Tuesday, 11 August 2020

अलविदा राहत साहब

जहाँ पहुँच कर मिलती राहत,
वहाँ को रुख़सत हुए आप राहत!

यूँ बेबाक़ शब्दों में अब कौन गुनगुनाएगा ?
बेख़ौफ़ होकर सियासत को आँखें कौन दिखाएगा ?

सत्ता के आगे जहाँ रुंध जाते हैं गले सबके...!
हुकूमत को उसकी औक़ाद कौन दिखाएगा ?

माना कि तेरा जाना तय था, सबका है!
तेरे जाने से ख़ाली हुयी जगह अब कौन भरेगा?

तू गया मगर विरासत में इतना कुछ छोड़ गया .....
इस ख़ज़ाने को देख तू हमको सदा याद आएगा ........

जब भी खुद को अकेला और कमजोर पाएँगे....
तेरे शब्दों की ताक़त से खुद को मज़बूत पाएँगे!

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/११.०८.२०२०

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