Friday 16 September 2016

तेरा अक्स ........

तेरी माँ पहले भी परियों सी ख़ूबसूरत थी,
उसके सिवा मुझे कोई और हसरत न थी,
ये मेरी नज़रों का दोष है कि उसका कोई जादू ,
या उसने अपनी सूरत पर तेरी शक्ल ओढ़ ली है!

ज्यूँ ज्यूँ तेरी उम्र बढ़ रही है उसके भीतर,
त्युँ त्युँ वो अपने सभी रंग बदल रही है,
हूँ मैं अचम्भित देखकर उसके हुस्न की ये झलकियाँ,
ये वही है या उसने तेरी सारी अदाएँ ओढ़ ली हैं!

अभी तक वो मेरा प्यार मेरी ख़्वाहिश मेरी ख़ुशी थी,
मेरा जिस्म था एक पुतला और वो ज़िंदगी थी,
तुझसे पहले मेरे लिए वो स्वयं एक स्वतंत्र पहचान थी,
पर पिछले कुछ दिनों से उसने हमारे बच्चे के माँ के नाम की संज्ञा ओढ़ ली है !

यूँ तो उसका असर मुझ पर कभी कम न था,
फिर भी हिम्मत कर हम उससे लड़-झगड़ लेते थे,
किंतु बचता हूँ मैं अब नहीं कर पाता उससे सामना,
उसने अपने साथ तेरे संगत की चादर जो ओढ़ ली है !

तासीर हैं मेरी मस्तमौला और है लड़कों की फितरत,
करता हूँ ग़लतियाँ हमेशा है ग़ैर ज़िम्मेदाराना प्रकृति,
पर अब बदलना है खुदको लेनी है जिम्मेदारियाँ सभी,
क्यूँकि तेरी माँ ने मुझे बाप बनाने की ज़िम्मेदारी जो ओढ़ ली हैं!

विचारों के भव सागर में डूबता-उतराता हुआ, तेरे इन्तजार में- तुम्हारा पिता

Tuesday 13 September 2016

पदार्पण -एक संवाद

ये कल ही की तो बात है
जब तुम्हारी माँ ने
इशारों में
शरमाते हुए
अपनी कॉपीराइट और
ओरिजिनल मुस्कान के साथ
तुम्हारे पदार्पण के संकेत दिए थे।

एक पल को
समय ठहर सा गया था।
विस्मय, आश्चर्य, आनंद के
अनेक भावों के साथ
ये मन बीते समय की
कैलकुलेशन में लग गया।
अभी तो हम स्वयं बच्चे थे
लड़ते- झगड़ते
शिकायते करते
हमसे हमारे
बड़े भी परेशान थे।

इस खबर के साथ
समय को भी पंख लग गए,
हम अचानक से बड़े हो गए।
मन प्रफुल्लित, ह्रदय चिंतित
सब कुछ बदल जो रहा था
गजब का शोर
जैसे किसी पुराने भवन में
मरम्मत चल रही हो
कुछ नया जुड़ रहा था
एक नया रूप उभर रहा था
जिम्मेदारियां बढ़ रही थी
अपने पर गर्व हो रहा था
रिश्तों की सार्थकता बढ़ रही थी।

तुम्हारी माँ से जलन हो रही थी
तुम्हारे साथ का आनंद वो अभी से ले रही थी।
मैं लाचार भाव से उसे देख रहा था,
तुम्हारी माँ अब और ज्यादा
खूबसूरत लगने लगी थी।

तुम अपने पदार्पण से पहले
बहुत कष्ट देने वाले हो उसे
फिर भी वो खुश है,
लज्जा को त्याग
सबको खुशखबरी दे रही है,
मिठाइयां बाँट रही है।
और मैं कोने में खड़ा
शर्म से लाल
जड़ हुआ जा रहा हूँ।

प्रवीण ने छेड़ा मुझे
मुंह देखो इनका,
पापा बनेंगे ये, बड़े आये।
चारों तरफ से बधाई सन्देश
और मैं शब्द रहित
केवल मुस्कुराते हुए ,
मन ही मन
तुम्हारे स्वागत की तैयारी में लग गया।



तुम्हारे स्पर्श को आतुर, उस मंगल घडी के इंतजार में- तुम्हारा पिता।