Wednesday 2 May 2018

शरारत-ए-इश्क

वो मिलने की चाह भी रखते है, वो प्यार भी ख़ूब करते हैं।
ग़लती से मिल जाए नज़र तो नज़र अन्दाज़ भी ख़ूब करते हैं।

वो माहिर हैं नज़रों के खेल में, नज़रों से वार ख़ूब करते हैं ।
जकड़ कर नज़रों के मोहपाश में, बेचारे दिल को घायल ख़ूब करते हैं।

जाने अनजाने छेड़ ही देते है, वो ख़्वाहिशें ख़ूब पैदा करते हैं ।
बढ़ा कर दिल में कसक, वो दीवानों को परेशान ख़ूब करते हैं।

दिन बीतता है उनको याद करके, वो शामों को हसीन ख़ूब करते हैं।
रोशन करके शमाँ रातों को, वो परवानो को क़त्ल ख़ूब करते हैं।

3 comments:

  1. Unki sharart ko bahut khoob shabdo me bandha hai sir...

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  2. इश्क़ की शरारत को बहुत ही प्यार भरे अलफ़ाज़ों से क्या खूब सजा दी है आपने...

    बहुत ही रूचिकर है... 🙏

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