नशा तो तेरी संगत का था ऐ मुसाफ़िर, पीने में वो बात कहाँ ......
बोतल में बंद ये मय तो खामखां बदनाम है।
झूमने का मज़ा तेरे संग और था, अब वो पागलपन कहाँ.........
क़दमों का लड़-ख़ड़ाना अब मेरा खामखां बदनाम है।
देर रात तक बेवजह, क़िस्से कहानियों का दौर वो सुनहरा था ........
महफ़िलों में पैमानो का ये दौर खामखां बदनाम है ।
आँखो के एक इशारे में हो जाती थी हज़ार बातें और किसी को ख़बर नहीं ...........
ये बेगुनाह नज़रें मेरी अब खामखां बदनाम है ।
रास्ते बदले, बदली मंज़िलें और छूट गया वो साथ.......
उनकी यादों को पिरोकर बनी ये ग़ज़ल खामखां बदनाम है।
If anyone asks I would suggest him to read this poem instead of Madhushala..
ReplyDeleteSeriously? मधुशाला??
Deleteइतनी इज़्ज़त ना नवाजिए जनाब ...... कहाँ मधुशाला और कहाँ ये । फिर भी हौशला आफ़जायी के लिए शुक्रिया ।
ReplyDeleteWah subhanallah
ReplyDeleteKehne ko alfaaz kam hain bhai
Thanks 🙏
DeleteWah subhaanallah
ReplyDeleteKehne ko alfaaz kam hain bhai
If anyone asks I would suggest him to read this poem instead of Madhushala..
ReplyDeleteAnand bhai you are genius
ReplyDeleteThanks 🙏😇
Deleteबेहद उम्दा ।
ReplyDeleteबेहद उम्दा ।
ReplyDeleteDhanyawad 🙏
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