Tuesday, 10 March 2020

मेरे दो अनमोल रतन...


तुम्हारी इन अलौकिक और भोली अदाओं पर सब कुछ लुटाऊँ,
बेशक़ीमती तुम, मुझको मिले इस संसार में मैं विश्वास न कर पाऊँ,
तुम्हारे रूप और कलाओं में रस इतना कि इकट्ठा कर समुद्र हो जाऊँ,
अगर लिखने बैठूँ तो वर्णन करते करते कहीं सूरदास न हो जाऊँ !


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