।
चाचा के संग रात में खेतों को पानी देना,
भूत-पिशाचों की वो कहानियां याद आती है।
पेड़ों पर चढ़ना उतरना और ढेर सारी मस्ती,
खुद से तोड़े वो आम और जामुन याद आते हैं।
वो वर्षा ऋतु की पहली बारिश और जमकर भीगना
वो सोंधी खुशबू और मिट्टी के घर याद आते हैं।

Monday 6 May 2019

अब चैन नहीं ........


सोचता हूँ क्या लिखूँ ?
“क्या लिखूँ“ अब इस पर भी लिखूँ ।

कुछ न सोचूँ अब, तो इसके लिए भी सोचूँ ,
ज़िन्दगी के दर्शन के दर्शन को सोचूँ ।

भीड़ में रहूँ तो तनहाई के लिए सोचूँ ,
और तनहा होने पर क्यूँ हूँ तनहा ये सोचूँ ।

बातों का ट्रानजिस्टर लिए घूमता हूँ,
पर शुरूवात कहाँ से करूँ ये सोचूँ।

जी भरकर देखने को जी चाहता है और,
अब सामने हो तो क्या देखूँ मैं ये सोचूँ।

ज़िन्दगी की दौड़ में मैं सबसे आगे रहना चाहता हूँ,
और ज़िन्दगी में इतनी भागम-भाग क्यूँ है, मैं ये सोचूँ।

बेचैन रहने की फ़ितरत है तेरी आनंद,
और आता क्यूँ नहीं चैन मैं ये सोचूँ।

जिंदगी से यारी रख।

मन में न कोई बीमारी रख
सब से बात चीत जारी रख ।

कोई इतना भी बुरा नही इस जहां में,
तू बुराई में अच्छाई की खोज जारी रख।

जिंदगी के हर मोड़ पर मिलेंगे नए लोग,
तू गैरों में अपनों की पहचान जारी रख।

दीवाने हो जाये लोग तेरे,
बातों में अपने गज़ब की मस्ती रख।

दौलत बेहिसाब जमाने में,
तू अपनी जेब खाली तो रख।

कुछ जाएगा तभी कुछ आएगा,
तू इस लेन देन की कला में संतुलन रख।

खिंचते चलें आएंगे लोग तेरे पास,
इतना खुद में आकर्षण रख।

सब कुछ संभव है तुझसे,
तू अपने किरदार में ईमानदारी रख।

बड़ी मुश्किल से मिलती है ये जिंदगी,
बरक़रार तू इस जिंदगी से यारी रख।

दिल धड़क के रह गया....

कंचन काया चमकीली आँखें,
देखें ऐसे जैसे भीतर तक झांकें ।
चाँदी सी आभा वो न जाने कहाँ से लाए,
पड़ जाएँ जो सामने तो पलके मेरी झुक जाएँ।
वो बला की ख़ूबसूरत है क़ातिल हैं निगाहें,
वो हक़ीक़त है दिल इसे मान ही न पाए ।
सोच कर जिसे ये तन बदन सिहर सा गया,
वो यूँ आ गए सामने कि दिल धड़क के रह गया।

Thursday 2 May 2019

कितने काम अधूरे रह गए!

जब से हम किसी काम के लायक हुए,
समय का ठिकाना नही इतने व्यस्त हुए।
जब कोशिशों में थे तब जी भर के जिए,
ऊंचाई पर तो सपने सभी अधूरे रह गए।
घुमक्कड़ी ये दिल था जब चाहा चल दिए,
अब कहाँ जाए बस मन मसोस कर रह गए।
समय अपना था पल भर में पूरी उम्र जिए,
इस गुलामी में उम्र पूरी पल में गुजार गए।
दूसरों को संभालने में खुद की सुध लेना भूल गए,
नाम तो हमने खूब कमाया पहचान अपनी भूल गए।
ये करेंगे वो करेंगे कामों की लिस्ट लंबी बनाते रह गए,
बस ख्याल ही बुनते रहे कितने काम अधूरे रह गए।

लापता हूँ कब से मैं!

लापता हूँ कब से मैं,
ढूढ़ने को तुझे जो निकला मैं।
जगह अनजान नई हैं गलियाँ सभी,
अब नहीं पता कि कहा हूँ मैं।
न तेरा नाम और न गली का पता,
कैसे पूछूँ तेरे घर का पता मैं।
बगल से गुजरो हो जाये दीदार तेरा,
तू रहती आस पास, हूँ पक्का मैं।
सिग्नल मिल रहे मेरे राडार में है तू,
तेरे विकिरणों को पकड़ने में माहिर मैं।
मुझे पहचानोगे नही बस ये समझ लो,
तेरा दीवाना हूँ तुझसा ही दिखता मैं।
बेसब्र हो रहा हुई बहुत देर अब,
तेरी खोज में कब से लापता मैं।

तुम्हारे बाद...

तुम्हारे बाद
केवल
तुम्हारी याद
और कुछ नही
बस निर्वात
नीरवता
अकेलापन
आंसुओं से भरी
गमगीन
दो आंखें
खोजेंगे तुमको
तुम्हारे बाद!

सब में एक हुनर होता है!

सब में एक हुनर होता है,
जिसका अपना ही एक असर होता है।
उसकी एक मुस्कान में इतना क़हर होता है,
उस जादू पर न किसी झाड़-फूंक का असर होता है।
दिल पर लगता है जब उसके नैनों का तीर,
उस घाव पर पर न किसी दवा का असर होता है
साथ चल दे तो वही सुहाना हर सफर होता है,
हर किसी में एक हुनर होता है।

चुपचाप गुज़र जाओ....

न रुको चलते जाओ
सफर कंटीला बहुत बचते जाओ
राह दुर्गम बहुत मगर बढ़ते जाओ
देख पैरों के छाले यूँ न घबराओ
नही कोई शजर कि ठहर पाओ
मत हो दुखी कि हंसते जाओ
समय लंबा इंतजार का इसका लुत्फ उठाओ
वो देखो सामने मंजिल कि कदम जरा तेज बढ़ाओ
अब खत्म सारी अड़चने कि अब ठंड पाओ
भूलकर दर्द सारे चुपचाप गुज़र जाओ।

नदी के दो किनारे हम!

नदी के दो किनारे हम,
नज़रों में रहकर भी दूर हम।
जग जानता कि इक दूजे के हम,
फिर भी मिलने को तड़पते हम।
नदी सा चंचल मन, अधीर चितवन,
यही नियति नही हमारा मिलन।
नदी के दो किनारे हम।

तुम बिन...

रात दिन
मुस्कुराये बिन
रहे गमगीन
समय में इन
सुकूँ न चैन
क्या बताऊँ
जिया कैसे
और रहा
हालातों में किन
तुम बिन।

आओ किसी दिन
बुलाये बिन
पल रहे छिन
करो इन्हें
मुकम्मल मोमिन
लगो गले
महसूस करो
धड़कनों को इन
जीवन नीरस ये
तुम बिन।

हाथों की लकीरों में.....

हाथों की लकीरों में,
लिखा सब कुछ है।
जी लो खुलकर कि सब कुछ पहले से तय है,
लिखे को बदलने की कोशिश कर, परेशान क्यूं होना हैं।
न कर शिकायत कि मदद को कोई नही है,
ये तेरी जिंदगी है तुझे खुद ही लड़ना है।
खुदा की मर्जी है हर घटना में,
तुझे सबसे खुद निपटना है।
ले अल्लाह का नाम और भर हिम्मत कि,
कश्ती तूफानों से पार तुझे खुद करना है।

तू अगर इज़ाज़त दे!

एक गुस्ताखी सरे आम कर दूँ,
भरी महफ़िल तेरा नाम ले लूँ।

सिफ़ारिश पर ये उँगली मैं तेरी ओर कर दूँ,
तेरे चेहरे के नूर से मैं शमा ये रोशन कर लूँ।

नाम के संग तेरे मैं अपना नाम जोड़ दूँ,
चाहने वालों से तेरे मैं पंगा मोल ले लूँ।

लोगों के ज़ुबान पर ये चर्चा आम कर दूँ,
तेरी मेरी यह कहानी मैं अपने नाम कर लूँ।

अब वो बात न थी!

बरसों बाद बात हुयी तो करने को कोई बात न थी,
न कोई सवाल न जवाब और न ही कोई शिकायत थी।

दो दिल थे बेहद नज़दीक थे लेकिन अब धड़कनों में वो कशिश न थी,
हाथों में हाथ होते थे जब साथ थे लेकिन अब साथ चलने की हिम्मत न थी।

जुदा थे दूर शहरों में रहते थे लेकिन शहरों में इतनी भी दूरियाँ न थी,
मिलने की कोशिशें कर सकते थे लेकिन अब पास आने की तड़प न थी।

मिले तो आँखो में पहली सी चमक थी लेकिन किरदारों में वो बात न थी।
फिर से बन सकती थी कहानी नयी लेकिन लिखने को क़लम में मेरे स्याही न थी।