Thursday 26 November 2020

शिकायतें....... जीवन से!

ये सूरज सुर्ख लाल है बिल्कुल मेरी तरह लगता है,
इस ढलती शाम से बेहद नाराज लगता है।

कितना कुछ दिया है ऐ जिन्दगी तूने जीने को,
कितना कुछ रोज रह जाता है मेरे समेटने को!

तू ही बता ऐ नींद कैसे गले लगा लूँ तुझे मैं,
मंजिल को दो कदम ही बढ़ा था और रात हो गई।

तेरे साथ की खुशबू से सराबोर महक रहा हूँ इस कदर,
कि इत्र के सौदागर थे और हम अपना सारा कारोबार भूल गए।

साथ होते हो तो दूर जाने का डर लगा रहता है, तुम्हें पता था!
ख़त्म करने को मेरा डर इतनी भी दूर जाने की क्या ज़रूरत थी?

एक मुलाकात को देखो कितने दिन पलों में बीत गए,
चेहरा तेरा देखने को कमबख़्त ये पलकें झपकना भूल गए।

खोकर ख़्वाबों को हमने इतनी सी उम्र में बस यही सीखा है , 
पछतावा कोई नहीं अब बस उन ख़्वाबों की यादों में जीना है।

एक सीख है जो तू दे गया मुझे, अब ताउम्र साथ रहेगी,
होशियार था तू, तुझे पता था कि ये साथ उम्र भर का नहीं।

राह ताकते रहे कि दिल के इस घरौंदे में तुम लौट आओगे एक दिन,
लो शाम ढल गई इंतजार में और हम राह में दिया जलाना भूल गए।

ये सूरज सुर्ख लाल है बिल्कुल मेरी तरह लगता है,
इस ढलती शाम से बेहद नाराज लगता है।

©अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२५.११.२०२०

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