हमें तो बस ये ग़म है कि हमारी उम्र बढ़ती जा रही है।
कच्ची उम्र के थे तो जवान ख़्वाहिशों की लड़ियाँ बड़ी थी,
और तो अब यूँ है कि बस जिम्मेदारियाँ बढ़ती जा रही हैं।
तजुर्बा कम था हमें, इश्क़ के तरीक़ों से अनजान बड़े थे,
जानकार हुए जबसे बस खुद पर ग़ुस्सा निकाले जा रहे हैं।
ज़ख्मों को कुरेद दिया उन्होंने कहकर कि तुम सीधे बहुत थे,
कितने शानदार मौक़े गँवाने का अफ़सोस किए जा रहे हैं ।
भूल जाने की आदत बुरी है शक्लें याद नहीं रहती हमको,
रोज़ नयी शक्ल गढ़कर तुझसे रोज़ नया इश्क़ किए जा रहे हैं।
अपना लिखा भी याद नहीं और वो सुनाने की फ़रमाइशें करते हैं,
रोज़ नयी इबारत लिख कर हम उनकी इबादत किए जा रहे हैं ।
दिल को शांत रखने को एक अदद मुलाक़ात ज़रूरी बड़ी थी,
वरना बेचैन दिल से हम मासूम शब्दों को परेशान किए जा रहे हैं।
लोग कह रहे कि मेरी लेखनी की धार बढ़ती जा रही है,
हमें तो बस ये ग़म है कि हमारी उम्र बढ़ती जा रही है।
©️®️लेखनी/अनुनाद/आनन्द/२७.०५.२०२२
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