Saturday 3 December 2016

मेरी शाम - अब केवल एक इंतजार !

बहुत दिन हुए
देखे हुए !
व्याकुल मन,
अधीर चितवन !
नजरें खोजती हैं
उसको............!

पिछली दफा
बचपन में
मिले थे,
खेले थे उसके साथ।
बेहद नजदीकियां थी
हमारे दरमियाँ!

इंतेजार को उसके
घड़ियाँ बीतती ही न थी।
किन्तु मिलते ही उससे ,
समय को
पंख निकल आते !
पंखियों की तरह,
इनकी उम्र कम होती है।
पल भर में,
पलकों से ओझल !

नाराज़गी है कोई,
या बेवफाई !
शायद हुयी है कोई ,
गुस्ताख़ी मुझसे !
वो सामने हैं,
फिर भी दीदार नहीं होते ।
बेशक़ ख्वाहिशों के बोझ तले,
झुकी हैं मेरी आँखें !

दिल धड़कता है,
पाने को उसको ,
बैठने को उसके साथ ।
बातें जो करनी हैं ,
ढेर सारी !
न ख़त्म होने वाली।

उसके इंतजार में.............
अब तो उसके बिना ही ,
रात हो जाती है ।
कहाँ गए वो दिन ?
कहाँ हो तुम ?
हैं प्रश्न बहुत ,
पर नही कोई जवाब !

कहाँ हो तुम !
मेरी शाम .............
कहाँ हो तुम ?

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