Friday, 9 August 2019

एक लखनवी की लव स्टोरी.....

वो इमामबाड़ा ही तो था जहां तुझसे नैन मिलें थे,
भूल भुलैया की दीवारों में हम दुनिया भूल गए थे।

सूरत तेरी आंखों में लेकर फिर तुझे ढूढ़ने निकले थे ,
चौक चौराहे से लेकर चूड़ी वाली गली तक खूब भटके थे।

लखनऊ यूनिवर्सिटी से लेकर शिया कॉलेज तक हर सड़क छानी थी,
इस चक्कर में दोस्तों को शर्मा की न जाने कितनी चाय पिलाई थी।

मुलाकात की उम्मीद में हमने नज़राना खरीद लिया था,
इस चक्कर में अमीनाबाद की तंग गलियों को हमने नाप लिया था।

बालाघाट से लेकर यहिया गंज तक हर गली को हमने नापा था,
छतर मंजिल, रेजीडेंसी और ग्लोब पार्क,उन दिनों अपना यही ठिकाना था।

केसरबाग़ चौराहे से निकले हर रास्ते को देख चुके थे ,
इरादे बहुत मजबूत थे पर अब हम उम्मीद खो चुके थे।

थक हार कर, यारों को लेकर उस शाम हम कुड़िया घाट पर थे,
कुछ मोहतरमाओं की टोली के संग तुम भी वहां मौजूद थे।

दिल की धड़कन बढ़ गयी थी न जाने कैसा जादू था,
थाम लिया था हाथ तेरा, मेरा खुद पर न कोई काबू था।

एक तरफ़ा प्यार की तुमको न कोई खबर थी ,
और हम भी बौड़म थे जो ये गुस्ताखी करी थी।

घबराकर तुमने शोर मचाया और फिर पुलिस चली आई थी,
और फिर  हमने पूरी रात ठाकुरगंज थाने में बिताई थी।

थाने आने का हमको कोई नही गिला था,
मार तो पड़ी किंतु तेरे घर का पता वहीं चला था।

फिर तो मिलने मिलाने का सिलसिला जो शुरू हुआ था,
साहू सिनेमा से लेकर हज़रत दरबार तक प्यार हमारा जवाँ हुआ था।

हाथों में हाथ लिए नीम्बू पार्क से लेकर चिड़िया घर तक घूमे थे,
यामाहा पर मेरी बैठ कर इक दूजे को हम महसूस किए थे।

दिलों की बेक़रारी को करार पहुचाने हम कुकरैल पार्क पहुँचे थे,
प्यार को परवान चढ़ाने हम इंदिरा डैम पहुचे थे।

आगे के अंजाम को लेकर तुम बेहद घबराए थे ,
इस कहानी के परिणाम को लेकर बेहद सकुचाए थे।

न घबराओ तुम कि हमारे मिलन का ये लखनऊ गवाह है ,
ये प्यार तब तक जवान रहेगा जब तक गोमती में प्रवाह है।

Friday, 2 August 2019

नामकरण... (नवीन)

एक बार फिर मौका मिला नामकरण का......... यह कार्य पहली बार तो कठिन था ही किन्तु दूसरी बार तो यह नामुनकिन प्रतीत हो रहा था । इस बार तुम्हारे भाईसाहब भी थे जो हमेशा हमारी हर सोच पर प्रभाव डाल रहे थे। जैसे वो बड़े तुम छोटे, वो पहले तुम बाद में। बस इसी चीज से तुम्हे बचाना था। कोई बड़ा- छोटा या पहला-दूसरा नही था। तुम भी अपने भाईसाहब जैसे ही अद्वितीय हो। अपने आप में एक स्वतंत्र सत्ता और एक लाजवाब चरित्र। हाँ.....! एक चीज तो है कि तुम हम सभी में सबसे उन्नत हो। तुम्हारे भाईसाहब के सामने तुम्हारी माँ और मैं थे किंतु तुम्हारे सामने तुम्हारे भाईसाहब भी हैं जो एक अतिरिक्त घटक का कार्य करेंगे। तुम्हारी माँ इस बार तुम्हारे नाम का जिम्मा मुझ पर छोड़ कर अपनी दुनिया में मस्त है। कहती है कि मैं तुम दोनों का ख्याल रखूं या नाम ढूंढू। मैं बेचारा पूरी तरह फंस चुका था। घबराहट थी कि कहीं तुम्हारे साथ अन्याय न कर बैठूं इसलिए अपनी सफाई में इतना कुछ लिख रहा हूँ। अगली कुछ पंक्तियों में तुम्हारे नाम के पीछे की सोच को स्पष्ट करने की कोशिश करूंगा। बड़े होकर जब तुम इसे पढोगे तो शायद संतुष्ट हो जाओ! इसी आकांक्षा के साथ तुम्हारे नामकरण की कोशिश.....

संस्करण द्वितीय किन्तु संस्मरण प्रथम हो,
महत्वपूर्ण एक समान ये तुमको स्मरण हो।

तुलना किसी से नही तुम अतुलनीय हो,
बाद में आये हो किन्तु किरदार अद्वितीय हो।

बड़े, छोटे, पहले, दूसरे ये सब नही करेंगे ,
तुम्हारी हर इच्छा अनिच्छा का ख्याल हम करेंगे।

नामकरण मुश्किल था तुम्हारा हमेशा से हमारे लिए ,
जतन खूब किए किसी का प्रभाव न पड़ने के लिए।

बड़े भैया पहले से तैयार थे अपनी लिगेसी लिए,
मशक्कत करनी पड़ी उनके प्रभाव को कम करने के लिए।

आशीर्वाद तुमको मिलता रहे नीलिमा और आनन्द का,
साथ सदैव रहे तुम्हारे साथ निलिन्द के यथार्थ का।

उन्नत हो उन्नति करो, चरित्र ऐसा कि सब तुमको नमन करें।
झुकना कभी मत ये याद रहे, ईश्वर तुम्हारा उन्नयन करें।

*नवांश-उन्नयन निलिन्द*

Saturday, 20 July 2019

बातें..(कही-अनकही!)

जुबाँ से कैसे बयाँ करें हम इशारों की बातें !
बहुत कम में बहुत कुछ कहना है जो मुझे .........

बहुत कुछ हमने कहा दिया तुमको!
काश तुम न कहा हुआ भी समझ पाते........

हमारी हरकतों ने बयाँ कर दी थी कहानी पूरी!
काश तुम मेरे दिल की बेचैनियां समझ पाते........

दौर था, निकल गया और अब न वापस आएगा!
काश! उस दौर की तुम कीमत समझ पाते........

ज़िन्दगी और सफलता

खाद्य ऋंखला पिरामिड सिखलाती जीवन का आधार,
छोटा या बड़ा, हर कोई यहाँ पर है एक दूजे का आहार,
यदि बढ़ना हैं ज़िंदगी में आगे और छूना ऊँचाइयों को,
पैनी नज़र, शातिर दिमाग़ और सीखना होगा करना शिकार।

जिस्म और मुहब्बत..

हम जिस्म में मुहब्बत ढूढ़ते रहे
और रूह तन्हा रह गयी ........

एहसास और शब्द!

एहसास कोमल होते हैं और शब्द निष्ठुर.......

इसीलिए प्रेम में ज़ुबान का कम और आँखों का अत्यधिक इस्तेमाल किया जाता है।

ज़ुबान को रख ख़ामोश तू आँखों से बातें कर
प्यार के इज़हार की यही एक माक़ूल अदा होती है।

जादूगर!

जादूगर लगते हो !
जब भी साथ होते हो तो,
समय यूँ छू मंतर हो जाता है.....