कितनी आसानी से लोग यहाँ दूसरों की गलती बता देते हैं,
जो ख्वाहिशों को जी गया, आनन्द बताओ वो गलत कैसे?
जिंदगी सफर है, मंजिल नहीं, सिर्फ आगे बढ़ना क्यूँ?
यहाँ रुकना भी जायज, चलना भी और पीछे मुड़ना भी!
सफर में साथ हो तो उम्मीदें लग ही जाती है मुसाफिर से,
यहाँ अपना भरोसा नहीं तो दूसरों पर बाजी क्या खेलना।
जीना है अगर सलीके से दुनिया में तो बस दिमाग रखिये,
दिल वाले न माने कोई नियम, तभी तो क़त्ल किये जाते हैं।
जो पकड़े गए चोर, जिसने कुबूल लिया वो मुजरिम लेकिन
सही बताओ जो बच गए वो क्या मुझसे नज़रें मिला पाएँगे।
नहीं आते समझ में मुझे इस दुनिया के कायदे कोई आनन्द,
दिल को इच्छाओं का कब्रगाह बनाना आखिर कहाँ तक ठीक है?
कितनी आसानी से लोग यहाँ दूसरों की गलती बता देते हैं,
जो ख्वाहिशों को जी गया, आनन्द बताओ वो गलत कैसे?
©️®️दिल और दुनियादारी/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१४.०८.२०२१
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