बदलते दौर में न जाने मैंनें क्या-२ देखा,
हे भगवन तुझे भी मैने रूप बदलते देखा।
तू रहता आलीशान मंदिरों में जब अमन चैन हो,
तुझे शुद्ध घी और मेवे के भोग लगाते मैंनें देखा।
इन पुजारियों का तो पता नही मगर आज मैंने तुझको,
इलाज करते डॉक्टर और गश्त लगाती पुलिस में देखा।
महामारी है फैली चारों तरफ तो आज मैंने तुम्हें
गलियों में सफाई को उतरे जमादारों में देखा।
छिड़ी जंग तो तुझको लहू बहाते सैनिकों में देखा,
और भूख लगी तो पसीना बहाते किसानों में देखा।
जब घर में मेरे अँधियारा छाया मैंनें तुझे याद किया और फिर,
बिजली का तार जोड़ते तुझे बिजली कर्मचारी के रूप में देखा।
ठहर गया है सब कुछ और नही कुछ आज कमाने को,
गरीबों के लिए लुटाते खजाने, आज तुझे इन अमीरों में देखा।
पूजा-पाठ, दिया-शंख और न जाने कितने कर्मकाण्ड,
मैं ठहरा पागल जो तुझे ढूढने को दुनिया भर में घूमा।
जब भी मुसीबतों में हुआ तो कुछ यूँ पूरी हुई तेरी खोज,
मदद को आगे आये प्रत्येक इंसान में मैंनें तेरा रूप देखा।
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