दिल की बातें थी ,
ज़ुबाँ से कह न पाए
आँखों ने की कहानी बयाँ
पर वो समझ न पाए
कशमकश में समय उड़ चला
फिर न उनका कोई पता चला
मुहब्बत की कचहरी में वो न हाज़िर हुए
न उनका कोई संदेश आया
लो उठ गयी कचहरी
और फ़ैसला हो नहीं पाया ।
Wednesday 17 April 2019
फैसला हो नही पाया !
आंसू छुपा लिए थे ...
जाने का जब समय नजदीक आया था,
दिल न जाने क्यों भर आया था।
नजरें मिलीं तुमसे जब तुम चलने को हुए थे,
कुछ कह न पाए तुमसे बस खामोश बैठे रहे थे।
रोकता कैसे उस वक़्त को मेरे हाथ में न था,
रुंध गया था गला मेरा और दिल में बेहद शोर था।
बेचैनियों को अपनी छुपा बस हम मुस्कुरा दिए थे,
नजरें झुका कर हमने सारे आंसू छुपा लिए थे।
जिंदगी इक सवाल है तुझसे...
बड़ी तेज बीत रही है तुझे रोकूँ कैसे
रेत सी बिखर रही मुट्ठी मैं कसूं कैसे
इस दौड़ में खुद को सम्भालूँ कैसे
एक नशे सी है तू खुद को होश में रखूं कैसे
कुछ पल बीतते नही और उम्र पल में गुजरती कैसे
जीने को इतना कुछ है पर इतनी जल्दी में जियूँ कैसे
इतनी भीड़ है कि कुछ पल अकेले में बिताऊं कैसे
तुझसे करनी है मुलाकात बता होगी कैसे
जिंदगी इक सवाल है तुझसे?
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