रात की इस बेख़याली में इक ख़्याल ऐसा आ जाए....
बंद आँखों में नींद आए न आए, बस चेहरा तेरा आ जाए ।
इस लम्बी और सुनसान सड़क पर इक मोड़ ऐसा आ जाए....
घूमने को जब भी मैं तनहा निकलूँ और तुझसे मुलाक़ात हो जाए ।
ज़िंदगी तो काटनी ही है, कट रही है और कट ही जाएगी....
अगर तेरे साथ कट जाए तो बस जीने में मज़ा ही आ जाए ।
रंगों को बदलते ख़ूब देखा है और धोखे भी हमने हज़ार खाए....
इक साथ तेरा सच्चा था अब और किस पर भरोसा किया जाए।
खुदा करे काश कि इन ग़ैरों में कोई अपना नज़र आ जाए....
चेहरों की इस बेतहाशा भीड़ में चेहरा तेरा नज़र आ जाए ।
आओ मिलकर इन घड़ी की सुइयों को उलटा घुमाया जाए....
आगे तो जुदाई है कि उस पुराने हसीन दौर में फिर से वापस चला जाए ।
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