इक चिढ सी है दिल में मेरे, शायद लोगों से! शायद तुमसे!
दिए की तरह रोज जलना रोज बुझना, शायद अब यही मेरी तकदीर है.....................
क्या करूँ, अपनी इस हालत का मै किसको दोष दूँ?
खुद से लड़ते रहना, शायद अब यही मेरी तकदीर है....................
इक आरजू है कि तुझे पा लूं , किन्तु ऐसा नहीं हो सकता!
अपने दिल को मनाते रहना, शायद अब यही मेरी तकदीर है.....................
चाहता हूँ हर पल तेरे साथ बिताना, अकेले में,
दुनिया को तुझसे दूर रखने की नाकाम कोशिशें करना, शायद अब यही मेरी तकदीर है..............
कोई नाम भी ले तेरा तो मुझमे आग सी लग जाती है,
अपने सब्र के इस बाँध को टूटने से बचाना, शायद अब यही मेरी तकदीर है..............
करता हूँ तुझसे मैं मोहब्बत बेपनाह, पर तुझको बता नहीं सकता,
मेरे दिल में उठते तूफ़ान को दुनिया से छुपा कर रखना, शायद अब यही मेरी तकदीर है..............
जो कुछ भी चल रहा है मेरे मन में, इन सब की तुझे अपने आप खबर लग जाये,
मेरी इस ख्वाहिश की पूरे होने की केवल राह देखना, शायद अब यही मेरी तकदीर है.................
एक दिन तुम आकर मेरी बाँहों में समा जाओगे, सब कुछ भूलकर!
ऐ दिल-ए-नादाँ तू देखता रह ख्वाब ऐसे, शायद अब यही तेरी तकदीर है..............
ja ke khamba nocho..
ReplyDeletenahi kar sakta, log pagal samjhenge.
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