Friday, 2 August 2019

नामकरण... (नवीन)

एक बार फिर मौका मिला नामकरण का......... यह कार्य पहली बार तो कठिन था ही किन्तु दूसरी बार तो यह नामुनकिन प्रतीत हो रहा था । इस बार तुम्हारे भाईसाहब भी थे जो हमेशा हमारी हर सोच पर प्रभाव डाल रहे थे। जैसे वो बड़े तुम छोटे, वो पहले तुम बाद में। बस इसी चीज से तुम्हे बचाना था। कोई बड़ा- छोटा या पहला-दूसरा नही था। तुम भी अपने भाईसाहब जैसे ही अद्वितीय हो। अपने आप में एक स्वतंत्र सत्ता और एक लाजवाब चरित्र। हाँ.....! एक चीज तो है कि तुम हम सभी में सबसे उन्नत हो। तुम्हारे भाईसाहब के सामने तुम्हारी माँ और मैं थे किंतु तुम्हारे सामने तुम्हारे भाईसाहब भी हैं जो एक अतिरिक्त घटक का कार्य करेंगे। तुम्हारी माँ इस बार तुम्हारे नाम का जिम्मा मुझ पर छोड़ कर अपनी दुनिया में मस्त है। कहती है कि मैं तुम दोनों का ख्याल रखूं या नाम ढूंढू। मैं बेचारा पूरी तरह फंस चुका था। घबराहट थी कि कहीं तुम्हारे साथ अन्याय न कर बैठूं इसलिए अपनी सफाई में इतना कुछ लिख रहा हूँ। अगली कुछ पंक्तियों में तुम्हारे नाम के पीछे की सोच को स्पष्ट करने की कोशिश करूंगा। बड़े होकर जब तुम इसे पढोगे तो शायद संतुष्ट हो जाओ! इसी आकांक्षा के साथ तुम्हारे नामकरण की कोशिश.....

संस्करण द्वितीय किन्तु संस्मरण प्रथम हो,
महत्वपूर्ण एक समान ये तुमको स्मरण हो।

तुलना किसी से नही तुम अतुलनीय हो,
बाद में आये हो किन्तु किरदार अद्वितीय हो।

बड़े, छोटे, पहले, दूसरे ये सब नही करेंगे ,
तुम्हारी हर इच्छा अनिच्छा का ख्याल हम करेंगे।

नामकरण मुश्किल था तुम्हारा हमेशा से हमारे लिए ,
जतन खूब किए किसी का प्रभाव न पड़ने के लिए।

बड़े भैया पहले से तैयार थे अपनी लिगेसी लिए,
मशक्कत करनी पड़ी उनके प्रभाव को कम करने के लिए।

आशीर्वाद तुमको मिलता रहे नीलिमा और आनन्द का,
साथ सदैव रहे तुम्हारे साथ निलिन्द के यथार्थ का।

उन्नत हो उन्नति करो, चरित्र ऐसा कि सब तुमको नमन करें।
झुकना कभी मत ये याद रहे, ईश्वर तुम्हारा उन्नयन करें।

*नवांश-उन्नयन निलिन्द*

Saturday, 20 July 2019

बातें..(कही-अनकही!)

जुबाँ से कैसे बयाँ करें हम इशारों की बातें !
बहुत कम में बहुत कुछ कहना है जो मुझे .........

बहुत कुछ हमने कहा दिया तुमको!
काश तुम न कहा हुआ भी समझ पाते........

हमारी हरकतों ने बयाँ कर दी थी कहानी पूरी!
काश तुम मेरे दिल की बेचैनियां समझ पाते........

दौर था, निकल गया और अब न वापस आएगा!
काश! उस दौर की तुम कीमत समझ पाते........

ज़िन्दगी और सफलता

खाद्य ऋंखला पिरामिड सिखलाती जीवन का आधार,
छोटा या बड़ा, हर कोई यहाँ पर है एक दूजे का आहार,
यदि बढ़ना हैं ज़िंदगी में आगे और छूना ऊँचाइयों को,
पैनी नज़र, शातिर दिमाग़ और सीखना होगा करना शिकार।

जिस्म और मुहब्बत..

हम जिस्म में मुहब्बत ढूढ़ते रहे
और रूह तन्हा रह गयी ........

एहसास और शब्द!

एहसास कोमल होते हैं और शब्द निष्ठुर.......

इसीलिए प्रेम में ज़ुबान का कम और आँखों का अत्यधिक इस्तेमाल किया जाता है।

ज़ुबान को रख ख़ामोश तू आँखों से बातें कर
प्यार के इज़हार की यही एक माक़ूल अदा होती है।

जादूगर!

जादूगर लगते हो !
जब भी साथ होते हो तो,
समय यूँ छू मंतर हो जाता है.....

आज के दौर में इश्क़...

दौर ए जमाँ बदल रहा है
हर इंसाँ बदल रहा है
कौन कितना बड़ा बहरूपिया
कम्पटीशन चल रहा है।

चोरी से की जाने वाली
चीज़ों का डिस्पले चल रहा है
अब और नया क्या करें
इस पर विचार चल रहा है।

प्रेम जैसी चीज़ का
फ़ैशन चल रहा है
और प्रेम है किधर
इस पर रिसर्च चल रहा है।

मुहब्बत पर नए तरीक़े से
जमकर प्रयोग चल रहा है
इश्क़ करने के तरीक़ों का
क़ारोबार चल रहा है।

रचाए ढेरों स्वाँग हमने
देखो रंगा पुता जिस्म चल रहा है
पैदा कर दे दिलों में लालसा
छलकता हुवा जवानी का पैमाना चल रहा है।

आज़माए हर तरीक़े पर
न कोई संतोष मिल रहा है
पाने को प्रेम इस जहाँ में
हर इंसाँ नंगा चल रहा है।