Saturday 27 April 2024

मंज़िल और रास्ते

ग़र चाहते हो आनन्द मंज़िल पर पहुँचना,

मंज़िल से ज़्यादा रास्तों का ध्यान रखना।

 

तड़पते रह गये अपन मंज़िल की चाह में,

देखा ही नहीं कि तेरा गाँव भी था राह में।

 

समय कहाँ रुका है तेरे लिये या मेरे लिये,

निहारते बीते दौर को हाथों में तस्वीर लिए।

 

मैं फ़क़त ख़्वाब बुनता रहा तुझे पाने को,

रातों में सोया नहीं सोये भाग जगाने को।

 

मैंने लिखना छोड़ दिया अब क्या फ़ायदा,

भरे घावों को फिर कुरेदने से क्या फ़ायदा।

 

मैंने नशे करके भी देख लिये  दिलरुबा,

ये कदम लड़खड़ाए तो बस तेरे नाम पर 

 

नाम आनन्द है इसलिए खुश तो रहना ही था,

मुझे तेरा नाम और ये ग़म दोनों छुपाना ही था।

 

मैंने लिखना छोड़ दिया अब क्या फ़ायदा,

भरे घावों को फिर कुरेदने से क्या फ़ायदा।


©️®️मंज़िल और रास्ते/अनुनाद/आनन्द/२७.०४.२४