Wednesday, 3 July 2019

खोज!

पाने को साथ तनहा रास्तों में हमसफ़र ढूढ़ता हूँ,
पुकारे कोई मुझे वीरानों में वो आवाज़ ढूढ़ता हूँ,
वैसे तो ख़ुद की संगत का मज़ा कुछ और है लेकिन,
ये जिंदगानी लम्बी और मैं जीने की वज़ह ढूढ़ता हूँ।

आगे बढ़ते रहना ही ज़िंदगी है मैं ख़ुद की पहचान ढूंढ़ता हूँ,
नाम लेने में भी सोचना पड़े मैं अपने नाम में वो जान ढूंढ़ता हूँ,
ऐसी हैसियत हो जाए कि कोई सोच भी न पाए ऐ मेरे मालिक कि,
साथ रहने वालों के सीने हो जाए चौड़े मैं अपना वो क़द ढूंढ़ता हूँ।

पढ़ाई और मौज ...

लोग कहते कि अच्छे से पढ़ लो
फिर मौज ही मौज है......!
पर कोई हमसे तो पूछे कि केवल
पढ़ने के दौरान ही मौज है ।
वो देखो कितना पढ़ता है अभी त्याग कर रहा है
आगे ख़ूब मौज करेगा .....!
मगर अनुभव ने ये सिखाया कि सारा त्याग तो अभी है
मौज तो पढ़ने के दौरान ही थी ।
अभी पढ़ लोगे तो कुछ बन जाओगे
दुनिया घूमोगे मौज करोगे .....!
लो बन गए कुछ और घूम ली दुनिया लेकिन
मज़ा तो ख़ाली जेबों और दोस्तों के साथ घूमने में था।
सभी सोचे कि पढ़ाई ख़ूब होती है परीक्षा के पहले
फिर मौज करने के दिन आते हैं ....!
लेकिन सच पूछो तो परीक्षाओं के बाद तो ख़ालीपन आता है,
मौज तो परीक्षा और उसके पहले ही आती है।
न कोई त्याग न कोई कष्ट और न ही कोई संघर्ष होता है,
पढ़ाई के समय में केवल मौज होता है।
इश्क़, दिल्लगी, फ़क़ीरी, और सबसे ज़्यादा यारों का साथ होता है,
मौज में बीता वो हर इक दिन सुनहरा होता है।
हमने तो पढ़ाई के सिवा सब कुछ किया पढ़ाई के दिनों में,
क्या ख़ाक कोई मौज पढ़ाई के बाद होती है ....!

कमी...

कुछ कमी सी लग रही है,
आँखे नम सी लग रही है,
यूँ बे-मौसम ठंड नही होती,
कहीं हुई है बारिश लग रही है।

चेहरे पर मायूसी दिख रही है,
बिन बताये पूरी कहानी बयां हो रही है,
ये जुबाँ यूँ ही खामोश नही होती,
ये तूफान के बाद की बर्बादी लग रही है।

अगल बगल से एक आंच निकल रही है
ये आग भीतर की बहुत देर से दहक रही है
ये बिजलियाँ यूँ ही नही चमकती,
किसी टूटे हुए दिल से आह निकल रही है।

इत्र से महकता नाम ...

इधर देखना उधर देखना ये निगाहें खूब दौड़ने लगी
चमक उठा ये चेहरा और महक उठी पूरी ये शाम
लगा कि अपना आना भी सफल हो गया इस महफ़िल में
जब किसी ने लिया इत्र सा महकता हुआ तेरा नाम।

इससे पहले कि...

इससे पहले कि
ये घड़ी बीत जाए
दिल की बात
दिल में रह जाए
भर नज़र देख लूँ
दिल के पटल पर
तस्वीर उतार लूँ
बड़ी मुश्किल हैं
धड़कनें तेज़ बहुत हैं
कैसे भरूँ रंग
काँपते हाथ मेरे
विचलित ये मन
हो रहा अधीर
बहुत ये चितवन
खो रहा होश
थाम लो मुझे
इससे पहले कि..........

रात के आंसू...

रात के आंसू
तो तकिए जनते हैं ।
हम रोए कितना
ये अंधेरे जानते हैं।
चेहरे के शिकन को छुपाया कैसे
ये मेरे घर के कोने जानते हैं।
तुम्हारे जाने का दुःख
झेल गए सब कुछ
मत पूछो हम ज़िंदा हैं कैसे
दिल की बातें हैं बस,
दिल की ये धड़कन जानते हैं।

किस रिश्ते में बाँधू तुमको!

तुझसे दूर लेकिन बेहद क़रीब तुमसे,
मुश्किल हो रहा ये रिश्ता निभना हमसे,
तुम क्या लगते मेरे ज़माना पूँछें मुझसे,
नही सूझता कि लोगों को समझाऊँ कैसे।

ये संगत पुरानी, पसंद तेरे तरीक़े हमको,
रहना संग मेरा तेरे नहीं पसंद किसी को,
रिश्तों को नाम देना ज़रूरी है क्या, कोई बताए हमको,
नही समझ पा रहा किस रिश्ते में बाँधू तुमको ।