तुम्हारा मेरी जिंदगी में होना तो बस यूँ है कि अब तुम्हारे होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। बिलकुल वैसे ही जैसे कलाई पर कलावा या घड़ी, गले में माला, माथे पर तिलक, रक्त-चाप की दवा, जेब में मोबाइल और ऐसी ही कई चीजें। इतनी आदत हो गयी है तुम्हारी कि तुम अब दिखते तो हो पर महसूस नहीं होते। तुम हो , अगल-बगल में ही हो, नहीं भी हो तो दिल और दिमाग में हो, मगर हो।
तुम्हारा मेरे साथ इतना होना कि तुम्हारे न होने की कल्पना भी कर पाना मुश्किल है। तुम्हारे होने से कोई फर्क नहीं लेकिन तुम्हारे न होने से बहुत फर्क पड़ता है। कुछ अटपटा सा लगता है। जैसे कि कुछ तो मिसिंग है। जो होना चाहिए मगर है नहीं। दिन भर खोये से रहते हैं और किसी काम में मन नहीं लगता।
तुम्हारे साथ की आदत इतनी लग चुकी है कि तुम्हें भूल सा गए हैं। तुम साथ नहीं होते हो तो कुछ कम सा तो जरूर लगता है लेकिन तुम ही साथ नहीं हो, ये दिमाग में ही नहीं आता। बस कुछ कमी महसूस होती है। जैसे हाथ घडी लगाना भूल जाना या रक्त-चाप की दवा का न लेना इत्यादि.....
तुम अब हिस्सा हो मेरा, मेरी जिंदगी का। मेरी आदतों में हो। दैनिक दिनचर्या हो तुम। इतने पास हो कि आँखों से नहीं दिखते और शायद महसूस भी नहीं होते किन्तु न होने पर बेचैनी सी होती है। कुल मिलाकर तुम मुझमें समा गए हो। तुम्हारे बिना मैं का अब कोई अस्तित्व ही नहीं।
अगर तुमसे बात न हो....
शिकायत भी न हो.....
मिलने की कोशिशें न हों.....
या फिर दुनियादारी की नज़रों में जितनी भी जरुरी हरकतें जो एक रिश्ते को निभाने के लिए हों, वो न हों.....
तो तुम परेशान न होना !
अब कोई खुद से भी कैसे दुनियादारी करे?
क्यों ! समझ रहे न हो मुझे?
कैसे समझोगे?
तुम भी तो उसी स्थिति में हो न ! जिस स्थिति में मैं हूँ।
मेरे होने से अब तुम्हीं भी तो कोई फर्क नहीं पड़ता होगा न 😉💖
ⒸⓇतुम्हारा होना/अनुनाद/आनन्द/२३.०८.२०२२
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