Saturday, 29 May 2021

मैं, बारिश और इश्क़...

बारिश
जब भी बरसती है
मुझ पर यूँ गिरती है 
जैसी सूखी पथराई मिट्टी पर
छन से
और फिर गहरे उतर जाती है
रिसती चली जाती है
भीतर तक 
धीरे-धीरे
और बदल देती है मुझे 
कर देती है नम
इस पत्थर दिल को
जैसे तुमने किया था....

बारिश
जब भी बरसती है
मुझ पर यूँ गिरती है 
जैसे सूखे धूल जमे पत्तों पर
धुल जाती है सारी धूल
बहा ले जाती है सारी गंदगी 
और चमक उठते हैं पत्ते
इसी तरह जब तुम्हारी यादों पर
पड़ने लगती है धूल 
तो ये बारिश करती है कमाल
भिगोती है ये मुझे और फिर
चमक उठती हैं तेरी यादें 
मेरे मानस पटल पर।

बारिश
जब भी बरसती है
मुझ पर यूँ गिरती है 
आती है खुशबू 
सोंधी-सोंधी
मिट्टी की 
हो उठता हूँ तरो-ताजा
महक उठता हूँ भरपूर
और खो जाता हूँ 
कहीं दूर नीरव में 
बिल्कुल वैसे जैसे
पहली बार तुम बगल में बैठे थे।

बारिश
जब भी बरसती है
मुझ पर यूँ गिरती है 
पैदा करती हैं कम्पन
होता है स्पंदन 
उठती है सिहरन
मचलता है चितवन
संभालने को धड़कन
मैं करता हूँ प्रयत्न
साधता हूँ मैं खुद को
बिल्कुल वैसे जैसे
तेरी पहली छुवन।

बारिश
जब भी बरसती है
मुझ पर यूँ गिरती है
जैसे ......

©️®️बारिश का असर/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२९.०५.२०२१

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