Tuesday 10 March 2020

रूप...

उजड़ा हूँ,
मग़र खत्म नही,
वक़्त की आँधी में
रूप मैंने खोया नही।

कहानी मेरी लिखेगा,
इतिहास बड़े गर्व से,
अवशेष मेरे बोलेंगे कि,
ये रूप पाया मैंने संघर्ष से।

अमावस!

रात में चांद और
जीवन में तुम...
बिन दोनो 
केवल अमावस !

महिला दिवस...

रंग हज़ार 

जीवन में बहार 

होने से तेरे 

नित त्योहार।


करूँ न्योछावर तुम पर ये एक दिन कैसे ? 
ये एक दिन भी तो तेरा दिया हुआ है।

साकी और नशा!

वो हमारे नशे का हिसाब लगाने लगे,
कैसे पीते हैं आज वो हमें समझाने लगे।

अब अपनी तारीफ हम खुद क्या करते,
दे दिया पता जहां हमारे साकी रहते।

मिलकर उससे उनकी ग़फ़लत दूर हो गई,
उन्हें मेरी साकी खुद मेरे नशे में मिल गई।

बिंदी और कहानी!

सुबह के आइने में तुमने माथे की बिंदी खिसकी पाई, 
बिंदी को ठीक करने में तुम खुद से शरमाते हुई मुस्कुराई।

पूर्णता के एहसास के संग आंखों में खूबसूरत चमक थी,
सुंदर तेरे चेहरे पर आज पहले से भी अधिक दमक थी।

व्यक्त करने को इन अनुभवों को अभी शब्दों की उत्पत्ति बाकी थी।
रात की कहानी बयाँ करने को तेरी शर्मीली मुस्कान ही काफी थी।

मेरे दो अनमोल रतन...


तुम्हारी इन अलौकिक और भोली अदाओं पर सब कुछ लुटाऊँ,
बेशक़ीमती तुम, मुझको मिले इस संसार में मैं विश्वास न कर पाऊँ,
तुम्हारे रूप और कलाओं में रस इतना कि इकट्ठा कर समुद्र हो जाऊँ,
अगर लिखने बैठूँ तो वर्णन करते करते कहीं सूरदास न हो जाऊँ !


BANARAS HO TUM (DIRECTLY FROM BANARAS)