Thursday 16 January 2020

मोहब्बत और तुम !

क्या ख़ाक असर होगा अल्फ़ाज़ों के समंदर में,
दिलों की बात समझने को आंखों के ये इशारे ही काफ़ी है....

तुमने कभी देखकर यूँ ही मुस्करा दिया था,
और हम आज तक तेरी मुस्कान का मतलब ढूँढ रहे हैं.....

उनको शिकायत है कि हम उन पर गौर नही करते !
गौर करने वाली बात है कि शिकायत भी हमसे ही......

तुम तो मेरे लिए यूँ ही बेवजह बेहद ख़ूबसूरत थे....
तुमको या दूसरों को मैं इसकी वजह क्या बताऊँ ?

ये जो मेरे हिस्से में रात सुहानी है....
तेरी ही तो निशानी है!

वो दुवाओं में भी अपना हुस्न बरकरार माँगती है , 
हमसे दीवानगी वो कुछ इस क़दर बयाँ करती है। 

मदहोश करने को इन तरंगों में वेग कितना है.... 
मुझमें उठती है जो तेरी उँगलियों के छूने के अन्दाज़ से।

काश तुम भी इस बारिश सी होती 
तुम बरसते और हम भीगते !
और ये सिलसिला यूँ ही चलता रहता...

सुना है बेमौसम बरसात भी होती है,
तुम भी मिल लिया करो.... कभी... बेवजह....!

बरस बीते, और अब तो तेरे दिए सभी घाव भी भर गए हैं.....!
लेकिन कमबख़्त ये पुरवी बयार..... काफ़ी है.... तेरी याद दिलाने को !

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