रोका भी नही
टोका भी नही
छोड़ गए हमको और
सोचा भी नही ।
बोला भी नही
जताया भी नही
हमने बढ़ाया हाथ, उन्होंने,
थामा भी नही ।
इसीलिए मैं
रोया भी नही
जागा भी नही
ख़त्म कर दी सारी यादें, किसी एक को,
पिरोया भी नही।
रोका भी नही
टोका भी नही
छोड़ गए हमको और
सोचा भी नही ।
बोला भी नही
जताया भी नही
हमने बढ़ाया हाथ, उन्होंने,
थामा भी नही ।
इसीलिए मैं
रोया भी नही
जागा भी नही
ख़त्म कर दी सारी यादें, किसी एक को,
पिरोया भी नही।
हैं खाली कुर्सियाँ अब,
सुनने को कोई नही अब
दिल की कहानी बयां करूँ तो करूँ किसको
महफ़िल में नही दिलवाले अब।
जवान लोगों की शहर में कमी अब
ख़त्म हो गयी यहां की रौनक अब
अब तो बस अनपढ़ ही बचे हैं सब तरफ
पढ़ लिख कर कौन यहां रुकता है अब।
जो जितना ज्यादा पढ़ा उतना बड़ा नौकर अब
बन गए नौकर और हो गए पैसों के गुलाम अब
खत्म हुए दिलों के वो रजवाड़े और जुबां की मिठास
बहुत दिन बाद मिले तो पूँछ बैठे कहीं कोई काम तो नही अब!
संभावना
असंभावना
सपना
हक़ीक़त
सफलता
असफलता
भटकना
या फिर ठिकाना
तुम्हारा साथ
या फिर अकेलापन
कोशिशें बहुत की
पहुचें भी
और नही भी
अब तो बस
यही सोचना
काश!
अब तो सुबह होती है केवल और केवल घबराहट में,
टूटता बदन, निराश मन, इच्छा नही कही जाने की।
क्या बताएं बरखुरदार समस्या ज्यादा कुछ भी नही,
एक शाम और कुछ अदद छुट्टियां मिली नही हैं जमाने से।
नीम हकीम फिजिशियन सर्जन, सबकी नसीहतें बेकार चली गयी ।
तूने सुबह टहलना जो शुरू किया, न जाने कितनों की सेहत सुधर गयी।
तजुर्बा दिल के इस खेल का सीखा हमने
सब कुछ लगा कर दाँव पर,
डूबकर आग के दरिया में
पहुँचना होता है साहिल पर ।
यूँ तो इक बार सभी
गुज़रते हैं इश्क़ की राह पर,
दिल में उसकी सूरत लिए
रहते सातवें आसमान पर ।
आसानी से मिलती नही मंज़िल
रखना पड़ता है पत्थर दिल पर,
आशिक़ी में पहचान बनती है
ख़ुद को उसमें खोकर ।
दिल की चोटों से डरने वाले
छोड़ दो ये रास्ता समय पर,
मंज़िल पाने को सफ़र लम्बा और
चलना है काँटों भरी राह पर ।
और बनता नही है कोई यहाँ कवि
इश्क़ की बाज़ी जीत कर,
खूं को स्याही करना पड़ता है
यूँ ही नहीं उतरता दर्द काग़ज़ों पर ।
पाने को साथ तनहा रास्तों में हमसफ़र ढूढ़ता हूँ,
पुकारे कोई मुझे वीरानों में वो आवाज़ ढूढ़ता हूँ,
वैसे तो ख़ुद की संगत का मज़ा कुछ और है लेकिन,
ये जिंदगानी लम्बी और मैं जीने की वज़ह ढूढ़ता हूँ।
आगे बढ़ते रहना ही ज़िंदगी है मैं ख़ुद की पहचान ढूंढ़ता हूँ,
नाम लेने में भी सोचना पड़े मैं अपने नाम में वो जान ढूंढ़ता हूँ,
ऐसी हैसियत हो जाए कि कोई सोच भी न पाए ऐ मेरे मालिक कि,
साथ रहने वालों के सीने हो जाए चौड़े मैं अपना वो क़द ढूंढ़ता हूँ।