मेरी तो बस यही एक चिंता और सारा ग़म है,
जीवन में कुछ भी करने को समय कितना कम है।
काम में समय ले लो तो उम्र निकल चली जाती है,
और सही उम्र पर काम करने को समय कितना कम है।
एक बार में कई काम करूँ या एक काम कई बार,
एक बार में एक काम से कहाँ भरता अपना मन है।
दैनिक दिनचर्या से हटकर कुछ भी अलग नहीं होता है,
रोज़ वही घिसी ज़िन्दगी जीने का अब मेरा नहीं मन है।
कुछ नया हासिल करने को थोड़ा ठहर सोचना होगा,
कुछ नया करे बिना देखो कहाँ मिलता नया जीवन है।
©️®️नया जीवन/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०२.०८.२०२१
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