Saturday, 11 June 2022

रात और बात

और क्या चाहिए तुमसे करने को बात ,
दिल में तेरी याद और एक तनहा रात ।

हवा भी सरसराए तो मुझमें खिल उठते जज़्बात,
बग़ल तेरे होने के एहसास से मुकम्मल होती रात ।

इक भीड़ सी है मुझमें जो न रहने दे मुझे शान्त ,
यादों के कारवाँ संग मैं बेहद अकेला इस रात ।

ज़िन्दगी के सफ़र में तुम कहीं मैं कहीं, न होती बात,
सिर्फ़ यादों को साथ लेकर बोलो कैसे बीते रात ।

और क्या चाहिए तुमसे करने को बात ,
दिल में तेरी याद और एक तनहा रात ।

©️®️रात/अनुनाद/आनन्द/११.०६.२०२२


Thursday, 2 June 2022

मर्ज़ और इलाज

वो बस हमसे हमारा मर्ज़ पूछते रहे…

काश ! वो हमारा इलाज पूछ लेते ।


लोग बाग कुछ न कुछ लेकर आ रहे…

काश ! वो बस ख़ाली हाथ चले आते ।


लोग हमारी बेहतरी की दुवाएँ माँग रहे…

काश ! वो बस दुवा में हमें माँग लेते ।


वो बस हमसे हमारा मर्ज़ पूछते रहे…

काश ! वो हमारा इलाज पूछ लेते ।


©️®️मर्ज़ और इलाज/अनुनाद/आनन्द/०२.०६ .२०२२



Monday, 30 May 2022

प्रेम की बारिश

काश मैं हिमालय और जो तुम बदल हो जाओ

इस तरह से भी जाना हमारी मुलाक़ात हो जाए

ये होना मुश्किल है मगर ऐसा हो गया तो सोचो

मुलाक़ात पर क्या ग़ज़ब प्रेम की बारिश हो जाए।


©️®️प्रेम की बारिश/अनुनाद/आनन्द/३०.०५.२०२२




Sunday, 29 May 2022

तो समझ लेना.... प्यार है!

मिलने से बिल्कुल पहले बेचैनी बढ़ जाए
तो समझ लेना..... प्यार है!

धड़कन को संभालने की कोशिश बढ़ जाए
तो समझ लेना..... प्यार है!

जब सामने आते ही बारिश पड़ जाए
तो समझ लेना..... प्यार है!

आकाश के भी खुशी से आँसू छलक जाए
तो समझ लेना..... प्यार है!

जब इरादे संकोच पर भारी पड़ जाए 
तो समझ लेना.…. प्यार है!

तुमसे पहले आगे बढ़कर वो गले लग जाए
तो समझ लेना.…. प्यार है!

पल भर को देख लेने से दिल हल्का हो जाए
तो समझ लेना..... प्यार है!

भरसक नज़रें न मिलें पर मन मिल जाए
तो समझ लेना..... प्यार है!

एक छोटी सी मुलाकात से कैसे संतोष हो जाए?
तो समझ लेना.…. प्यार है!

आँखों-आँखों में फिर मिलने का वादा हो जाए
तो समझ लेना..... प्यार है!

जब किसी शहर जाने की वजह मिल जाए
तो समझ लेना..... प्यार है!

जब कोई तुम्हारे लिए पूरा का पूरा शहर हो जाए
तो समझ लेना..... प्यार है!

जब इरादे संकोच पर भारी पड़ जाए 
तो समझ लेना.…. प्यार है!

जब सामने आते ही बारिश पड़ जाए
तो समझ लेना..... प्यार है!

©®तो समझ लेना/अनुनाद/आनन्द/२९.०५.२०२२

Friday, 27 May 2022

धार….

लोग कह रहे कि मेरी लेखनी की धार बढ़ती जा रही है,

हमें तो बस ये ग़म है कि हमारी उम्र बढ़ती जा रही है।


कच्ची उम्र के थे तो जवान ख़्वाहिशों की लड़ियाँ बड़ी थी,

और तो अब यूँ है कि बस जिम्मेदारियाँ बढ़ती जा रही हैं।


तजुर्बा कम था हमें, इश्क़ के तरीक़ों से अनजान बड़े थे,

जानकार हुए जबसे बस खुद पर ग़ुस्सा निकाले जा रहे हैं।


ज़ख्मों को कुरेद दिया उन्होंने कहकर कि तुम सीधे बहुत थे,

कितने शानदार मौक़े गँवाने का अफ़सोस किए जा रहे हैं ।


भूल जाने की आदत बुरी है शक्लें याद नहीं रहती हमको,

रोज़ नयी शक्ल गढ़कर तुझसे रोज़ नया इश्क़ किए जा रहे हैं।


अपना लिखा भी याद नहीं और वो सुनाने की फ़रमाइशें करते हैं,

रोज़ नयी इबारत लिख कर हम उनकी इबादत किए जा रहे हैं ।


दिल को शांत रखने को एक अदद मुलाक़ात ज़रूरी बड़ी थी,

वरना बेचैन दिल से हम मासूम शब्दों को परेशान किए जा रहे हैं।


लोग कह रहे कि मेरी लेखनी की धार बढ़ती जा रही है,

हमें तो बस ये ग़म है कि हमारी उम्र बढ़ती जा रही है।

©️®️लेखनी/अनुनाद/आनन्द/२७.०५.२०२२



Thursday, 26 May 2022

भूल गए !

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

मिलने से ज़्यादा ख़ुशी तो हमें उनके मिलने के वादे से थी,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए।

उनके आते ही न जाने दिमाग़ ने ये कैसी हरकत की, 
मिलन के पलों को गिनने में हम उन्हें जीना भूल गए।

सामने वो और उनकी कशिश से भरी मद्धम मुस्कान थी, 
उनकी मद भरी आँखों में हम बस सारी तैराकी भूल गए।

इतने सलीके से बैठे हैं सामने जैसे सफ़ेद मूरत मोम की,
इधर हम हाथ-पैर-आँखो को सम्भालने का तरीक़ा भूल गए।

गला ऐसा फिसला कि बोले भी और कोई आवाज़ न की,
धड़कनों के शोर में अपनी ही आवाज़ को सुनना भूल गए।

दिन, तिथि, जगह, शाम, सब मुक़र्रर थी मिलने की,
इतनी ख़ुशी में हम दिल की बात कहना ही भूल गए….
पलों के साथ में उम्र भर के साथ का वादा लेना भूल गए।

©️®️भूल गए/अनुनाद/आनन्द/२६.०५.२०२२

Monday, 23 May 2022

रेडियो

रेडियो से प्यार काफ़ी पुराना है…… शायद जन्म से ! गाँव-देहात से हूँ। बचपन में बिजली नहीं होती थी गाँव में। मनोरंजन के साधन के रूप में रेडियो से अच्छा कोई साथी नहीं। निप्पो या एवरेडी की दो बड़ी वाली बैटरी लगाओ…. किसी-२ रेडियो में तीन बैटरी भी लगती थी! बस मीडियम वेब और शॉर्ट वेब सेट करो और रेडियो हाथ में, कंधे पर या साइकल पर रख कर बीच गाँव होते हुए भरी दोपहर में आम के बाग की तरफ़ …. खटिया पर लेट, सिराहने रेडियो रखकर मन भर नींद ! भैया के साली को सपने में याद करते हुए 😉😉
रात में तो छत पर बिस्तरा लगाए खुले आकाश में ताकते हुए रेडियो को सुनना आज भी याद है। बीच में ज़रा सी हवा चल जाए तो घर के बग़ल वाले पीपल से सर्र-सर्र की आवाज़! फिर बुवा और चाचा लोग की पीपल के ब्रम्ह वाले भूत की कहानी! डर के मारे रेडियो भुला जाता और पीली वाली भागलपुरी चादर कस कर ओढ़ भूत से बचने की कोशिश!
बस इस तरह अधिकांश बचपन गाँव और रेडियो के संग बीता। वी सी आर भी आया था लेकिन उसकी कहानी कभी और ….. रेडियो तो बस पसंद ही नहीं है, ये तो खून में बसता है! कमाने लायक हुए तो भाँति-२ के रेडियो लिए और बेडरूम में सजा के रखे लेकिन हमारे इस शौक़ की क़दर घर में नहीं….. इसीलिए कई रेडियो ख़रीदने पड़े!
फ़ोटो में दिख रहा रेडियो लेटेस्ट वाला है। इसको ऐंटीक लुक की वजह से कुछ एक साल पहले amazon से मँगाए थे। कुछ महीने पहले ये चालू ही न हो…. दिल दुःख के सागर में गोते लगाने लगा कि अब क्या होगा? दिल टूट सा गया!
४-५ महीने बाद कल कोशिश कर, लोक-लाज को भूल कर कि इस मोबाइल वाले आधुनिक दौर में लोग-बाग क्या सोचेंगे, हम दिन भर लखनऊ की नरही बाज़ार घूमे तो एक दुकान मिल ही गयी! ख़ुशी का तो मानों ठिकाना न रहा हो! जब दुकान वाले भैया बोले कि बन जाएगा तो मानो मरुस्थल में बारिश हो गयी हो! न दाम पूछे न ख़राबी बस एक दिन बाद बनकर मिलने का वादा लेकर लौट आए….
पूरी रात यही सोचते रहे कि बस कल रेडियो बनकर मिल जाए ! बड़ी मुश्किल से नींद आयी !और आज जब ये बनकर आया तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा!
शाम से बज रहा है और हम मंत्रमुग्ध हो एक अनोखे संतोष और हर्ष के भाव से निहारे जा रहें हैं- रेडियो को!

©️®️रेडियो/अनुनाद/आनन्द/२३.०५.२०२२