Monday, 30 November 2020

कोरोना की दवा-शादी!

पर्यायवाची और विलोम ये दो शब्द हर हिंदी के छात्र ने पढ़ा और सुना होगा। अगर कोई मुझसे पूछे कि कोरोना का विलोम क्या है तो मैं बोलूंगा कि 'कोरोना' का विलोम है 'शादी'। हा हा.... आप भी सोच रहे होंगे कि क्या बात कर रहा है ये लौंडा! मतलब कि कुछ भी! नहीं भैया कुछ भी नहीं फेंक रहे हैं। बिल्कुल सही बात कर रहें हैं। 

जिस तरह कोरोना ने हमारे जीवन को वीरान कर दिया था। सबसे दूर कर दिया था। नाते-रिश्ते सब खत्म कर दिए थे ! हम एक नीरस और बिना मतलब का जी रहे थे। मोह-माया त्याग कर बिल्कुल सन्यास की तरफ बढ़ चले थे और स्थिति ये आ गई थी कि हर कोई मोक्ष के मुँहाने पर ही लाइन लगाए खड़ा था कि ..... तभी चालू हो गया शादियों का सीजन! और बस यहीं कोरोना का असर खत्म! सारा डर काफ़ूर! कैसा कोरोना! काहे का कोरोना! कौन कोरोना! कहाँ का कोरोना! कोरोना मतलब? कुछ सुना-सुना सा लगता है कोरोना! अच्छा वो फलाँ चाचा वाली चाची की बहन की बेटी कोरोना! अरे नहीं वो तो करुणा है! तुम भी न! बकलोले हो बिल्कुल!

भाईसाहब ! शादियों का सीजन क्या शुरू हुआ कि बाजार गुलजार हो गए! निमंत्रण बँटने लगे! जीजा-फूफा लोगों की बाँछे खिल गयी। अब फिर रूठने का मौका मिलेगा! सालियों के मन में लड्डू फूटने लगे, अब तो जूते चुराएँगे और पैसे बनाएँगे! दूल्हा-दुल्हन तो अलग ही लेवल पर हैं, वो तो जमीन पर उतर ही नहीं रहे। बुवा, मौसी, चाची सारे रिश्ते ज़िंदा हो गए। मोह-माया जो बस प्राण छोड़ने ही वाली थी, पुनः जीवित हो उठी। और मोक्ष को प्राप्त होने वाले लोग पुनः इस मृत्युलोक के मजे लेने लगे। हा हा... बचा लिया शादी ने इस संसार को!

हे शादी! तुम भगवान विष्णु का कोई अवतार लगते हो! जो इस दुनिया को बचाने चले आए! कोई न ! देर आए दुरुस्त आए...! माहौल में गर्मी यूँ ही बनाए रखना!

और हाँ इस बार शादी का ये सीजन खत्म न हो। सबकी शादी हो जाए! अखण्ड कुँवारों की भी ! आपकी भी! क्या? आपकी हो गयी है? कोई न! घर पर पूँछकर दूसरी कर लीजिए। आखिरकार कोरोना को हराना जो है। "सबका साथ कोरोना का नाश!"

दुनिया फालतू में वैक्सीन बनाने में लगी हैं! हम आज ही एक शादी निपटाएँ हैं और कल दूसरी में जाने की तैयारी है। चलता हूँ गरम पानी में नमक डालकर....न-न गरारे नहीं करने! पीना है! पेट जो साफ करना है। आज पूड़ी खाने में कसर रह गई! कल दो पूड़ी ज्यादा खानी पड़ेगी!

अनुनाद/शादी-शुदा आनन्द/३०.११.२०२०

Thursday, 26 November 2020

शिकायतें....... जीवन से!

ये सूरज सुर्ख लाल है बिल्कुल मेरी तरह लगता है,
इस ढलती शाम से बेहद नाराज लगता है।

कितना कुछ दिया है ऐ जिन्दगी तूने जीने को,
कितना कुछ रोज रह जाता है मेरे समेटने को!

तू ही बता ऐ नींद कैसे गले लगा लूँ तुझे मैं,
मंजिल को दो कदम ही बढ़ा था और रात हो गई।

तेरे साथ की खुशबू से सराबोर महक रहा हूँ इस कदर,
कि इत्र के सौदागर थे और हम अपना सारा कारोबार भूल गए।

साथ होते हो तो दूर जाने का डर लगा रहता है, तुम्हें पता था!
ख़त्म करने को मेरा डर इतनी भी दूर जाने की क्या ज़रूरत थी?

एक मुलाकात को देखो कितने दिन पलों में बीत गए,
चेहरा तेरा देखने को कमबख़्त ये पलकें झपकना भूल गए।

खोकर ख़्वाबों को हमने इतनी सी उम्र में बस यही सीखा है , 
पछतावा कोई नहीं अब बस उन ख़्वाबों की यादों में जीना है।

एक सीख है जो तू दे गया मुझे, अब ताउम्र साथ रहेगी,
होशियार था तू, तुझे पता था कि ये साथ उम्र भर का नहीं।

राह ताकते रहे कि दिल के इस घरौंदे में तुम लौट आओगे एक दिन,
लो शाम ढल गई इंतजार में और हम राह में दिया जलाना भूल गए।

ये सूरज सुर्ख लाल है बिल्कुल मेरी तरह लगता है,
इस ढलती शाम से बेहद नाराज लगता है।

©अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२५.११.२०२०

Monday, 23 November 2020

रिपीट मोड !

ज़िन्दगी रिपीट मोड में चल रही है.... डेली एक ही रूटीन फॉलो हो रहा है वो भी बिना किसी इंच भर के डेविएशन के ! कैसे कुछ नया होगा? कैसे लाइफ रोमांचकारी होगी? समय रहते ही कुछ नया ऐड करना होगा और कुछ पुराना डिलीट करने होगा । वरना......... जीवन तो चल ही रह है! एक दिन कट/काट ही जायेगा😜।

उम्मीद है आपकी बेहतर चल रही होगी ... बिल्कुल रोमांचक! 😎 अगर नहीं तो ... यही समय है परिवर्तन का🤗।

सोचिये........!

कुछ नया ऐड करने की सलाह भी दे दीजिएगा....🙏 घनिष्ठ मित्र साथ बैठकर देंगे तो अच्छा लगेगा। हमारी बालकनी भी तैयार है😉। 

©अनुनाद/चिन्तक आनन्द/२३.११.२०२०

Saturday, 21 November 2020

चमक

तुम्हारी नज़रों ने इस तरह देख जो लिया,
कि बढ़ गयी चमक दिए की लौ की आज।

©अनुनाद/सम्मोहित आनन्द/२१.११.२०२०

Thursday, 19 November 2020

बालकनी

लगभग आठ साल से रह रहा हूँ इस सरकारी घर में ! दो बालकनी हैं इस घर में। एक आगे और एक पीछे। ये पीछे वाली बालकनी है। किन्तु ये बालकनी इतनी सुंदर और सुकून की जगह हो सकती है अब जाकर पता लगा! कुछ ज़्यादा अन्तर नही है बस अब मुख्यालय से सम्बद्ध हूँ और इस बालकनी में जाने का समय मिल जाता है। वरना जब तक फ़ील्ड में था तब तक मुश्किल से आठ साल में आठ बार गया हूँगा इस बालकनी में। अब तो सुबह और शाम दोनों इसी बालकनी में बीतती हैं। 

एक़ चीज़ तो साफ़ है कि ख़ुद को समय देना बेहद ज़रूरी है वरना लाख ख़ूबसूरत चीजें होंगी आपके पास किन्तु उनके साथ समय बिताने का मौक़ा न हो तो सब व्यर्थ! व्यस्त दिमाग़ कभी भी सृजनात्मक नहीं सोच सकता और न ही आनन्द ले सकता है। 

मुख्यालय की तैनाती ने जीवन को फिर से खँगालने का समय दिया है। एक बार फिर से नयी शुरुआत! हर एक पल को भरपूर जीने का मौक़ा! नज़रिया बदलने का मौक़ा! 

वैसे ये बालकनी तुम्हारे साथ अकेले बैठने को तैयार है 😉 बस चले आओ ! कुछ समय निकाल कर ! बहुत बातें हैं करने को ! तुमसे......तुम्हारे विषय में! शिकायतें भी हैं ! दूर तो नहीं हों पाएँगी मगर कह देंगे! दिल हल्का कर लेंगे! लड़ भी लेंगे! बस चले आओ ......

©️अनुनाद/ सम्बद्ध आनन्द/ १९.११.२०२०

Sunday, 15 November 2020

घर गृहस्थी 🤗

घर गृहस्थी में फँसा इंजीनियर तब तक इंजीनियर नहीं होता जब तक वो कुकर का हैंडल न लगा ले या फिर पंखे का कंडेंसर न बदल ले! 😎 और हद तो तब है जब उस इंजीनियर को इन कामों को करने के बाद मिलने वाली तारीफ में इतनी खुशी मिलती है जितनी उसे किसी एग्जाम को क्लियर करके भी न मिली हो!😅

यदि आप भी खुशी के इसी स्तर पर हैं तो आप घर गृहस्थी के इस भँवर में फंस चुके हैं और आपका डूबना तय है। घबराइए मत! यहाँ डूबने पर संतोष मिलेगा जिसकी खोज में न जाने कितने साधु/महात्मा दिन रात ध्यान साधना में लगे हुए हैं और आपको इसके लिए दो पेंच ही टाइट करने हैं बस! 🙄🤗

वैधानिक चेतावनी- दोबारा पहले वाला इंजीनियर बनने की कोशिश मत करियेगा। घर पर तो कदापि नहीं😋

अपने मुँह मिट्ठू:- काम की सफाई देखकर लगता है कि खाक कोई मेकैनिक ये काम इतना फाइन और टिकाऊ कर पाता। भले ही हमने इसमें घंटो लिए हों। समय मायने नहीं रखता, परफेक्शन करता है। हुँह...... हाँ नहीं तो!

नोट:- अगर आप इंजीनियर नहीं है तो इंजीनियर शब्द के स्थान पर अपनी प्रोफाइल लगा लें। अच्छा लगेगा। लेकिन इंजीनियर होते तो ज्यादा खुशी मिलती 😁😆

©अनुनाद/ इंजीनियर आनन्द😎/१५.११.२०२०

Monday, 9 November 2020

ढलती शाम...

ये सूरज सुर्ख लाल है बिल्कुल मेरी तरह लगता है,
इस ढलती शाम से बेहद नाराज लगता है।

©अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०९.११.२०२०