Saturday 31 August 2019

ख्यालों-बेख़यालों में....

रात की इस बेख़याली में इक ख़्याल ऐसा आ जाए....
बंद आँखों में नींद आए न आए, बस चेहरा तेरा आ जाए ।

इस लम्बी और सुनसान सड़क पर इक मोड़ ऐसा आ जाए....
घूमने को जब भी मैं तनहा निकलूँ और तुझसे मुलाक़ात हो जाए ।

ज़िंदगी तो काटनी ही है, कट रही है और कट ही जाएगी....
अगर तेरे साथ कट जाए तो बस जीने में मज़ा ही आ जाए ।

रंगों को बदलते ख़ूब देखा है और धोखे भी हमने हज़ार खाए....
इक साथ तेरा सच्चा था अब और किस पर भरोसा किया जाए।

खुदा करे काश कि इन ग़ैरों में कोई अपना नज़र आ जाए....
चेहरों की इस बेतहाशा भीड़ में चेहरा तेरा नज़र आ जाए ।

आओ मिलकर इन घड़ी की सुइयों को उलटा घुमाया जाए....
आगे तो जुदाई है कि उस पुराने हसीन दौर में फिर से वापस चला जाए ।

Friday 23 August 2019

कशमकश !

आज सुबह उठा तो फिर एक अफ़सोस के साथ,
कुछ याद नही, न जाने किस नशे में गुज़र गयी कल की शाम भी !

एक हम है जो दिल के ज़रा मासूम हैं ,
चालाकी तो सीखी लेकिन, दुनियादारी में कल हम फिर पीछे रह गए !

मिलना जुलना तो एक आम बात होती थी पहले,
उनका यूँ मुस्कुराना आम तो नही, कल की मुलाक़ात के मायने हज़ार होंगे !

रोज़ कुछ नया सीखने की ख़्वाहिश रखता हूँ,
मैं हार जाता हूँ फिर भी, खेल पुराना ये और इसमें पैंतरे अधिक है ।

मदद को लोग साथ हज़ार हैं मेरे,
हाथ जुड़ते नही मेरे, और लोग मुझसे ख़्वाहिशें ख़ूब रखते हैं !

कई बार गिरा हूँ मैं इस दौड़ में,
मैं डूबता हूँ क्यूँकि ज़िंदा हूँ, लाश होता तो ये नौबत ही न आती।

बस ये कहकर मैं ख़ुद को थाम लेता हूँ,
तू पीछे ही सही पर कोई ग़म नही, तेरे तो ख़ुद के नाम में आनन्द बहुत है ।

Friday 16 August 2019

बात वही...

दौर बदला, सोच बदली ,
आनन्द वही, बस परिस्थितियाँ बदलीं।

तासीर वही, मिज़ाज नए ,
कहानी वही, बस काग़ज़ नए।

भीड़ नयी, जगह नयी, 
लेकर चले, सभी दोस्त पुराने वही।

रास्ते नापे, मंज़िलें भी पायी,
आँखों में लेकिन, पुराने सपने वही।

इजाज़त हो, तो कह दूँ,
दिल में दबी, पुरानी बात वही।

Friday 9 August 2019

आज तक...

सड़क सी है ये जिंदगी अपनी,
न जाने कितनों से वास्ता आज तक।
गुजरती भीड़ हज़ारों की मगर,
सड़क फिर भी तन्हा है आज तक।

बीती इस उम्र में न जाने,
मुलाकात कितनों से हुयी आज तक।
जीवन के इस सफर में बहुत मिले
पल-पल के हमसफ़र आज तक।

काम जब तक, ये साथ तब तक,
मतलबों के सब साथी आज तक।
अब तो बहरूपिया शब्द बेमतलब है
न जाने कितने रूप लिए आज तक।

तुम जो मिले चेहरे पर लेकर मुस्कान,
देखी नही ऐसी चासनी आज तक।
सामने तुम थी और हाथों में ट्रे चाय की थी,
रिश्ता ऐसा जुड़ा कि ऐसा फेविकॉल नही बना आज तक।

तन्हाई की क्या बिसात थी तुम्हारे आने के बाद,
पल भर सोचने को भी नही मिला आज तक।
बेमतलब लड़ाइयों का सिलसिला जो चला,
खुदा कसम, बदस्तूर जारी है आज तक।

एक लखनवी की लव स्टोरी.....

वो इमामबाड़ा ही तो था जहां तुझसे नैन मिलें थे,
भूल भुलैया की दीवारों में हम दुनिया भूल गए थे।

सूरत तेरी आंखों में लेकर फिर तुझे ढूढ़ने निकले थे ,
चौक चौराहे से लेकर चूड़ी वाली गली तक खूब भटके थे।

लखनऊ यूनिवर्सिटी से लेकर शिया कॉलेज तक हर सड़क छानी थी,
इस चक्कर में दोस्तों को शर्मा की न जाने कितनी चाय पिलाई थी।

मुलाकात की उम्मीद में हमने नज़राना खरीद लिया था,
इस चक्कर में अमीनाबाद की तंग गलियों को हमने नाप लिया था।

बालाघाट से लेकर यहिया गंज तक हर गली को हमने नापा था,
छतर मंजिल, रेजीडेंसी और ग्लोब पार्क,उन दिनों अपना यही ठिकाना था।

केसरबाग़ चौराहे से निकले हर रास्ते को देख चुके थे ,
इरादे बहुत मजबूत थे पर अब हम उम्मीद खो चुके थे।

थक हार कर, यारों को लेकर उस शाम हम कुड़िया घाट पर थे,
कुछ मोहतरमाओं की टोली के संग तुम भी वहां मौजूद थे।

दिल की धड़कन बढ़ गयी थी न जाने कैसा जादू था,
थाम लिया था हाथ तेरा, मेरा खुद पर न कोई काबू था।

एक तरफ़ा प्यार की तुमको न कोई खबर थी ,
और हम भी बौड़म थे जो ये गुस्ताखी करी थी।

घबराकर तुमने शोर मचाया और फिर पुलिस चली आई थी,
और फिर  हमने पूरी रात ठाकुरगंज थाने में बिताई थी।

थाने आने का हमको कोई नही गिला था,
मार तो पड़ी किंतु तेरे घर का पता वहीं चला था।

फिर तो मिलने मिलाने का सिलसिला जो शुरू हुआ था,
साहू सिनेमा से लेकर हज़रत दरबार तक प्यार हमारा जवाँ हुआ था।

हाथों में हाथ लिए नीम्बू पार्क से लेकर चिड़िया घर तक घूमे थे,
यामाहा पर मेरी बैठ कर इक दूजे को हम महसूस किए थे।

दिलों की बेक़रारी को करार पहुचाने हम कुकरैल पार्क पहुँचे थे,
प्यार को परवान चढ़ाने हम इंदिरा डैम पहुचे थे।

आगे के अंजाम को लेकर तुम बेहद घबराए थे ,
इस कहानी के परिणाम को लेकर बेहद सकुचाए थे।

न घबराओ तुम कि हमारे मिलन का ये लखनऊ गवाह है ,
ये प्यार तब तक जवान रहेगा जब तक गोमती में प्रवाह है।

Friday 2 August 2019

नामकरण... (नवीन)

एक बार फिर मौका मिला नामकरण का......... यह कार्य पहली बार तो कठिन था ही किन्तु दूसरी बार तो यह नामुनकिन प्रतीत हो रहा था । इस बार तुम्हारे भाईसाहब भी थे जो हमेशा हमारी हर सोच पर प्रभाव डाल रहे थे। जैसे वो बड़े तुम छोटे, वो पहले तुम बाद में। बस इसी चीज से तुम्हे बचाना था। कोई बड़ा- छोटा या पहला-दूसरा नही था। तुम भी अपने भाईसाहब जैसे ही अद्वितीय हो। अपने आप में एक स्वतंत्र सत्ता और एक लाजवाब चरित्र। हाँ.....! एक चीज तो है कि तुम हम सभी में सबसे उन्नत हो। तुम्हारे भाईसाहब के सामने तुम्हारी माँ और मैं थे किंतु तुम्हारे सामने तुम्हारे भाईसाहब भी हैं जो एक अतिरिक्त घटक का कार्य करेंगे। तुम्हारी माँ इस बार तुम्हारे नाम का जिम्मा मुझ पर छोड़ कर अपनी दुनिया में मस्त है। कहती है कि मैं तुम दोनों का ख्याल रखूं या नाम ढूंढू। मैं बेचारा पूरी तरह फंस चुका था। घबराहट थी कि कहीं तुम्हारे साथ अन्याय न कर बैठूं इसलिए अपनी सफाई में इतना कुछ लिख रहा हूँ। अगली कुछ पंक्तियों में तुम्हारे नाम के पीछे की सोच को स्पष्ट करने की कोशिश करूंगा। बड़े होकर जब तुम इसे पढोगे तो शायद संतुष्ट हो जाओ! इसी आकांक्षा के साथ तुम्हारे नामकरण की कोशिश.....

संस्करण द्वितीय किन्तु संस्मरण प्रथम हो,
महत्वपूर्ण एक समान ये तुमको स्मरण हो।

तुलना किसी से नही तुम अतुलनीय हो,
बाद में आये हो किन्तु किरदार अद्वितीय हो।

बड़े, छोटे, पहले, दूसरे ये सब नही करेंगे ,
तुम्हारी हर इच्छा अनिच्छा का ख्याल हम करेंगे।

नामकरण मुश्किल था तुम्हारा हमेशा से हमारे लिए ,
जतन खूब किए किसी का प्रभाव न पड़ने के लिए।

बड़े भैया पहले से तैयार थे अपनी लिगेसी लिए,
मशक्कत करनी पड़ी उनके प्रभाव को कम करने के लिए।

आशीर्वाद तुमको मिलता रहे नीलिमा और आनन्द का,
साथ सदैव रहे तुम्हारे साथ निलिन्द के यथार्थ का।

उन्नत हो उन्नति करो, चरित्र ऐसा कि सब तुमको नमन करें।
झुकना कभी मत ये याद रहे, ईश्वर तुम्हारा उन्नयन करें।

*नवांश-उन्नयन निलिन्द*