Wednesday 23 December 2020

टमाटर

मेहनत का फल- टमाटर

बालकनी में की गई बागवानी का पहला टमाटर। इसके पहले बैंगन, नींबू, मिर्च, पालक, धनिया, मेथी और स्ट्राबेरी का रसास्वादन किया जा चुका है। ये स्ट्राबेरी का नाम सुनकर अधिकतर भारतीय पुरुषों के चेहरे पर कुछ शैतानी वाली मुस्कान आ जाती है.....खैर! 

रोज शाम को घर लौटने के बाद चाय-नाश्ता करके कुछ देर इस तरह बालकनी में अपनी मेहनत से तैयार बगीचे में बैठकर एक सुरूर सा चढ़ता है, बिलकुल अपनी पसंद की व्हिस्की के पहले पेग जैसा! चेहरे पर न चाहते हुए एक महीन सी मुस्कान आ जाती है। 

ये पोस्ट बालकनी से ही हो रहा है। टमाटर देखकर दिल आह्लादित है। टमाटर बहुत पसंद है। खाने का ज्यादा शौक नहीं मगर देखना पसन्द है। बस देखते जाना..... इतना तो मैंने तुम्हारे चेहरे को गौर से नहीं देखा होगा! देखो..... बुरा मत मानो मगर जो सच है सो है। तुमको इस तरह घूरता तो स्थिति असहज हो जाती। सामाजिक प्राणी हूँ तो लाज़मी है डर भी लगता है। 

वैसे बैठने के लिए उचित समय है और माहौल भी मगर क्या बताएँ..... साथ के सारे लौंडे जो पहले घोड़ा हुआ करते थे अब गधे हो गए हैं, मेरी तरह! तो साथ की उम्मीद भी जाती रही। 

नोट- स्त्रियों की खूबसूरती की व्याख्या के लिए उनकी तुलना फूलों की बजाय सब्जियों से करनी चाहिए थी...... थोड़ी सार्थकता और बढ़ जाती! 

क्यूँ क्या ख्याल है? देखो यार तुम फिर बुरा मत मान जाना! लो फिर फुला लिये गाल..... बिल्कुल टमाटर जैसे! अब कैसे बताएँ कि हमें टमाटर को निहारना बहुत पसंद है.........😉🤗

हा हा..!😂

#बागवानी
#टमाटर
#इश्क

अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२३.१२.२०२०

साथ ...

बढ़ती उम्र का देखो क्या अजब फलसफा है,
साथ छोड़कर निकल रहे हैं साथ चलने वाले।

वादा था कि हम मिलते रहेंगें हज़ार कोशिशें करके,
और अब देखो कि सारी कोशिश बहाने खोजने की हो रही।

तुम्हारे लिए तो ये कुछ पल, दिन, महीने ही गुजरें है,
और यहाँ तुम्हारे बिन हमारी तो सदियाँ गुज़र गयीं।

एक मासूम सूरत थी बिल्कुल भोली सी, हाँ तेरी ही तो थी,
तेरे बिछड़ने, फिर न मिलने से देखो आज भी बिल्कुल वैसी है।

बढ़ती उम्र का भी नही हुवा कोई असर आज तक देखो,
मेरे ख़्यालों में तेरा चेहरा आज भी पहले जैसा है।

एक ख्वाहिश थी साथ जीने-मरने की और अब कमाल तो देखो,
न हो मुलाकात उनसे अब हम इसकी दुवा दिन-रात करते हैं।

उम्र ही तो काटनी है, कट रही है, कट ही जाएगी,
साथ तेरा हो या तेरी यादों का, नशा एक बराबर है।

अनुनाद/यादों का आनन्द/२३.१२.२०२०

Sunday 20 December 2020

बागवानी

आज कल बागवानी का शौक चढ़ा है! एक आदमी के ज्यादा शौक नहीं होते। पद, शोहरत, पैसा और इश्क.... ! पूरा बचपन और जवानी इन्हीं चार चीजों के पीछे भागता है और पाने की कोशिश करता है। हमने भी की। सब कुछ तो मिला मगर शोहरत मिलना बाकी है। इतनी शोहरत चाहिए कि बाहर निकलूँ तो हर वक़्त लोगों से बच के निकलना पड़े। ऐसे शोहरत के बाद जब भी आपको सुकून के दो पल मिलेंगे उसकी कीमत क्या ही आँकी जाए। उन्हीं सुकून के पलों में हम बागवानी करेंगें। उसके लिए तो बागवानी सीखनी पड़ेगी...! तो बस उसी की तैयारी चल रही है......

निजी जीवन में खुद को प्रकृति के नजदीक ले जाना है और बस देते रहना ही सीखना है..... बाँटना है.... सब कुछ .... सब में ..... उसके पहले खूब बटोरना भी है 😜😆

मुन्नू (सिंह नर्सरी वाले) भैया को धन्यवाद🙏

अनुनाद/माली आनन्द/२०.१२.२०२०

Saturday 19 December 2020

अब दिल्ली दूर नहीं....

अब ज़िन्दगी अलग लेवल पर जीने का मन हो रहा है। शिक्षा, नौकरी, शादी, बच्चे, और ३० से अधिक उम्र के अनुभव से ये पता चला कि ये सब जीवन के लक्ष्य नहीं थे। ये सब तो केवल इंसान को व्यस्त रखने के तरीके भर थे। नौकरी तो कभी भी जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। इस पर एक नौकरी तो उम्र भर कभी नहीं करनी चाहिए। इसे जितनी जल्दी समझ लें उतना बेहतर। प्रतिदिन एक काम करके आप तालाब का पानी हो जाते हैं। 

अब सोच रहे हैं कि कोई व्यवसाय किया जाए और इतना कमा लें कि जीविकोपार्जन के साथ-२ सामाजिक जिम्मेदारियाँ भी निपट जाएँ। बस जिस दिन इतनी व्यवस्था हो गयी उसी दिन छोड़ देंगे नौकरी और आजाद हो जाएंगे दस से पांच के चक्र से। फिर तो भैया सुबह उठ कर प्राणायाम, स्नान, ध्यान और मस्त नाश्ता कर (बैकग्राउंड में देसी-देसी न बोल कर वाला गाना बजते हुए) ११ बजे तक अपने सारथी के आठ इंनोवा में अपनी हाईवे वाली दुकान पर....! एक-दो घंटे कर्मचारियों से पूरा लेख जोखा लिया गया और फिर दो-चार लोग जिनको मिलने का समय दिया गया था, उनके साथ मिलना और राजनीति की चर्चा। दोपहर में सेवक घर से गर्म-२ भोजन ले आया। हल्की धूप और पेड़ की छांव में तख्त पर बैठकर भरपूर भोजन करने के उपरान्त मस्त एक घंटे की नींद ली गयी। अब तक ३ बज चुके हैं। अब पास के लोकल बाजार में अपने कार्यालय जो कि कार्यालय कम और राजनीतिक चर्चा का अड्डा ज्यादा है, पर चलने का समय हो गया।

शाम का समय कार्यालय पर गुजारने के बाद दो तीन नया चेला लोग को जो लपक कर पैर छू लिए थे, सबको आशीर्वाद देने के बाद और अगले दिन की कार्य योजना पर मुहर लगा कर कार्यालय से प्रस्थान। शाम हो गयी है। दोस्तों के साथ बैठने का तय हुआ है आज का । अपने पसंदीदा रेस्तरां में बैठना है। ६ से ८ का समय , दोस्तों का साथ, व्हिस्की के दो पेग, और ढेर सारी गप्पों के साथ अगले चुनाव की चर्चा भी....

अब तो सांसद बनना ही है। संसद भवन में बैठना है। देश के केंद्र में। वहां से देखेंगे अपने गाँव जेवार को। अब दिल्ली बैठेंगे। लोग-बाग मिलने आएँगे। हम भी कुर्ता धोती में रंग चढ़ाए सबसे मिलेंगे। इतना मिलेंगे की जब तक दिन भर में ४००-५०० लोगों से न मिल लें तब तक चैन नहीं। प्रत्येक दिन कहीं न कहीं का टूर। नए नए लोगों से मिलना। राजनीति में ४०-५० उम्र का नेता तो युवा नेता कहलाता है तो जवान तो हम वहां रहेगें ही। बाकी बाल में कलर और मुंह पर फेशियल तो हम कराते ही रहेंगे। कहीं किसी मंच या रात्रि पार्टी में आपसे नज़रें मिल गयी तो.........! चेहरे पर रौनक तो होनी ही चाहिए😀 ! इसी मुलाकात में मुस्कान का आदान-प्रदान हो जाए और आंखों के इशारे से अगली मुलाकात भी तय हो जाए😜। बाकी हम इतने प्रसिद्ध तो रहेंगे ही कि आप हमारा पता ढूंढ लें😎। अब ज्यादा डिटेल में नहीं जाते हैं।

कुल मिलाकर अपने मन की ज़िन्दगी जीनी है। आजाद रहना है और लोक हित में खूब काम करना है लेकिन अपने शौक के साथ। व्यापक जिंदगी जीनी है, सीमित नहीं। तो अगला लक्ष्य संसद भवन। अब तो नया संसद भवन बन रहा है। हमारे सांसद बनने तक बन भी जाएगा 😋। जबसे नया वाला संसद भवन की तस्वीर देखें हैं, संसद जाने की इच्छा और प्रबल हो गयी है।

बाकी सांसद वाले भोकाल की चर्चा नहीं किये हैं इधर! अब हर चीज बताना जरूरी थोड़े ही है। आप लोग बहुत समझदार हैं। हमारा लालच तो भाँप ही लिए होंगे😆।

अब दिल्ली दूर नहीं। 
(आपका साथ और वोट जरूरी है)

अनुनाद/संसद की ओर आनन्द/१९.१२.२०२०




Wednesday 16 December 2020

एक दिन....

एक दिन

निकल लेंगे 

चुप-चाप 

बिना बताये 

कहाँ ? 

नहीं पता !

होकर मुक्त

जिम्मेदारियों के चंगुल से !

नहीं बंधेंगे 

दिन-रात के फेरे में 

१० से ५ में 

सब को खुश करने में 

ये सोचने में कि 

लोग क्या सोचेंगे !

समय की पराधीनता से मुक्त 

तोड़कर हर सीमाओं को। 


ख्वाहिश नहीं शेष 

कुछ पाने की 

ख्वाहिश केवल 

जीने की 

खुद को !

भले-बुरे से ऊपर 

गलत-सही से हटकर 

एक बेबाक जिंदगी 

होकर निडर 

सिर्फ सफर 

न कोई मंज़िल !

न कोई ठहराव !

न कोई पहचान !

ख़त्म हर लालसा । 


जीना है सिर्फ 

जिन्दगी को !

देखना है इसे 

बेहद करीब से 

रंगना है

इसके रंग में ! 

बह जाना है 

इसके बहाव में !

बिना विरोध 

इसका हर निर्णय 

होगा आत्मसात। 

 

कोई चिंता नहीं 

भविष्य की, 

जीना सिर्फ 

आज में,

कोशिश

पेट भरने की,  

खोज बस 

आश्रय की,  

इंतज़ार केवल 

नींद का, 

भरोसे प्रभु के  

स्मरण प्रभु का 

समर्पण प्रभु को  

कुछ और नहीं।  

 

होकर तटस्थ 

देना है मौका 

पानी को शान्त होने का 

तभी तो दिखेगा 

गहराई के अंत में 

वो आखिरी तल......... 

एक दिन 

निकल लेंगे बस 

उस आखिरी दिन से पहले !

 एक दिन ......... !


अनुनाद/आनन्द कनौजिया/ १६.१२.२०२०  




Thursday 10 December 2020

नज़र

किसी खास ने कुछ खास ही देखा,
नज़रों में भरकर बेहिसाब भी देखा,
नज़र पारखी ने तोल-मोल कर देखा,
साधारण से व्यक्ति को असाधारण देखा।

#suggestedbynilimaji

@अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१०.१२.२०२०

Wednesday 9 December 2020

काम और छुट्टियाँ

छुटियाँ कितनी होनी चाहियें, इस पर पुनः विचार करने की जरूरत है। मेरे अनुसार सप्ताह में चार दिन काम और तीन दिन छुट्टी होनी चाहिए। अब आप सोच रहें होंगे कि अब काम ही काहे करोगे , पूरी छुट्टी ही ले लो। ऐसा नहीं है। एक व्यक्ति की ज़िंदगी में कार्य के अलावा भी और कई ज़िम्मेदारियाँ होती है। जैसे पारिवारिक, सामाजिक, और स्वयं अपने लिए भी कुछ समय होना जरूरी है। 

चार दिन आदमी १०-१२ घंटे प्रत्येक दिन कार्य कर सकता है। मन लगाकर, जी तोड़कर। उसके बाद तीन दिन की छुट्टी में एक दिन व्यक्ति समाज के लिए रख ले। इसमें मित्र, रिश्ते-नाते, सामाजिक/राजनीतिक संगठनों से मिलना मिलना किया जा सकता है। दूसरा दिन परिवार के लिये। इसमें परिवार के साथ घर पर या बाहर जाया जा सकता है। परिवार के किस सदस्य के मन में क्या चल रहा है या फिर किस परिस्थिति से गुज़र रहा है ये सब समय देने से ही पता चलेगा। इससे आप परिवार को एक बेहतर आकर प्रदान कर सकते हैं। 

और अब तीसरा दिन! पूरा का पूरा अपना। किसी से मतलब नहीं। सारा दिन स्वयं की तैयारियों में। अगले हफ्ते सात दिनों में क्या पहनना है! कपड़ों को तैयार करना! चेहरा और शरीर पर ध्यान देना! तेज आवाज में गाने सुनना, मूवी देखना, किताब पढ़ना, खाना बनाना, अपनी गाड़ी को व्यवस्थित करना, खूब सोना, और फिर रात में अगले दिन ऑफिस की तैयारी। मुझे पता है कि आप इससे सहमत होंगे। अब भला बताइए एक दिन की छुट्टी में कुछ होता है। पूरा दिन तो अगले हफ्ते की तैयारियों में ही निकल जाता है। जितना व्यक्ति पिछले छह दिनों में काम करके नहीं थकता उतना वह एक दिन की छुट्टी में थक जाता है। हें नहीं तो!

इस पोस्ट को हल्के में मत लीजियेगा। यदि कोई नीति नियन्ता इस पोस्ट से होकर गुजर रहें हो तो उनसे दण्डवत लेटकर अनुरोध है कि इस पर विचार कर लें। मेरी दुवा लगेगी।

क्या तीन दिन की छुट्टी ज्यादा है? अच्छा? कोई न! तीन न सही तो दो दिन की ही दे दीजियेगा! वो ऐसा है ना कि हम पहले ही सोच लिए थे कि तीन मांगेंगे तो दो मिलेगा! एक दिन हम भैया की साली से मिलने के लिए मांग लिए थे 😉 हमारा तो समाज वहीं हैं।😜 

नोट:-छुट्टी नहीं भी मिलेगी तो हम क्या ही उखाड़ लेंगे! काम में लापरवाही तो हर कर्मचारी अपना हक तो समझता ही है और हमारे देश में नौकरी भी वही ढूंढी जाती है जिसमे काम कम हो या बिल्कुल न हो।😎😁

अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०९.१२.२०२०

Friday 4 December 2020

गाँव और शहर

वाइ-फाइ, कॉल्स, घण्टों और मिनटों की चहारदीवारी में कैद होने आया हूँ,
आज मैं अपने गाँव से फिर शहर को लौट आया हूँ।

#villagelife 
#metrocity 
#Lucknow 
#endofvacation 
#workstarted

Wednesday 2 December 2020

रिश्ते-नाते!

भावनावों के आवेग में डूबता-उतराता हुआ पिछले २४ घण्टो में कई रिश्तों के सम्पर्क से गुजरता हुआ फिलहाल बिस्तर पर हूँ। सर्दी बहुत है। एक कम्बल और एक रजाई के युग्म के अंदर खुद को रखकर लिख रहा हूँ। पैर मस्त गरम हैं और कान थोड़े ठंडे। दिल गोताखोरों की तरह गोते ले रहा है। बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ पर भावनाओं के इस भँवर में सब कुछ समेट कर एक जगह रखने में खुद को नाकाम पा रहा हूँ। बिकुल असहाय...

२०१२ के बाद से मशीनी ज़िन्दगी जी रहा था! सरकारी घर, कार्यालय और फ़ोन! बस यही जीवन था! सारी जिम्मेदारियाँ बस फ़ोन से ही निपट रही थी। लेकिन अब जाकर जब लोगों के बीच, अपनों के बीच, बिना किसी काम के, फालतू बैठने/मिलने के एहसास से दो-चार हुआ हूँ तब जाकर ज्ञान चक्षु खुले हैं कि हम क्या खो दिए पिछले आठ सालों में! चल रही महामारी तो मेरे जैसे रिज़र्व व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के लिए तो वरदान साबित हुई थी। एक कारण मिल गया था अकेले रहने का! लेकिन अगस्त २०२० के बाद से फुरसत के कुछ पल जो मिलें और नीलिमा जी के घूर कर देखने के बाद हमने जो जड़त्व के नियमों का रिवीजन किया है न... फिर तो पूँछिये मत! दिल और दिमाग बिल्कुल हिल गए हैं। रिश्तों का, मिलने-मिलाने का, भावनाओं का ऐसा हैवी डोज़ मिला है कि पूरे नशे में हैं... कुछ समझ नहीं आ रहा!

मैं रिश्तों को सामने से नहीं जीता! फ्यूचर मोड में जीता हूँ! फ्यूचर मोड? समझाता हूँ! आप मुझसे मिलिए, मैं मुस्कुराहट के साथ गर्मजोशी से मिल लूँगा! इतना अपनत्व कि सदियों से जानते हो जैसे! जितनी भी देर साथ रहेंगें कि कोई तीसरा देख ले तो बोले बड़ा याराना है इन दोनों में। फिर थोड़ी देर बाद जब अलग हुए तो खुद से पूँछता हूँ कि कौन था वो आदमी? 😜 मैं इस डर में मुस्कुरा के मिल लिया कि सामने वाले को बुरा न लगे! बस यहीं से रिश्ता पक्का। भविष्य में जब कभी भी वो व्यक्ति मुझसे मिलता है तो इतनी आत्मीयता से कि पूँछिये मत! और मैं फिर वही ढाक के तीन पात! कौन था ये आदमी?😆 

सरयू नदी के बगल का रहने वाला हूँ। नदियों से खासा लगाव! कैसा? मुझे भी नहीं पता! किंतु जब भी बगल से गुजरता हूँ एक सुकून सा मिलता है। गहरा सुकून! मन करता है कि इनके सानिध्य में बैठा रहूँ। घण्टों! न कुछ बोलना, न कुछ सुनना! बस बहती धारा को देखना...

कल से बेहद शान्त हूँ! गोते लगा रहा हूँ.... भावनाओं में!

अनुनाद/भावनात्मक आनन्द/०२.१२.२०२०