Monday, 2 November 2020

टोल नाका

तुम मेरी जिंदगी के सफर में हाइवे का टोल नाका हो, जहाँ मैं पल भर को रुकता हूँ और टोल की फॉर्मेलिटी जैसे ही निपटती है, मैं फुल एक्सेलरेटर में वहाँ से निकलता हूँ और पीछे मुड़कर नहीं देखता, कभी भी! लेकिन जब तक जिंदगी का ये सफर है, ये हाइवे है, ये टोल भी रहेगा! उसी तरह तुम भी मिलते रहोगे! कभी साक्षात तो कभी ख़्यालों में, यादों की तरह ! इससे मैं बच नहीं सकता। लेकिन अगली बार एक्सेलरेटर और तेज लिया जाएगा...........!

©अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०२.११.२०२०

फ़ोटो साभार इन्टरनेट।

Thursday, 29 October 2020

लॉन्ग ड्राइव

लॉन्ग ड्राइव भी एक बेमिसाल चीज है। लॉन्ग ड्राइव का नाम पढ़कर कपल्स के चेहरों पर खुराफात वाली मुस्कान आ गयी होगी 😁 खैर . . . . . . ! सामान्यतः किसी का साथ हो सफर में और ये साथ आपके पसन्दीदा व्यक्ति का हो तो सफर का मजा बढ़ जाता है। लॉन्ग ड्राइव के साथ भी ये वाला नियम लागू होता है। मगर मेरे केस में ऐसा नहीं है। मुझे अकेले ही पसंद है लॉन्ग ड्राइव करना। कारण. . . . . .? बस यही जानने के लिए आज के लेख में चर्चा की जाएगी। वैसे सफर से सम्बंधित हर लॉन्ग ड्राइव, लॉन्ग ड्राइव नहीं होती। लॉन्ग ड्राइव बिना मकसद की होने वाली ड्राइव होती है, जो या तो खुद की खोज के लिए होती है या किसी दूसरे के अंदर कुछ खोजने को ! अब लोग दूसरों में क्या खोजते हैं ये आप लोग कमेंट में बताइएगा 😉

मेरे लिए लॉन्ग ड्राइव एकान्त प्रदान करने वाली व्यवस्था है जिसे मैं बाइस की उम्र से लगातार खोजता रहता हूँ। एकान्त के इस समय में हर उस चीज के बारे में सोचता हूँ जो करना चाहता था और कर नहीं पाया। न न न न न प्यार मोहब्बत पर मत जाइएगा, वो तो मैं आज भी कर रहा हूँ और करता रहूँगा 😍 अब विचार में क्या चीजें आएँगी, ये रस्ते में मिलने वाले दृश्यों पर निर्भर करती हैं। जैसे बाइक सवार कपल्स को आपस में डाटा ट्रांसफर करते हुए देखना 😝 एक पल को ३१ वर्ष का व्यक्ति भी पुनः २१ का होना चाहता है 😎 ३१ वर्ष का आदमी ये सब नही कर सकता । इसके लिए २१ वर्ष वाला खालीपन और जिम्मेदारी का अभाव होना चाहिए। ३१ का आदमी खाली हो भी जाये तो समाज और परिवार की गालियाँ खाली नहीं रहने देंगी। खैर . . . . . . .   इसी तरह मैं एक उपन्यास लिखने की प्लानिंग, हिंदी/संस्कृत में डॉक्ट्रेट करना, अपना पोएट्री कैफ़े खोलना जैसी कई ख्याल बुनता हूँ। अगर ये सब न हो पाए तो कम से कम पहाड़ों पर जाकर अंडे और मैगी का ठेला जरूर लगाना चाहूँगा। अगर मैं इंजीनियर न होता तो ऑमलेट बनाने वाला होता। आखिर में कुछ न कर पाया तो ट्रैवेल ब्लॉगर बन जाऊँगा। इसके लिए एक खादी का झोला, एक मोटा चश्मा, एक मस्त मँहगा DSLR , एक बढ़िया स्पोर्ट शूज, दो-चार इटैलियन हैंड मेड डायरी और जेब में २-४ हज़ार रुपये। बस बिना बताये घर से गायब...... कुछ सालों बाद लौटेंगे नाम कमाकर! एक फेमस ब्लॉगर बनके 😇

सपने बुनने के साथ-२ लॉन्ग ड्राइव में आपको फ़्लैश बैक में जाने को मिलता है। पीछे जाकर अपने आपको देखना और फिर खुद को चूतिया बोलने का भी अलग सुख है। ज़माने के सामने खुद को चूतिया बोलने में थोड़ी शर्म आती है। अब चूतिया भी पूरी दम से बोलते हैं और इसके साथ डी के बोस भी। इतना खो जाते हैं कि अभी पीछे वाले खुद को इतनी तेज चट्ठा मारेंगे और वो गलती करने से रोक लेंगे जिसकी वजह से आज परेशान हैं। इतने चूतिया कैसे हो सकते थे हम ! फिर क्या . . . . . ! मन मसोस कर रह जाते हैं ! क्या करें खुद से प्यार भी है तो माफ़ भी कर देते हैं खुद को। इस पूरे समय में हम चिल्ला-२ कर खुद से बात कर रहे होते हैं। कोई साधारण व्यक्ति देख ले तो आगरा छोड़ आये। खैर . . . . . इस दौरान गाड़ी ऑटो पायलट पर रहती है और हमें कुछ आभास नहीं। ईश्वर ने शरीर को गज़ब बनाया है। हमारे शरीर को दिल और दिमाग दोनों पर ही भरोसा नहीं होता। इसलिए कुछ काम वो इन दोनों को बाईपास कर खुद कर लेता है, जैसे ये ड्राइविंग !

इस बीच रास्ते में घने बादल दिखाई दे जाएँ और बारिश हो जाये तो अमोल पालेकर बनते देर नहीं लगता ! महीन सी मुस्कराहट आपके चेहरे पर और रोमांस के कीड़े कुलबुलाने लगते हैं......  कुछ पल को पहाड़ों की पिछली यात्रा याद आ जाती है ! साथ में तुम और याद आ जाते हो! इसी बीच हम "गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा . . . . . . " वाला गाना गाने ही वाले होते हैं कि साला अगले पल ही बारिश बंद और चमकदार धूप ! अरमान जागने से पहले ही पानी फिर जाता है। लॉन्ग ड्राइव में ये दिक्कत बहुत होती है ! तब तो और ज्यादा जब आप उत्तर प्रदेश में ड्राइव कर रहे हों। 

औरतें. . . . .  सॉरी! लड़कियाँ . . . . . , हाँ ! लड़कियाँ लॉन्ग ड्राइव में क्या सोचती हैं, इसकी मुझे ज्यादा खबर नहीं ! शायद मेक अप के बारे में या फिर अगली पार्टी में क्या पहनना है! बाकी और चीजों के बारे में सोचने के लिए लड़के तो हैं ही! वो सोचेंगे ही! हम क्यूँ सोचे! (अगर आप मेरे विचार से सहमति नहीं रखती हैं तो आप अपवाद हैं और यूनिक हैं। हमारी खूब जमेगी।) 

ख़ैर. . . . . तुम तो हमारे बारे में ही सोचती होगी 💝।

ऊपर की चर्चा के अलावा मैं एक और चीज जो सोचता हूँ वो है पैसा! ढेर सारा पैसा। इतना कि बस लुटाता जाऊँ। दोस्तों में, परिवार में, समाज में, हर किसी ऐरे-गैरे चलते-फिरते लोगों में। आदमी की इज्जत ही तब है जब वो सब पर पैसा लुटाये। सूरत और सीरत से कुछ नहीं होता। आदमी को गर्व भी होता है पैसे को अपनों या गैरों के बीच खर्च करके। एक आत्म सुख मिलता है। बिलकुल वैसा सुख जैसा तथागत बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने के बाद मिला होगा। शायद ! कार से चलो और चौराहे पर कोई आपसे हाथ फैलाकर माँगे और आप उसे आगे बढ़ने का इशारा कर दें, मुझे ये नहीं अच्छा लगता। गरीबों वाली फीलिंग आती है। जब तक उस गरीब को २-४ हज़ार दे न दो तब तक कोई बात? धिक्कार आदमी होने पर! इस लॉन्ग ड्राइव के दौरान हम पूरी दुनिया की गरीबी दूर कर चुके होते हैं 😜

अब पैसे कमाने के लिए कोई बिज़नेस आईडिया भी चाहिए। बदलते दौर के साथ एक नया आईडिया। ऐसा आईडिया जो आपको रातों रात अमीर नहीं बहुत अमीर बना दें। बिलकुल कठोर निर्णय, अब तो कर ही देंगे ये आईडिया इम्प्लीमेंट। लेकिन लॉन्ग ड्राइव ख़त्म होते-२ ही दिल हल्का होने लगता है की अगर फेल हो गए तो ? न न न न न न . . . . .  रिस्क है ! बहुत रिस्क है। 

फिर सोचते हैं कि कोई न ! करते हैं ! देखेंगे ! फेल हो गए तो भी ऑप्शन तो है न! पहाड़ों पर अंडे और मैगी का ठेला लगाने का! तुम तो घूमने आओगे न वहाँ! मैगी खाने हमारी दुकान पर! हम अपने हाथ से बनाकर ऑमलेट भी खिलाएँगे 💖 तुम खाना  . . . . . और हम तुम्हे ताकेंगे ! बेशर्मों की तरह ! 

ख़ैर  . . . . ! प्यार में सब जायज है। ताकना भी ! ऐसा सोचना भी !

और हाँ. . . .  लॉन्ग ड्राइव में कोई टोकने वाला भी नहीं 😁

©अनुनाद /आनन्द कनौजिया /२९.१०.२०२० 

फोटू साभार इंटरनेट।





Wednesday, 28 October 2020

सफ़र

सड़क अच्छे लगते हैं,
गज़ब सुकूँ मिलता है!
जब भी सफर में होता हूँ,
मैं केवल तेरे साथ होता हूँ।

©अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२८.१०.२०२०

Monday, 26 October 2020

नज़रें

इन नज़रों की नज़र को.....
ये नज़रें न चाहें हटना नज़र भर को!

#बेमिसाल_आँखें
#लाजवाब_नजारा

©️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२६.१०.२०२०

Sunday, 25 October 2020

रेडियो जॉकी

आज सुबह ऑफिस जाते वक्त एफ० एम० पर महिला आर०जे० को बोलते हुए सुना। ऐसा नही है कि पहली बार सुन रहा था पर ध्यान पहली बार दिया। कितना अच्छा प्रस्तुतीकरण होता है, एक दिलकश आवाज़ और मिनट भर में कई तरह के भावों को शामिल करते हुए कितना स्पष्ट बोलती हैं ये महिला आर०जे०। दिल खुश हो जाता है। अचानक फिर मेरे मन में दो ख्याल आए-

१. क्या ये महिला आर० जे० शादीशुदा होंगी? वैसे मुझे नही लगता कि शादीशुदा महिलाएँ ऐसे बातें कर सकती हैं। उन्हें मुँह फुलाने, झगड़ा करने और लाख पूँछने पर रूठने का कारण न बताने के अलावा कुछ और नहीं आता। पत्नी का मुस्कुराता चेहरा तो एक पति के लिए बस ईद का चाँद है।

२. पहले बिन्दु का उत्तर अगर हाँ है तो फिर तो उनके घर में झगड़े होने की सम्भावना न के बराबर है और इस तरह अगले जन्म में किसी महिला आर० जे० से शादी पर विचार करना ही उचित होगा।

अनुरोध- नीलिमा जी इस पोस्ट को गंभीरता से न लें। ये केवल एक पल का विचार है जो रेडियो सुनते वक़्त आ गया था जिसे मनोरंजन स्वरूप इस पेज पर पोस्ट किया गया है। ये लेख एक लेखक की कल्पना है और व्यक्तिगत रूप से मेरा इस विचार से कोई सम्बन्ध नहीं है।

©अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२२.१०.२०२०

Monday, 12 October 2020

प्रकृति सौंदर्य

अद्भुत है प्रकृति की सत्ता,
रची है खूबसूरत कविता।
शब्द कहाँ इतने ख़ूबसूरत ,
फूल-पत्तियों की ये कविता।

श्रृंगार कौन करता
रूप ये कैसे मिलता
बहारों का मौसम ये 
तिनका-२ रिसता।

रूप ये करता मोहित
साँसों को सुगंधित
रोम-रोम हुआ हर्षित
और हृदय प्रफुल्लित।

होकर इनसे प्रेरित
मानव करता निर्मित
श्रृंगार के तरीके सौ
करने को उनको मोहित।

रूप दुल्हन सा होता है
बाँधने को दो दिलों को
फूलों सी मुस्कान जरूरी 
तन से रूह तक उतरने को।

देखो ये फूल भी अब तो,
बनके श्रृंगार सामने हैं नजरों के,
सँवरने की क्या जरूरत, तुम बस
चले आओ दिल की ठंडक को।

©️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१२.१०.२०२०

Saturday, 10 October 2020

ये रात आती क्यों है?

एक शाम की उम्मीद है अब मिलती नहीं क्यों है?
ये रात कमबख़्त तेरे बिना चली आती क्यों है?

बीतती शाम और आती रात से होती अब घबराहट क्यों है?
ये चाँद, सितारों और ठंडी हवा से होती शिकायत क्यों है?

अब तो छुट्टियों से डर लगता है न जाने ये मसला क्यों है?
बाहर का शोर तो ठीक लेकिन खामोशी से डर लगता क्यों है?

ये खाली सड़क, ये रोड लाइट ये सब खामोश क्यों हैं?
अकेले खड़ा मैं इधर, अगल-बगल में तू नही क्यों है?

बैठा हूँ बालकनी में शान्त मगर मन मेरा बेचैन क्यों है?
सब कुछ तो है पाया मैंने पर लगे कुछ खोया क्यों है?

खूबसूरत इन गमलों में फूल लगते इतने साधारण क्यों हैं?
खुशबुओं में इनकी मन मेरा तलाशता तेरा चेहरा क्यों है?

समय काटने को व्हिस्की है मगर इसमें न नशा क्यों है?
खत्म बोतल है पर अब न कोई हो रहा असर क्यों है?

दोस्त हों, दौर चले और बातें खूब हों मन ऐसा चाहता क्यों है?
उन बातों के दौर में जिक्र तेरा हो केवल, दिल चाहता क्यों है?

©️अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१०.१०.२०२०