गरम हवाएँ चारो तरफ़, चल रही लू हर तरफ़,
नही समझ पा रहे मिज़ाज, मौसम के जानकार हर तरफ़,
कोई हमसे पूछे वजह, कि वो आज ही गए हैं शहर छोड़कर,
इसलिए नाराज़ होकर चल रही हैं गरम हवाएँ हर तरफ़।
सब कुछ सम्भव है, तू धरा को उँगलियों पर उठा कर तो देख,
समय भी ठहरता है, तू उनकी ज़ुल्फ़ों की छांव में बैठकर तो देख।
कुछ दिखता नही इतनी काली रात है, कहीं ये अमावस तो नही ,
अँधेरा ही अँधेरा हर तरफ़ कहीं ये, उनके ज़ुल्फ़ों की छांव तो नहीं।
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