Thursday, 16 January 2020

मैं बनारस !

जब हमने बनारस को छोड़ा था,
एक हिस्सा अपना वहीं छोड़ा था !
निकल पड़े थे निभाने दुनिया की रवायतों को,
शरीर साथ था मगर आत्मा को वहीं छोड़ा था।

पहले कुछ और ही आनंद था ये जानने वाले ये बताते हैं 
हम भी पूछने वालों को अपनी कहनी कुछ यूँ सुनाते हैं , 
जन्म तो कहीं और ही हुवा था हमारा ये सब जानते हैं,
पर पुनर्जन्म का स्थान तो सबको हम बनारस बताते हैं  ।

किरदार क्या हूँ मैं, कैसे बयाँ करें तुमको, हम नही जानते हैं,
एक नाम मिला था आनन्द हमें और सब इसी से पहचानते हैं,
किसी ने पूछ लिया कि तुम्हारे बारे में कुछ और जानना चाहते हैं 
बनारस के पहले या बाद? जीवन के यही दो हम अध्याय बताते हैं। 

सर्द इश्क़...

रंग कई रूप कई
रोज़ कोई कहानी नई।

दिन वही रात वही 
ज़िंदगी वही तारीख़ नई।

शख़्स वही प्यार वही 
कहाँ से दूँ दलीलें नई?

उन्नीस वही बीस वही 
उन्नीस-बीस की बात नई।

गर्मी वही सर्दी वही 
सर्द इश्क़ में गर्मी नई।

समय का ताना-बाना ...

मानवीय प्रकृति
अजीब सी!
स्मृतियों में उलझा 
बुनता है भविष्य
वर्तमान में 
और 
खबर नही 
वर्तमान की!

अंधी सियासत !

तुम मुझसे मेरे होने का सुबूत माँगते हो 
तुम वही हो ना जो भूतों में यक़ीन रखता है .....!

अच्छे हैं जो आँख से अंधे हैं 
मुझे तो अक़्ल के अंधों पर तरस आता है .....!

ख़ैर छोड़ो तुमको सुबूत क्या देना 
जो अपनों का ना हुवा हमारा क्या होगा .....!

बहुत मुमकिन है कि तुमको तुम्हारी औक़ात याद दिला दें 
मगर छोड़ो, तुमको समय देकर इतनी भी इज्जत क्यूँ दी जाए.....!

आज सितारे गर्दिश में सही मगर रोशनी बाक़ी है अभी 
तुमको जला कर ख़ाक करने को एक चिंगारी ही काफ़ी होगी.....!

वक्त है अभी सम्भाल जाओ ऐ ऊँची उड़ान वालों 
लौट कर हर परिंदे को ज़मीन पर ही आना है .....!

इतिहास और सियासत !

ये जो बड़े गर्व से अपना इतिहास सुनाते हैं, जरूर अमीर होंगे, 
क्योंकि गरीबों का कोई भूत, भविष्य और वर्तमान नही होता।

भूखा पेट, प्यासे होठ और अधनंगे बदन वालों का कोई देश नही होता,
रोटी धर्म इनका और जाति गरीबी, इनके पास लड़ने को हिंदुस्तान पाकिस्तान नही होता।

वीरता और महानता के किस्से लिखे और पढ़े गए केवल राजाओं के,
युद्ध में लड़ने वाले सिपाहियों की बहादुरी के बताओ कितने किस्से सुने हैं तुमने?

तुम्हारा तो कोई इतिहास नही कोई नाम नही, बताओ कौन सुनेगा तुमको,
और वो जो ऊँचाई पर है, तुम पर तरस भी खा लें तो महान हो जाते हैं।

ये सियासी खेल है सियासत के बड़े-2 लोग इसे खेलते है,
तुम भी जरूरी हो इस खेल में वरना ये किसकी जिंदगी से खेलेंगे।

Tuesday, 31 December 2019

कौन देखेगा?

ये जो महफिलों की शान हैं वो महफिलों में बातें बड़ी-२ करते हैं,
तुम मुफ़लिस हो, तुम्हारे झोपड़े में आकर तुम्हारे घाव कौन देखेगा?

ये जो सड़क शानदार है, इस पर गाड़ियाँ सरपट सफर करती हैं,
तुम जो आँचल फैलाए बैठी हो, यहाँ रुकर तुम्हारी भूख कौन देखेगा?

लौट जा अपनों के बीच, मत कर कर फरियाद तू अमीरों की बस्ती में,
अपनी अमीरी की चकाचौंध के बीच तेरी गरीबी का अँधेरा यहां कौन देखेगा?

मत कर उम्मीद तू किसी भी खुदा से, ये पत्थर के ईश्वर क्या तुझे देंगें,
जहाँ पसंद हो सोने चांदी का चढ़ावा, वहाँ तेरी सूखी रोटी कौन देखेगा?

Friday, 27 December 2019

कहानी लहरों की!

नादान नही हूँ मैं बिल्कुल
और हरकतें नही बचकानी
दिल में हैं बेचैनियाँ मेरी 
बैठो सुनाऊं अपनी कहानी ।

विशाल समुद्र शांत सा
पर लहरें क्यों अशांत
इतनी व्याकुल, व्यग्र, बेचैन
आतुर सुनाने को वृतान्त।

समुद्र के किनारे बैठ तुमने 
लहरों का शोर सुना होगा
पाकर खो देने का एहसास 
इससे करुण रुदन क्या होगा।

हम कैसे रोएं
दर्द कैसे बताएं
आंसू बहुत निकले 
पर कैसे दिखाएं।

तड़प बहुत है मिलने को
विरहन सी विचरती हैं
मिलने को प्रियतम से 
कोशिशें हज़ार करती हैं।

उम्मीद नही मिलने की
पर दिल को कैसे समझाएं
दिल भी लहरो जैसा है
किनारे तक आ ही जाए।

पहुंच किनारों पर भी 
हाथ निराशा लगती है
होकर बेसुध सी तब ये
खा कर पछाड़ गिरती हैं।

न मिलने का दर्द सही
पर मिलकर वो बिछुड़ गया
तन मन से होकर वो मेरे
अंदर से ही भेद गया।

मालूम इसे अपनी गति फिर भी
खुद को ये रोक न पाए
दिल के हाथों मजबूर है
इस पागल को कौन समझाए।

मत पूछो मेरी हालत कि 
इस दिल में दर्द बहुत है
रात के सन्नाटे में डर है लगता
और दिन के शोर में सुकून बहुत है।

टूटे दिल वाले साथ को मेरे
अब खुद मुझ तक आते हैं
पाने को राहत वो बैठ बगल में मेरे 
अपनी आप बीती सुनाते हैं।