बहुत दिनों बाद..... आज अपने लैप टॉप के साथ समय व्यतीत
करने का मौका मिला ! ऐसे ही कुछ भी इधर- उधर करते-करते एक ट्रेवलिंग
वेबसाइट पर पहुंच गया | यूँ ही नज़र एक एडवेंचर ट्रिप पर पड़ी - मनाली से
लद्दाख रोड ट्रिप और वो भी बाइक से | सुन तो बहुत रखा था इसके बारे में
मेरे अपने कई दोस्तों से, जो अपने आप को एडवेंचर के शौकीन मानते थे | कई
बार प्लानिंग भी की लेकिन वही टांय-टांय फिस्स, जो हमारे कई प्लान्स के
साथ अक्सर होता रहता है |
कौतुहूल वश मैने भी अपनी उंगलियों
की गति बढ़ा दी | संडे की सुबह थी और कुछ खास करने को भी नही था इसलिए गूगल
का सहारा लेकर इस रोमांचक ट्रिप से जुड़ी कई कहानियों को, जो किसी न किसी
के व्यक्तिगत अनुभव ही थे, पढ़ डाली और उनके द्वारा साझा की गयी तस्वीरें
भी देख डालीं | वाह. . . . . . . . . . . . . . . मजा ही आ गया, बेहद
सुखद अहसास | मै तो कुछ देर के लिए वहीं पहुच गया | मनों बाइक पर सवार चला
जा रहा हूँ | एक लम्बा रास्ता, सर्पाकार, पहाड़ियों के बीच से निकलता हुआ . . . . . . . . . जहां तक नज़र पहुचती केवल पहाड़ ही पहाड़, जिन पर सफेद
बर्फ की चादर पड़ी हुई है और उनके बीच से गुजरते हुए रास्ते यूँ प्रतीत
होते हैं कि किसी ने सफेद कागज पर एक लाइन खींच दी हो |
खाना खा लो.. . . . . . . . . .सुबह से लैप टॉप मे ही घुसे हो -
पत्नी और माता जी दोनो की अवाज एक साथ कानों मे आयी। सिद्धियों की
प्राप्ति से बस कुछ कदम ही दूर था कि इन दो मातृशक्तियो द्वारा सत्यता के
धरातल पर खींच लिया गया। सपना टूट चुका था। पेट भरने का समय हो गया था सो
तौलिया उठा कर बाथरूम की तरफ चल दिए नहाने को, मन मसोसते हुए, जैसे कोई
मोती-माणिक हाथ से छूट गया हो। नहाते- नहाते सपनों के सभी कच्चे रंग पानी
के साथ बह गए और हम भी फटाफट पेट पूजन करने चल दिए।
दिल मे एक स्पंदन हुआ,
इच्छाओं ने पर फैलाये,
घर पर बैठे-२,
हम जाने कहां हो आए।
इच्छाओं ने पर फैलाये,
घर पर बैठे-२,
हम जाने कहां हो आए।
तंद्रा टूटी आँख खुली ,
सपनों की सारी पोल खुली,
सच्चाई की तेज आँच में ,
ख्वाहिशों की होलिका जली।