Wednesday, 3 July 2019

पीना-पिलाना!

ये पीना पिलाना,
कभी बहुत नही होता,
ज़िंदगी ही एक नशा है,
इसमें कोई होश में नही होता।
मौत की क्या बात करनी,
वो तो आनी ही है,
कश्ती अगर धाराओं के संग
चली तो क्या नयी कहानी है।
हौसलों को ऊँचा रखो,
सिर्फ़ बातों से कुछ नही होता ,
मेरी मानो तो नशा भरपूर रखो,
होश में कुछ भी नही होता।

ग़ुनाह!

अगर ख्वाबों को जी पाता....
न जाने कितने गुनाह कर जाता!

लेख़क!

कुछ ख़्वाहिशें दबीं थी दिल में जो किसी को बता न सके,
ओढ़ कर चेहरा एक लेखक का खोल दिए राज काग़ज़ों पे।

उम्र का फ़लसफ़ा...

सुबह से शाम हो रही है ,
ये उम्र बस यूँ गुज़र रही है,
कहने को तो सब कुछ है मेरे पास,
न जाने फिर क्यूँ ये शाम तन्हा गुज़र रही है।

ज़िन्दगी किताबी जी रहा हूँ मैं,
सफर एक सुहाना तय कर रहा हूँ मैं,
देखा जाए तो रोमांच कम नही है लेकिन,
लगता है बेमतलब में उम्र तमाम कर रहा हूँ मैं।

ख्वाहिशों का बोझ इतना बढ़ा लिया मैनें,
देखे हुए सभी सपनों को दबा दिया मैंने,
जरूरतों को पूरा करने में दौड़ इतनी बढ़ी कि,
पिछले चंद सालों में खुद को अकेला कर लिया मैने।

रुको, ठहर जाओ, लो एक लंबी और गहरी सांस,
झाँको खुद के अंदर और करो अपनी संगत का एहसास,
साथ बिताओ कुछ पल अपने और अपनों के साथ,
जिंदगी जीने का मजा तब, जब चलो लेकर हाथों में हाथ।

ज़िंदगी...

ज़िंदगी हमने चखी
लेकर ढेरों स्वाद
जी भर जिया
न होने दिया बर्बाद।

नही किया अफ़सोस
क्या खोया क्या पाया
बदल कर रंग हर मंच पर
हमने हर किरदार निभाया।

जीवन के हर उम्र पर
हमने अरमान नए रखे
पूरा करने को ख़्वाब सभी
हमने खाए ख़ूब धक्के।

थके नही न हम घबराए
ख़ुशी से हार को भी लिए गले लगाय
जो मिला वो सब में बाँट दिए
जो नही मिला उसे दिए बिसराय।

रोका भी नही...

रोका भी नही
टोका भी नही
छोड़ गए हमको और
सोचा भी नही ।

बोला भी नही
जताया भी नही
हमने बढ़ाया हाथ, उन्होंने,
थामा भी नही ।

इसीलिए मैं
रोया भी नही
जागा भी नही
ख़त्म कर दी सारी यादें, किसी एक को,
पिरोया भी नही।

खाली कुर्सियाँ...

हैं खाली कुर्सियाँ अब,
सुनने को कोई नही अब
दिल की कहानी बयां करूँ तो करूँ किसको
महफ़िल में नही दिलवाले अब।

जवान लोगों की शहर में कमी अब
ख़त्म हो गयी यहां की रौनक अब
अब तो बस अनपढ़ ही बचे हैं सब तरफ
पढ़ लिख कर कौन यहां रुकता है अब।

जो जितना ज्यादा पढ़ा उतना बड़ा नौकर अब
बन गए नौकर और हो गए पैसों के गुलाम अब
खत्म हुए दिलों के वो रजवाड़े और जुबां की मिठास
बहुत दिन बाद मिले तो पूँछ बैठे कहीं कोई काम तो नही अब!