Saturday, 15 August 2020

स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाएँ 🇮🇳

समान शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सुविधा, सबको रोजगार, भेद-भाव एवं ऊँच-नीच रहित समाज, विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी की कामना के साथ आप सभी को 74वें स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाएँ। तिरंगा यूँ ही फहराता रहे।

🇮🇳

#जय_हिंद 

आज़ाद तन और आज़ाद हो मन,
सच्चे अर्थों में तब आज़ाद वतन।

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१५.०८.२०२०

Friday, 14 August 2020

शहर धुल गया...

तुम्हें आदत थी नए अनुभवों को लेने की,
होकर मलंग देश दुनिया घूमते रहने की।

हमें अपना शहर पसंद था सो यहीं रह गए,
अपनी आदतों के कारण हम दूर हो गए ।

लो हो गयी बारिश, ये शहर धुल गया!
आ जाओ, अब ये फिर से नया हो गया......🤗

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१४.०८.२०२०

Tuesday, 11 August 2020

अलविदा राहत साहब

जहाँ पहुँच कर मिलती राहत,
वहाँ को रुख़सत हुए आप राहत!

यूँ बेबाक़ शब्दों में अब कौन गुनगुनाएगा ?
बेख़ौफ़ होकर सियासत को आँखें कौन दिखाएगा ?

सत्ता के आगे जहाँ रुंध जाते हैं गले सबके...!
हुकूमत को उसकी औक़ाद कौन दिखाएगा ?

माना कि तेरा जाना तय था, सबका है!
तेरे जाने से ख़ाली हुयी जगह अब कौन भरेगा?

तू गया मगर विरासत में इतना कुछ छोड़ गया .....
इस ख़ज़ाने को देख तू हमको सदा याद आएगा ........

जब भी खुद को अकेला और कमजोर पाएँगे....
तेरे शब्दों की ताक़त से खुद को मज़बूत पाएँगे!

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/११.०८.२०२०

Sunday, 9 August 2020

लखनऊ-एक खोज....!

मूलतः लखनऊ का नही हूँ मैं ! लेकिन २००६ से अध्ययन और नौकरी के चलते इससे जुड़ा रहा। वैसे लखनऊ से होकर गुजरना बचपन से ही होता रहा। पता नही क्यूँ इस शहर को लेकर मेरे मन में एक अलग कौतूहल और नजरिया होता था कि नवाबी शहर है, बड़े लोग रहते होंगे, कुछ अलग मिज़ाज के लोग मिलेंगे- बिल्कुल नवाबी, साहित्यिक टाइप, नृत्य और संगीत का शौक रखने वाले आदि-२। अवध की शाम कुछ खास होती होगी! जो कि बहुचर्चित भी है। शाम होते ही महफ़िलें सजती होंगी।लोग इकट्ठा होते होंगे। शेरो-शायरी का दौर और लतीफों के संग ठहाकों की गूंज। मेरा मानना था कि यहाँ की महफ़िलें और शहरों से कुछ जुदा होती होंगी। जब भी टेम्पो में बैठता और टेम्पो गोमती नदी को पार करते हुए लखनऊ यूनिवर्सिटी के बगल से गुजरता तो भाई-साहब पूछिये मत! क्या साहित्यिक और रेट्रो वाली फीलिंग आती थी हृदय में। एक गज़ब की ऐंठन उठती थी रोम-२ में। इस पर कहीं टेम्पो वाला ये गाना बजा दे- चलते-२ यूँ ही कोई मिल गया था..... सरे राह चलते-२ (पाकीजा)! तो मैं अपने अंदर के ज़हर को खुद नहीं सम्भाल पाता था और नीला हो जाता था😁। मेरी कल्पनाओं और टेम्पो वाली वास्तविकता दोनों मिलकर बिल्कुल अलग ही दुनिया के रास्ते खोल देती थीं। कोई थोड़ा और धक्का दे देता तो मैं पृथ्वी पर मिलता ही नहीं। 

खैर....! नौकरी लगी। लखनऊ ही पोस्टिंग मिली। पोस्टिंग के शुरुवात में ही चौक क्षेत्र के बिजली अधिकारी। एक बार को तो विश्वास ही न हो कि मेरे साथ इतना अच्छा कैसे हो सकता है! चौक में मेरे जे०ई० रहे गोयल जी और थारू जी। बिल्कुल बिंदास प्रकृति के लोग। गोयल जी का गायन, मेरा कविता पाठ और थारू जी का आदर्श श्रोता होना एक किलर कॉम्बिनेशन था। शाम होते ही हम चौपाल लगा लेते। मेडिकल कॉलेज बिजलीघर की शाम शानदार होती थी। यूनिवर्सिटी से पढ़ कर आया था और मेडिकल यूनिवर्सिटी कैंपस में बैठकर मेडिकल स्टूडेंट्स को देखना मुझे हमेशा बी० एच० यू० पहुँचा देता। आखिरकार कॉलेज से निकले अभी दिन ही कितने हुए थे ! कुड़िया घाट की चर्चा कभी और होगी। कुछ दिन तो अच्छा लगा। फिर उसके बाद एक बेहद ही कम अन्तराल पर लखनऊ में ही अन्यत्र तैनाती मिल गई। 

लखनऊ की झलक मुझे कुछ हद तक आफताब सर और अफसर हुसैन साहब में देखने को मिलती थी और उनके साथ बैठने में अच्छा भी लगता था। गज़ब की उर्दू अदब में लिपटी जुबान। कसम से बस सुनते ही रहे आप उन लोगों को। उस समय मेरा कार्यालय रेजीडेंसी के बगल वाले लेसू भवन में हुआ करता था। यहाँ तक तो ठीक था, मुझे लखनऊ का एहसास होता रहता था। दीप होटल में दोस्तों के साथ बैठना और फरमाइशी ग़ज़लों का दौर भी लखनऊ को ज़िंदा कर देता था कभी-२। दीप होटल जैसा होटल पूरे लखनऊ में नहीं। फिर समय बीतता गया और व्यस्तता बढ़ती गई। इस दौरान ४-५ वर्षों में कई लोगों से मुलाकात हुई। कुछ बड़े तो कुछ छोटे! सबमें कुछ न कुछ ढूंढता रहता। शायद जो लखनऊ मैं ढूंढ रहा था वो अब लोगों में बचा ही नहीं था। 

इसके बाद मैंने अपनी लेखन के शौक पर ध्यान देना प्रारम्भ किया। कुछ पुस्तकों को शौकिया प्रकाशित भी किया गया। और फिर इस शौक ने थोड़ी पहचान दिलाई। जनाब वाहिद अली वाहिद साहब से भी साक्षात मुलाकात हुई। मेरा सौभाग्य था और आज भी है। लेखन की वजह से इंदौर जाने को भी मिला और कल्प एशिया के संयोजकों और संस्था से जुड़े कुछ अच्छे लोगों से मिलने को मिला! फिर उन लोगों को अपने लखनऊ भी बुलाया गया। लखनऊ यूनिवर्सिटी में एक साहित्यिक कार्यक्रम भी किया गया। बृज मौर्या और राम आशीष के सहयोग से। एक हरफनमौला किरदार पवन उपाध्याय जी से भी मुलाकात हुई। इस दौरान लखनऊ को करीब से जीने का मौका मिला। इतना सब कुछ किया गया तो केवल लखनऊ की खोज में ही। लखनऊ मिला लेकिन टुकड़ों में। टुकड़ों में इसलिए कह रहा हूँ कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जरूरतों और इस टेक्नॉलजी के युग में आवश्यकता से अधिक व्यस्त हो गया है। व्यस्तता इतनी कि अब सुबह के बाद रात होती है, दोपहर और शाम नहीं होती। लखनऊ की शाम को मत खोजिये, वो अब नहीं मिलती। 

नौकरी में प्रोन्नति मिल चुकी है। शायद लखनऊ छोड़ने का समय भी आ गया है। लेकिन मन असंतृप्त है। एक खोज है जो अधूरी रह गई। वो शाम नहीं मिली जिसकी कहानियाँ सुनते थे। कुछ महफ़िलों के आयोजन होते हैं किन्तु उनका मजा लेने के लिए आपका वी० आई० पी० होना जरुरी है लेकिन उनमें मजा नहीं होता केवल आव भगत करने या कराने में समय जाया जाता है। वो महफ़िल नहीं मिली जिसमें लखनऊ वाली गर्म-जोशी, मेहमान-नवाजी, शेरो-शायरी, संगीत, ग़ज़ल और लाल-काली युग्म की साड़ी में लिपटी तुम से एक हसीन मुलाकात हो 😍😛! खैर ......  उस शाम की खोज अभी जारी है। लखनऊ में लखनऊ को खोज ही लेंगे......... एक दिन !

यदि लखनऊ से होकर गुजरना चाहते हैं तो नीचे दिए लिंक को जरूर चेक करें ! आपको अच्छा लगेगा। 



~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०९.०८.२०२०



Saturday, 8 August 2020

कहाँ गए वो दिन !

एक व्यस्त दिन हो ! इतना व्यस्त कि ख़ुद की ही खबर न हो ! सर भन्नाया हुवा हो ! क्या कर रहे हैं और वाक़ई में क्या करना है, कुछ समझ न आ रहा हो ! जैसे-तैसे काम निपटाया गया ! शाम हो गयी ! फिर कुछ सोचें कि इससे पहले आपके घनिष्ठ मित्र का फ़ोन आ जाए !

अबे चलो कहीं बैठते हैं !

कहाँ?

अबे अपने अड्डे पर !

अच्छा वहीं ....!

हाँ!

ठीक है। मिलो वहीं पर । निकल रहा हूँ । 

बस सारा तनाव अपनी पसंदीदा पेय के अन्दर जाते ही छू मंतर 😆! पता नही कहाँ गए वो दिन ? इस मनहूस काल में उन दिनों की चर्चा करना ही कितना सुखद है और साथ में वो चीज़ अब न जाने कब करने को मिलेगी इसका दुःख भी ☹️🧐

आप भी ऐसे सुखद पल और अपना वर्तमान दुःख यहाँ साझा कर सकते हैं । खली बैठे हैं हम तो चर्चा कर ली जाएगी 🤣

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०८.०८.२०२०

फ़ोटो ०५.०७.२०१७ की है ।

Friday, 7 August 2020

अग्नि!

ख़ाली बैठे समय का उत्पाद है ये फ़ोटो ! लेकिन ग़ज़ब का है ये फ़ोटो। व्यक्ति के भीतर के अग्नि तत्व को दर्शाती ! जीने के लिए ज़रूरी तापमान को बनाए रखने के लिए कई तरह के ईंधन की आवश्यकता होती है। भोजन के सिवा भी कई ईंधन हैं जो इस आग को बनाये रखने के लिए ज़रूरी हैं जैसे - इच्छाएँ, जिम्मेदारियाँ, ज़रूरतें और चाहत....! इच्छाएँ और चाहत में अन्तर है इच्छाएँ जीवित या मृत किसी भी वस्तु की हो सकती है किन्तु चाहत केवल जीवित तत्व की होती है। ये मेरा अपना दर्शन है। ये आग यूँ ही इतनी तीव्र नही है ......! भड़की है ये ...... केवल तुम्हारी चाहत में .............।

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०७.०८.२०२०

Wednesday, 5 August 2020

राम राज्य .......!

०५ अगस्त २०१९ दिन बुधवार,
तिथि ये कोई साधारण नहीं,
चेहरे आज ये जो शांत दिख रहे,
इनमें छुपा वर्षों का संघर्ष कहीं।  

इतिहास तो हमने बहुत पढ़ा था,
आज आँखों से बनते देख रहा हूँ,
गर्व का क्षण है और खुश-किस्मती मेरी,
कीर्तिमान का शिलान्यास देख रहा हूँ। 

राम नाम में ही छिपी,
न जाने कितनों की दुनिया,
चेहरे सबके सूखे थे,
प्यासी थी सबकी अँखियाँ।

जिस अयोध्या प्रभु जन्म लिए,
जिस घर भरी किलकारियाँ,
रूप सुहावन राम लला का 
उनमें में बसती थी सारी खुशियाँ। 

ये कैसा दुर्भाग्य हमारा था,
प्रभु से छिना उनका घर-द्वारा था,
क्षीण हुवा गौरव कौशलपुरी का,
उजड़ा भक्तों का संसार सारा था। 

चहुँ ओर जब राम राज्य था,
कहते हैं सब नर में राम बसते थे, 
सभी दिशाओं में थी सम्पन्नता 
सुना है घी के दिए ही जलते थे। 

अब जब राम लला फिर से,
विराजेंगे अपने घर आँगन,
प्रभु राम की कृपा से देखो,
पूरा देश हुवा है मस्त मगन। 

गलत हुवा था या अब सही हुवा,
मैं इतिहास नहीं अब खोदूँगा,
राम राज्य की जो है कल्पना वो,
आये धरातल पर बस यही चाहूँगा। 

बहुत हो गया द्वंद्व दो पक्षों में.
अब न शेष कोई विषमता हो,
प्रभु भारत देश में अब तो बस,
हिन्दू मुस्लिम में सम रसता हो। 

हो जाएँ ख़त्म सारे भेद-भाव,
न ऊँच-नीच न कोई जात-पात,
समान शिक्षा और सबको रोजगार,
हो देश की उन्नति की बात। 

सबका साथ सबका विकास हो,
समानता, सम्पन्नता ही हो सर्वस्व,  
जगदगुरु बनने का मार्ग प्रशस्त हो,
स्थापित हो फिर से भारत का वर्चस्व। 

सियावर राम चंद्र की जय !

सबके राम, सबमें राम !

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०५.०८.२०२०