लापता हूँ कब से मैं,
ढूढ़ने को तुझे जो निकला मैं।
जगह अनजान नई हैं गलियाँ सभी,
अब नहीं पता कि कहा हूँ मैं।
न तेरा नाम और न गली का पता,
कैसे पूछूँ तेरे घर का पता मैं।
बगल से गुजरो हो जाये दीदार तेरा,
तू रहती आस पास, हूँ पक्का मैं।
सिग्नल मिल रहे मेरे राडार में है तू,
तेरे विकिरणों को पकड़ने में माहिर मैं।
मुझे पहचानोगे नही बस ये समझ लो,
तेरा दीवाना हूँ तुझसा ही दिखता मैं।
बेसब्र हो रहा हुई बहुत देर अब,
तेरी खोज में कब से लापता मैं।
Thursday, 2 May 2019
लापता हूँ कब से मैं!
तुम्हारे बाद...
तुम्हारे बाद
केवल
तुम्हारी याद
और कुछ नही
बस निर्वात
नीरवता
अकेलापन
आंसुओं से भरी
गमगीन
दो आंखें
खोजेंगे तुमको
तुम्हारे बाद!
सब में एक हुनर होता है!
सब में एक हुनर होता है,
जिसका अपना ही एक असर होता है।
उसकी एक मुस्कान में इतना क़हर होता है,
उस जादू पर न किसी झाड़-फूंक का असर होता है।
दिल पर लगता है जब उसके नैनों का तीर,
उस घाव पर पर न किसी दवा का असर होता है
साथ चल दे तो वही सुहाना हर सफर होता है,
हर किसी में एक हुनर होता है।
चुपचाप गुज़र जाओ....
न रुको चलते जाओ
सफर कंटीला बहुत बचते जाओ
राह दुर्गम बहुत मगर बढ़ते जाओ
देख पैरों के छाले यूँ न घबराओ
नही कोई शजर कि ठहर पाओ
मत हो दुखी कि हंसते जाओ
समय लंबा इंतजार का इसका लुत्फ उठाओ
वो देखो सामने मंजिल कि कदम जरा तेज बढ़ाओ
अब खत्म सारी अड़चने कि अब ठंड पाओ
भूलकर दर्द सारे चुपचाप गुज़र जाओ।
नदी के दो किनारे हम!
नदी के दो किनारे हम,
नज़रों में रहकर भी दूर हम।
जग जानता कि इक दूजे के हम,
फिर भी मिलने को तड़पते हम।
नदी सा चंचल मन, अधीर चितवन,
यही नियति नही हमारा मिलन।
नदी के दो किनारे हम।
तुम बिन...
रात दिन
मुस्कुराये बिन
रहे गमगीन
समय में इन
सुकूँ न चैन
क्या बताऊँ
जिया कैसे
और रहा
हालातों में किन
तुम बिन।
आओ किसी दिन
बुलाये बिन
पल रहे छिन
करो इन्हें
मुकम्मल मोमिन
लगो गले
महसूस करो
धड़कनों को इन
जीवन नीरस ये
तुम बिन।
हाथों की लकीरों में.....
हाथों की लकीरों में,
लिखा सब कुछ है।
जी लो खुलकर कि सब कुछ पहले से तय है,
लिखे को बदलने की कोशिश कर, परेशान क्यूं होना हैं।
न कर शिकायत कि मदद को कोई नही है,
ये तेरी जिंदगी है तुझे खुद ही लड़ना है।
खुदा की मर्जी है हर घटना में,
तुझे सबसे खुद निपटना है।
ले अल्लाह का नाम और भर हिम्मत कि,
कश्ती तूफानों से पार तुझे खुद करना है।