Thursday 26 September 2019

लैम्प पोस्ट ....

रात गहरी अंधेरी
नज़र से दूर चाँद
इन बादलों में कहीं
व्यस्त चाँदनी के साथ
और ,
मैं
अकेला
खड़ा हूँ तनहा
लैम्प पोस्ट के
खम्भे के पास.......

याद करता तुझको
हर साँस के साथ
ख़्यालों में कौंधता
तेरा चेहरा
बिजली की हर
चमक के साथ !
मैं
अकेला
हो रहा बेचैन
लैम्प पोस्ट के
खम्भे के पास.......

बारिश भी आ गयी
रिमझिम फुहारों के साथ
कानों में फुसफुसाती
बारिश की आवाज़
सुनाती मुझको
अपनी कहानी!
मैं
अकेला
खड़ा सुनता रहा
लैम्प पोस्ट के
खम्भे के पास.......

मैं भी तो जलता हूँ
इस लैंप पोस्ट की तरह
खुद का अंधेरा समेटे
दूसरों को रोशनी दे रहा
तू बगल में खड़ी अब
मुस्कुराती क्यों नही?
मैं
अकेला
भीतर के अंधेर को मिटाता
लैम्प पोस्ट के
खम्भे के पास.......

काश! शायद ! और न जाने
कितने शब्दों में
मैं कुछ मांगता हूं
हमेशा की तरह
तुम आ क्यों नही जाते
कुछ ढूंढते हुए!
मैं
अकेला
राह निहारता
लैम्प पोस्ट के
खम्भे के पास.......

Tuesday 17 September 2019

मुफ़लिसी...

अब अपने डर को हम
ज़ाहिर भी करें तो कैसे
सही ग़लत में उलझ जाते हैं
बस हम आदमी आम है।

होठों तक आयी थी,
न मालूम क्यूँ छोड़ दी,
लो कह दिया नही पीते,
हमारे में शराब हराम है।

बड़े क़रीने से छुपा जाते हैं,
मुफ़लिसी की लकीरों को,
महफ़िलों में अब नहीं जाते,
कह देते हैं कुछ ज़रूरी काम है।

तंगी तो देखो हमारी इस क़दर है,
खड़े हम बाज़ार के बीचों बीच में हैं,
भूख-प्यास से बेहाल पर हालात नाज़ुक,
बोल दिए क्या खाएँ, आज तबियत नासाज़ है।

Sunday 15 September 2019

Happy Engineers day...

I am an engineer too.....

Not destined
Always confused
Doing regret
For all decisions
Yes.....
I am an engineer too.

40 subjects
8 semesters
Many viva
Few backs
Yes.....
I am an engineer too.

High dreams
Zero focus
Cleared degree
But unskilled
Yes.....
I am an engineer too.

Great campus
Few girls
Young heart
One side love
Yes.....
I am an engineer too.

Few crazy guys
One great gang
Lived together
Moments like ages
Yes.....
I am an engineer too.

Have nothing
But full confidence
Need ignition
To reach moon
Yes.....
I am an engineer too.

Don’t ask
What we do
Can do anything
Except engineering
Yes.....
I am an engineer too.

Saturday 14 September 2019

हिन्दी...

हिन्दी दिवस पर क्या लिखूँ
हिन्दी में ही तो लिखता हूँ
हिन्दी को मनाऊँ कैसे
मैं हिन्दी से परे कब हूँ।

हिन्दी उच्चारण
हिन्दी आचरण
हिन्दी से हो
सभी दर्द निवारण।

हिन्दी में करते बात
मेरे ये दो नयन
प्रेम हो विरह हो
चाहे हो तुमसे मिलन।

हँसना-रोना
रूठना - मानना
ख़ुशी या फिर ग़ुस्सा होना
है तो सब हिन्दी ही।

तेरा रूप सुनहरा हिन्दी
तेरी आँखें काली हिन्दी
माथे पर वो बिंदी हिन्दी
उलझे हुए बालों में हिन्दी।

तुझको लिखी चिट्ठी हिन्दी
न मिला जो जवाब हिन्दी
तुम भूल गए तो हिन्दी
मुझे याद आए तो हिन्दी।

मुझमें हिन्दी
मुझसे हिन्दी
मैं जिससे निर्मित
वो है हिन्दी।

मेरे लिए तो
सभी दिवस है हिन्दी।

Tuesday 10 September 2019

इकतरफ़ा इश्क़...

मत पूंछ वो लम्हा जब सब महफ़िल से चलने को हुए थे,
तेरी एक झलक पाने को किसी ने मुड़कर हज़ार बार देखा था।

तुम मंज़िलों की खोज में गौर नही कर पाए,
और किसी ने गौर करते-२ तुझमें अपनी मंज़िल ढूंढ़ ली थी।

तुम सुलझाते रहे उलझने जीवन की इस कदर,
और किसी ने तुम्हारे उलझे बालों में सुलझनें ढूंढ ली थी।

हर कदम पर तेरे बगल में एक शख्श खड़ा तुझे देखता रहा,
तुम चीजों में खुशी ढूढ़ते रहे और किसी ने तुझ में खुशी ढूंढ ली थी।

तुमने यूँ ही राह में चलते-2 संभलने को हाथ पकड़ लिए थे,
तुम हमसफर थे पल भर के और किसी ने गुस्ताख़ी उम्र भर की कर ली थी।

वैसे तो भरोसा खूब है इन रेलों पर कि कुछ पल और मिल जाएंगे,
मगर तेरी ट्रैन के समय से आने पर किसी को नाराज़गी बहुत हो रही थी।

तेरी बक-बक भी बहुत खास हुआ करती थी उसके लिए ,
तुम्हारे होठों पर आ गया किसी गैर का नाम और किसी ने अपने होंठ सिल लिए थे।

चाहत थी संग उड़ने की मगर वो अपनी हाथों की लकीरों में कैद जो ठहरा,
कत्ल करने को खुद को किसी ने खुद से दुश्मनी कर ली थी।

Friday 6 September 2019

दौर...

मेरी ख़ामोशी का वो ग़लत मतलब निकाल बैठे,
हमारी शराफ़त और तरीक़ों को कमज़ोरी समझ बैठे।

माना कि वो दौर उनका था और वो माहिर हैं इस खेल के,
मगर समझा लें वो ख़ुद को कि हम खिलाड़ी हैं इस दौर के।

पर्दा तो अभी उठा ही है यारों और मंच सज़ा है अभी,
उनसे कह दो सब्र रखें खेल तो बस शुरू हुआ है अभी।

पृथ्वी, चाँद, और मंगल से भी आगे हम पहुचें हैं अब,
तुम्हारे पुराने तरीक़ों को कह चुके हैं हम अलविदा अब।

कह कर हमें नौसिखिया तुम अपनी खिसियाहट छुपाते हो,
कौन पूछता है अब तुम्हें, छोड़ दो, तुम किसे उल्लू बनाते हो।

बैठो दर्शक दीर्घा में अब तुम केवल कुर्सी की शोभा बढ़ाओ,
ग्रहण करो अभिवादन हमारा और इज़्ज़त से अपने घर जाओ।

ये दौर यूँ ही नही बदलते, बहुत कुछ भूलना होता है इन्हें भी!
पल-२ की ख़बर कैसे रखते ये, जीना होता है सदियाँ इन्हें भी।