गुजरता यहाँ कुछ भी नहीं
होता नया कुछ भी नहीं
नज़रें मिली थी तुझसे बिछड़ते वक़्त
मैं आज भी हूँ ठहरा वहीं !
चल तो दिये थे पहुँचे कहीं नहीं
रास्ता लम्बा ये तुझ तक जाता नहीं
मंज़िल की खोज मैं क्यों करता भला
जब सफ़र में तू हमसफ़र नहीं !
उम्र बीती पर बीता कुछ नहीं
आगे बढ़े पर बढ़ा कुछ भी नहीं
२३ से २४ हुवा पर पूछों बदला क्या
यादें धुँधली हुईं भूला कुछ नहीं!
©️®️बदला कुछ नहीं/अनुनाद/आनन्द/३१.१२.२०२३
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