Monday, 13 April 2020

लोग इश्क़ में क्या-२ माँगते हैं...

इस शहर में उनके दीवाने बहुत हैं.......
कोई चक्कर हो न हो पर उन पर अपना हक़ सब ख़ूब जताते हैं ।

लोग इश्क़ में न जाने क्या क्या माँगते हैं.......
कभी हमारा पसंदीदा रंग भर पूछ लिया था उन्होंने और हम इसे ही क़िस्मत मानते हैं।

आज आए हैं वो महफ़िल में पहन कर साड़ी.......
बात करने के कितने बहाने ढूँढकर सब उनके पास जाना चाहते हैं ।

लोग कहते हैं कि इस रंग की साड़ी ख़ूब फ़बती है उन पर.......
और हम ख़ुश हैं कि वो हमारी पसंद के रंग का ख़याल ख़ूब रखते हैं।

इस मशरूफियत में भी वो हमारी तरफ देखकर मुस्कुराते हैं.......
और हम उनके मुस्कान की बारीकियों को भी शोध का विषय मानते हैं।

लोग इश्क़ में न जाने क्या-क्या माँगते हैं...
और हम इस भीड़ में उनके बग़ल से गुज़र जाने को भी क़िस्मत मानते हैं।

Saturday, 11 April 2020

ईश्वर तेरे रूप अनेक!

बदलते दौर में न जाने मैंनें क्या-२ देखा,
हे भगवन तुझे भी मैने रूप बदलते देखा।

तू रहता आलीशान मंदिरों में जब अमन चैन हो,
तुझे शुद्ध घी और मेवे के भोग लगाते मैंनें देखा।

इन पुजारियों का तो पता नही मगर आज मैंने तुझको, 
इलाज करते डॉक्टर और गश्त लगाती पुलिस में देखा।

महामारी है फैली चारों तरफ तो आज मैंने तुम्हें
गलियों में सफाई को उतरे जमादारों में देखा।

छिड़ी जंग तो तुझको लहू बहाते सैनिकों में देखा,
और भूख लगी तो पसीना बहाते किसानों में देखा।

जब घर में मेरे अँधियारा छाया मैंनें तुझे याद किया और फिर,
बिजली का तार जोड़ते तुझे बिजली कर्मचारी के रूप में देखा।

ठहर गया है सब कुछ और नही कुछ आज कमाने को,
गरीबों के लिए लुटाते खजाने, आज तुझे इन अमीरों में देखा।

पूजा-पाठ, दिया-शंख और न जाने कितने कर्मकाण्ड,
मैं ठहरा पागल जो तुझे ढूढने को दुनिया भर में घूमा।

जब भी मुसीबतों में हुआ तो कुछ यूँ पूरी हुई तेरी खोज,
मदद को आगे आये प्रत्येक इंसान में मैंनें तेरा रूप देखा।

Tuesday, 7 April 2020

आँखें...

आँखें...

खूबसूरत आँखों पर बहुत कुछ लिखा गया है। मैंने इनके बारे में थोड़ा पढ़ा और सुना भी है। इन आँखों ने बहुत ही क़हर ढाया है। न जाने कितनी लड़ाइयों की वज़ह भी बनी हैं ये आँखें। आँखो के इशारों से कही गयी बात आँखों से ही पढ़ लेने वाले लोग कम ही मिलते हैं। पर जो इस कला में माहिर हो गया उसने दुनिया के सभी रस ले लिए, वो भी बिना किसी के पता चले और बिना किसी को नुकसान पहुँचाए। ज्यादा नही लिखूँगा इस पर । बस जो गुणी हैं वो समझ गए होंगे....
😋

मृगनयनी, कमल नयन और न जाने कितने रूप और परिभाषाओं में आँखों की तारीफों के पुल बाँधे गए हैं। पहले ये सब केवल कवियों की कपोल कल्पनाएँ लगती थी मुझे लेकिन ये सच भी होता है। नीचे  फ़ोटो में जो आंखें हैं वो बिल्कुल कमल नयन हैं। आंखों का वक्र बिल्कुल कमल की पत्तियों के समान हैं। मैं इन आँखों के दर्शन  रोज करता हूँ। 

एक खास और अनोखा चुम्बकीय आकर्षण है। मैं ही नही कई और भी हैं कतार में जो इन आँखों से प्रभावित है। आप भी जरूर महसूस करेंगे इस सम्मोहन को, जो इन आँखों मे सागर जितनी विशालता लिए हुए है......!

#magneto #eyes #alevelbeyond #godblessyou

Saturday, 28 March 2020

जरूरी है...

कुछ नया पाने को,
दौड़ अच्छी है पर,
साँस लेने को भर दम,
ठहरना भी ज़रूरी है।

चलते रहने का नाम ज़िंदगी,
तुम आगे खूब बढ़ो पर,
अपना कौन छूट गया पीछे
मुड़कर देखना भी ज़रूरी है।

चिड़ियाँ आज भी चहकती हैं,
हवाओं में संगीत भी है पर,
गीत मधुर सुनने को कोई,
तुम्हारा शांत रहना भी जरूरी है।

सब कुछ मिल जाए तुमको,
इरादे नेक बहुत हैं पर, 
कोशिशें जारी रखने को,
कुछ छूट जाना भी जरूरी है।

मोहब्बत-२ करते हो सुनो जरा,
इश्क तुम खूब करो पर,
किसी चेहरे को देखकर तुम्हारे,
दिल का धड़कना भी जरूरी है।

दिल धड़कता है तो धड़कने दो,
दिल की बात उससे कह दो फिर,
आगे बढ़ाने से पहले कोई कदम,
सुनो मेरे आशिक उसकी हाँ बेहद जरूरी है।

शिकायतें भर सक करो सबसे,
दिल का गुबार निकालो पर,
तुम किसके काम आए जरूरत में,
ये समझना भी जरूरी है।

जमाने के साथ चलो तुम,
तरीका जायज़ है पर,
भरने को ऊंची उड़ान गगन में
तुम्हारा गिरना भी जरूरी है।

Tuesday, 24 March 2020

प्रकृति और महामारी...

जितनी धूल चढ़ी थी जिन्दगी की किताब पर सब साफ हो गई,
एक अदृश्य प्रहार प्रकृति माँ की हम सबकी आँखे खोल गई।

धरा रह गया सारा ताना बाना आज हमारे ज्ञान का,
दम्भ ढह गया सब जीवों से होना हमारे महान का ।

ऐसी प्रगति के हम सूत्रधार बन गए कि भूल गए जीवन को,
अब डर से घर में कैद हो गए बचाने को अपने-2 जीवन को।

ज्ञान-विज्ञान ने दी तेजी हमको पहुंच गए हम मंगल और चाँद पर,
वही तेजी अब भारी पर गयी देखो पूरी मानव प्रजाति के प्राण पर।

बाहर दीवारों पर रंग-रोगन करते रहे हम अन्दर से खोखले हो गए,
अंधी भौतिकता की प्रगति में हम जीवन के सारे बेसिक भूल गए।

चलना था साथ सभी को पर हम तो दौड़ में आगे निकल गए,
ऊंचाई तो बहुत मिली हमें पर देखो हम वहां अकेले रह गए।

कुछ प्लेटों में सब कुछ था पर देखो उनको खाने की भूख न थी,
और समाचार में उस गरीब की मौत की वजह बस उसकी भूख थी।

एक से दो, दो से चार और देखते-2 न जाने हम कितने करोड़ हुए,
इस धरा पर रहते और जीव भी वे बेघर और खत्म बेजोड़ हुए।

कहते रहे कबीर कि मानव मत लो किसी बेबस की हाय,
मुई खाल की स्वांस से सुन लो सभी सार भस्म हुइ जाय।

दोहन प्रकृति का हमने खूब किया न जाने कितनी भूख थी,
जिस धरती पर खड़े हुए थे वो अब अन्दर से खोखली थी।

कोरोना तो बस बहाना है प्रकृति माँ कर रही सभी जीवों में संतुलन,
उसे भी तो करना है अपने सभी बच्चों का पोषण और लालन-पालन।

मौका है अभी सुधार जाओ और कर लो तुम सारे गुनाह कुबूल,
दो परिचय अपने विवेक का और मान लो झुककर सारी भूल।

धरती माँ है अपनी दिल उसका भी इक दिन जरूर पिघलेगा,
जब मानव बच्चों सा निर्मल-सरल दिल लेकर बाहर निकलेगा।

सब जीवन का सम्मान हो अब से, न कोई छोटा और बड़ा होगा,
अब धरती माँ को मिलकर हम सबको या विश्वास दिलाना होगा।

Tuesday, 10 March 2020

दिल की बात...

दिल का दर्द कागज़ों पर उतरने से पहले
बोल दे दिल की बात समय गुज़रने से पहले।

पन्नों को स्याह करने से केवल बेकरारी बढ़ती है 
वो शख़्श बिछड़ जाए तो दर्द भारी शायरी होती है।

मिलता नही वो इंसान कभी दोबारा ज़िन्दगी में
वक़्त गुज़रता है फिर उसके नाम की बन्दगी में।

चल उठ कुछ हाथ पैर हिला ले, काहिल न बन,
अंजाम की फिक्र छोड़ कर, बस दिल की बात सुन।