Friday 30 July 2021

कुछ नहीं चाहिए...

मन रखने को उन्होंने सोचा कि पूछ लेना चाहिए,
इस तरह से भी हम पर एहसान कर देना चाहिए।

ऐसा नहीं था कि उनका हमारा साथ बस आज का था, 
दिल की बातें थी पुरानी ये क़िस्सा नहीं आज का था।

बहुत ही अच्छे से वाक़िफ़ थे वो हमारे जज़्बातों से,
हम भी बहुत बेफ़िक्र थे हमारे लिए उनके इरादों से।

आज उनसे मिले तो हमने नज़रें थोड़ी झुकी पाईं,
चेहरे पढ़ने की कला से आज मुझे शिकायत आई।

मैंने सोचा कि मौक़े को कुछ यूँ सम्भाल लेते हैं,
कुछ माँग कर इन रिश्तों को क्यूँ ख़राब करते हैं।

मुझसे पूछ लिया उन्होंने कि बोलो आनन्द क्या चाहिए,
हम कह दिये कि आपने पूछ लिया बस और क्या चाहिए।

फिर भी रिश्तों की दुहाई दे कर बोले अमाँ कुछ तो बताइए,
हम भी मुस्कुरा कर बोले कि आप मेरे लायक जो दे पाइए।

©️®️कुछ नहीं चाहिये/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३०.०७.२०२१

Monday 26 July 2021

निज़ात

काश कि मेरा सब कुछ छिन जाए
इस तरह भी तो दुख से निज़ात पाया जाए!

हद से ज्यादा हो गईं अब तो शिकायतें
सभी चिट्ठियों को बिन पढ़े जला दिया जाए!

दिल में घाव अब बहुत सारे हो गए हैं
मेरे हक़ीम से अब तो खंजर छीन लिया जाए!

साथ तेरा किसी बोझ से कम नहीं 
क्यों न अब ये बोझ दिल से उतार दिया जाए?

साथ चल नहीं सकते साथ रुक तो सकते हैं
मगर पीछे चलने की आदत अब तो छोड़ दी जाए!

दूर थे तो तब बात कुछ और थी आनन्द 
पास रहकर भी बोलो अब दूर कैसे रहा जाए!

मैं बेचैन करवटें बदलता रहा रात भर 
इस चाहत में कि अब तो मेरा हाल पूँछ लिया जाए!

बहुत कुछ खो दूँगा इस तरह मैं, तो क्या
चलो फिर से एक मुकम्मल शुरुआत की जाए!

काश कि मेरा सब कुछ छिन जाए
इस तरह भी तो दुख से निज़ात पाया जाए!

©️®️निज़ात/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२६.०७.२०२१

Sunday 25 July 2021

मतलबी

एक गलती हमसे बस यही हुई थी न....
तेरी मुस्कान को मासूम समझ बैठे थे न!

कहाँ पता था कि चेहरे पे चेहरे होते हज़ार न....
एक बहरूपिये को हम अपना दिल दे बैठे थे न!

तुम मतलबी थे हिसाब-किताब के बड़े पक्के थे न....
तुम्हारी बनावटी चाहत को हम प्यार समझ बैठे थे न!

भूल गए थे तुम कि कभी-२ बारिश भी होती है न....
रंगे सियार का रंग कच्चा, देखो उतरता भी तो है न!

एक सीख मिली कि दुनिया बस मतलब की है न....
क्या करते कि इस दुनिया से परे तुम भी तो नहीं न!

©️®️मतलबी/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२५.०७.२०२१

Saturday 24 July 2021

दावा!

तुम्हारे पेट से दिखती है तेरी रीढ़ की हड्डी, मगर क्या!
इस शहर का दावा है यहाँ कोई भूख से नहीं मरता।

बड़े नासमझ हो तुम तन्हाई की ख्वाहिश रखते हो, मगर किससे!
माँग कर देखो मदद कि यहाँ मौक़े पर एक नहीं मिलता।

एक इच्छा कोई दिल में पाली थी हमने, मगर तुमसे क्या!
होठों पे जो न आए उसे इस जमाने में कोई नहीं सुनता।

दिल की करी थी और बस सच छुपाया था, ज्यादा कुछ नहीं !
जायज-नाजायज में उलझी दुनिया को मैं कैसे सही लगता ।

कुछ अच्छा पाने को, दौड़ है, भीड़ है, छीनने की कला चाहिए!
केवल काम करने से इस दुनिया में मन का नहीं मिलता।

मैं दिन भर व्यस्त रहा लोगों की मदद में बेतरतीब, तो क्या!
खुद की तारीफ करो आनन्द कि तुझ सा अब नहीं मिलता।

©️®️दावा/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२४.०७.२०२१

Friday 16 July 2021

सवाल....!

तुम बिना बोले बहुत कुछ बोल सकते थे 
मेरे सवालों पर मुस्कुरा तो सकते थे….

चलो माना कि उस पल ख़ामोश रहना मजबूरी थी 
लेकिन बहाना बाद में कोई बना तो सकते थे….

मंज़िले अलग थी हमारी, दूर होना भी ज़रूरी था 
मगर दुबारा लौटकर आ तो सकते थे….

कहते हैं दुनिया बहुत छोटी और तुम बनारस में हो
चाहते अगर तो लखनऊ आ तो सकते थे….

चाहत थी छूने की, अपने बाहों में भर लेने की
तुम लौटकर बस गले मिल तो सकते थे….

एक पल को माना कि ज़िद मेरी जायज़ न थी 
तुम एक हाँ से जायज़ बना तो सकते थे….

तुम बिना बोले बहुत कुछ बोल सकते थे 
मेरे सवालों पर मुस्कुरा तो सकते थे….

©️®️सवाल/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१६.०७.२०२१

Saturday 10 July 2021

अधूरी कहानी!

दारू की टेबल पर
जब कोई 
तेरी मोहब्बत में 
पूरी तरह हारकर
तुझे गालियाँ देता है,
बुरा-भला कहता है...
तो मैं बस सुनता हूँ
कुछ भी नहीं बोलता
और चुपचाप
अपने मन में 
कुछ सोचकर 
सर झुकाकर
हल्के से
मुस्कुरा देता हूँ....
शायद तुम्हें 
मुझसे बेहतर 
कोई समझ ही 
नहीं पाया....!
और ये तुम्हारी
बदनसीबी है कि
तुम मुझे 
नहीं समझ पाए.....!

और इस तरह
हमारी कहानी 
अधूरी रह गई.......

©️®️अधूरी कहानी/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१०.०७.२०२१

Sunday 4 July 2021

साथ !

मैं तुम्हारे साथ हूँ,
बोलने से सिर्फ
साथ नहीं होता।
साथ होता है
साथ बैठने से
घंटो, बेवजह!
इतना कि 
किसी भी विषय पर
दोनों की
अलग-२ राय
मिलकर एक हो जाय।

और फिर 
दोनों को 
दोनों की
चिंता करने की
"कोशिश"
न करनी पड़े।
बोलने की 
जरूरत न पड़े।
कोई फॉर्मेलिटी
या संकोच न रहे।
सही मायने में
साथ होता है 
साथ बैठने से!

©️®️साथ/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०४.०७.२०२१

Thursday 1 July 2021

आदत नहीं गई...!

माना कि तुझको पा लिया है हमने मगर,
महफ़िल में तुझे ढूढने की आदत नहीं गई।

सोचा था कि देखने से ही प्यास बुझेगी मगर,
कुछ देर साथ बिताने से भी बेचैनियाँ नहीं गई।

क्या गज़ब का मिराज है तू और तेरा हुस्न,
तेरे बहुत पास पहुँचने से भी ये दूरियाँ नहीं गई।

तेरे साथ की ठंडक के बारे में बहुत सुना है मगर,
दिल में लगी है जो अगन तेरे छूने से भी न गई।

लोग कहते हैं कि मुझको अल्लाह की इबादत कर,
मेरे लबों को सुबह-शाम तेरा नाम लेने की आदत न गई।

हुस्नो की बारात है देखो मेरे चारों तरफ मगर,
दुल्हन से तेरे चेहरे से मेरी नज़र कहीं और न गई।

माना कि तुझको पा लिया है हमने मगर,
महफ़िल में आनन्द तुझे ढूढने की आदत नहीं गई।


©®आदत नहीं गई/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०१.०७.२०२१