Saturday 8 August 2020

कहाँ गए वो दिन !

एक व्यस्त दिन हो ! इतना व्यस्त कि ख़ुद की ही खबर न हो ! सर भन्नाया हुवा हो ! क्या कर रहे हैं और वाक़ई में क्या करना है, कुछ समझ न आ रहा हो ! जैसे-तैसे काम निपटाया गया ! शाम हो गयी ! फिर कुछ सोचें कि इससे पहले आपके घनिष्ठ मित्र का फ़ोन आ जाए !

अबे चलो कहीं बैठते हैं !

कहाँ?

अबे अपने अड्डे पर !

अच्छा वहीं ....!

हाँ!

ठीक है। मिलो वहीं पर । निकल रहा हूँ । 

बस सारा तनाव अपनी पसंदीदा पेय के अन्दर जाते ही छू मंतर 😆! पता नही कहाँ गए वो दिन ? इस मनहूस काल में उन दिनों की चर्चा करना ही कितना सुखद है और साथ में वो चीज़ अब न जाने कब करने को मिलेगी इसका दुःख भी ☹️🧐

आप भी ऐसे सुखद पल और अपना वर्तमान दुःख यहाँ साझा कर सकते हैं । खली बैठे हैं हम तो चर्चा कर ली जाएगी 🤣

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०८.०८.२०२०

फ़ोटो ०५.०७.२०१७ की है ।

Friday 7 August 2020

अग्नि!

ख़ाली बैठे समय का उत्पाद है ये फ़ोटो ! लेकिन ग़ज़ब का है ये फ़ोटो। व्यक्ति के भीतर के अग्नि तत्व को दर्शाती ! जीने के लिए ज़रूरी तापमान को बनाए रखने के लिए कई तरह के ईंधन की आवश्यकता होती है। भोजन के सिवा भी कई ईंधन हैं जो इस आग को बनाये रखने के लिए ज़रूरी हैं जैसे - इच्छाएँ, जिम्मेदारियाँ, ज़रूरतें और चाहत....! इच्छाएँ और चाहत में अन्तर है इच्छाएँ जीवित या मृत किसी भी वस्तु की हो सकती है किन्तु चाहत केवल जीवित तत्व की होती है। ये मेरा अपना दर्शन है। ये आग यूँ ही इतनी तीव्र नही है ......! भड़की है ये ...... केवल तुम्हारी चाहत में .............।

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०७.०८.२०२०

Wednesday 5 August 2020

राम राज्य .......!

०५ अगस्त २०१९ दिन बुधवार,
तिथि ये कोई साधारण नहीं,
चेहरे आज ये जो शांत दिख रहे,
इनमें छुपा वर्षों का संघर्ष कहीं।  

इतिहास तो हमने बहुत पढ़ा था,
आज आँखों से बनते देख रहा हूँ,
गर्व का क्षण है और खुश-किस्मती मेरी,
कीर्तिमान का शिलान्यास देख रहा हूँ। 

राम नाम में ही छिपी,
न जाने कितनों की दुनिया,
चेहरे सबके सूखे थे,
प्यासी थी सबकी अँखियाँ।

जिस अयोध्या प्रभु जन्म लिए,
जिस घर भरी किलकारियाँ,
रूप सुहावन राम लला का 
उनमें में बसती थी सारी खुशियाँ। 

ये कैसा दुर्भाग्य हमारा था,
प्रभु से छिना उनका घर-द्वारा था,
क्षीण हुवा गौरव कौशलपुरी का,
उजड़ा भक्तों का संसार सारा था। 

चहुँ ओर जब राम राज्य था,
कहते हैं सब नर में राम बसते थे, 
सभी दिशाओं में थी सम्पन्नता 
सुना है घी के दिए ही जलते थे। 

अब जब राम लला फिर से,
विराजेंगे अपने घर आँगन,
प्रभु राम की कृपा से देखो,
पूरा देश हुवा है मस्त मगन। 

गलत हुवा था या अब सही हुवा,
मैं इतिहास नहीं अब खोदूँगा,
राम राज्य की जो है कल्पना वो,
आये धरातल पर बस यही चाहूँगा। 

बहुत हो गया द्वंद्व दो पक्षों में.
अब न शेष कोई विषमता हो,
प्रभु भारत देश में अब तो बस,
हिन्दू मुस्लिम में सम रसता हो। 

हो जाएँ ख़त्म सारे भेद-भाव,
न ऊँच-नीच न कोई जात-पात,
समान शिक्षा और सबको रोजगार,
हो देश की उन्नति की बात। 

सबका साथ सबका विकास हो,
समानता, सम्पन्नता ही हो सर्वस्व,  
जगदगुरु बनने का मार्ग प्रशस्त हो,
स्थापित हो फिर से भारत का वर्चस्व। 

सियावर राम चंद्र की जय !

सबके राम, सबमें राम !

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०५.०८.२०२० 







Sunday 2 August 2020

दरबारी कवि ;)

नौकरी में आया ही था..... सरकारी नौकरी ! वो भी सीधे पब्लिक से जुडी हुई। जनता से सीधा संवाद। शब्दों को सम्भाल कर, सामने खड़े व्यक्ति की भाव भंगिमा देखते हुए, एक ही काम के लिए अलग-२ व्यक्ति से बिलकुल अलग बात और भिन्न फेशियल एक्सप्रेशन के साथ प्रस्तुत करने की कला मैंने यहीं सीखी। क्या काम करता हूँ ये नहीं समझा सकता और न ही बता सकता हूँ :) खैर........ ! आगे बढ़ते हैं ! नौकरी में मैंने अधिकारी की इकाई पर ज्वाइन किया। सो कोई भी समस्या मुझ तक पहले आती थी। एक दिन कार्यालय में बैठा था. नयी नौकरी के एक या दो महीने हुए होंगे! बधाइयों का दौर अभी चल रहा था। घमंड, गर्व और ख़ुशी की कई मुद्राओं में एक साथ रहता था। मैं अपनी कुर्सी पर बैठा अपना काम निपटा रहा था तभी एक वृद्ध व्यक्ति का कार्यालय में प्रवेश हुवा। आते ही बोल पड़े - वाह! अतिउत्तम, इतनी छोटी उम्र में अधिकारी। मैंने अपने जीवन में बहुत कम ही देखा। मजा आ गया। अच्छा लगता है आप जैसी मेधा देखकर। लेकिन एक बात बोलूंगा साहब! आपको आईएएस की तैयारी करनी थी। आपने अपने साथ अन्याय किया। एक बेहद ही कम समय अन्तराल में वह सज्जन न जाने क्या क्या बोल गए। मुझे सम्भलने का मौका भी नहीं दिए। प्रशंसा की इतनी पंक्तियाँ सुनकर मेरा प्रोसेसर हैंग हो गया। किस पंक्ति को प्रोसेस करूँ और किस पर खुश होऊं। प्रत्येक पंक्ति पर इतनी जल्दी-२ खुश कैसे हुवा जाये। थोड़ा समय तो मिलना चाहिए। मैं इस सबमे इतना मंत्र मुग्ध था कि तब तक वो सज्जन एक कागज़ निकाल कर सामने रख दिए और बोले सर, इस पर एक हस्ताक्षर चाहिए आपके ! छोटी सी चिड़िया बिठा दीजिये! हम भी बिना कुछ सोचे समझे कलम निकाल लिए कि लाओ ये तो मेरे बाएँ हाथ का काम है! आखिर मैं अधिकारी जो हूँ। हस्ताक्षर लगभग हो ही गए थे कि मेरे जे० ई० ने मुझे टोक दिया! सर रुकिए! और कागज़ ले लिया। बुरा तो बहुत लगा लेकिन उनकी उम्र और अनुभव देखकर शांत हो गया। बाद में पता चला कि उन सज्जन के यहाँ चोरी पकड़ी गयी थी और मेरे हस्ताक्षर लेकर बचना चाह रहे थे। बच गया मैं उस दिन! 

शब्दों के प्रभाव को कमतर नहीं आँका जा सकता। मेरा अनुभव यही कहता है। लाख आपने डिग्रियां हासिल की हों, लेकिन शब्दों के प्रयोग की कला नहीं सीखी तो मान लीजिये आप चूतिये हैं ! शुरुवात के कुछ सालों को छोड़ दूँ तो मेरी नौकरी भी इसी की वजह से आसानी से चल रही है। बड़े-२ विद्वानों ने भी शब्दों के प्रयोग से ही महानता प्राप्त की है। इतिहास गवाह है। उठाकर देख लीजिये कोई भी पुस्तक। अब कुछ लोग इस कला को तेल लगाना भी कहते हैं। कहने दीजिये। बेचारे हैं वो लोग। इस कला से वंचित हैं........ कुछ तो बोलेंगे ही। सबसे ज्यादा इस कला में माहिर होते थे दरबारी कवि। किसी एक का नाम नहीं लूँगा। प्रत्येक राजा के दरबार में एक कवि तो होता ही था जिसे दरबारी कवि का दर्जा प्राप्त होता था। राजा के सम्मान में एक से एक कसीदे पढ़ा करता था। बहादुरी पर कवितायें लिखा करता था। जनता में प्रचार-प्रसार किया जाता था इन कविताओं का। जनता के मन में राजा को महान बनाने में इन रचनाओं का खासा योगदान होता था। इसीलिए दरबारी कवि का महत्व सर्वोपरि होता था। और इसी महानता की छवि की वजह से राजा को राज-काज चलने में आसानी होती थी। अब आप दरबारी कवि को तेलू तो नहीं बुला सकते :) 

दौर बदलता है किन्तु नियम नहीं बदलते। बस रूप बदलता है। आज भी दरबारी कवि मौजूद हैं। किसी व्यक्ति को भगवान तुल्य  महान बनाने के लिए उसकी कमियों को छुपाना तो पड़ता ही है और गुणों को बढ़ा-चढ़ा कर अलंकार में डुबो कर छंदों-चौपाइयों में लपेटकर परोसना पड़ता है। कमियाँ तो सबमें हैं लेकिन गिनी कमजोर व्यक्ति की ही जाती हैं। बड़े लोगों की नहीं! कभी नहीं। आज  के ज़माने में भी व्यक्ति को प्रभु बनाने की कला क्षीण नहीं हुयी है। २०१४ के बाद से तो इसका उत्तरोत्तर विकास ही हुआ है। विकास शब्द को गंभीरता से न लें ;) हाँ........ लेकिन दरबारी कवियों का रूप बदल गया है। आज कल ये काम न्यूज़ चैनल वाले करते हैं। प्रत्येक न्यूज़ चैनल वाला दूसरे न्यूज़ चैनल वाले से आगे निकले की होड़ में तो कभी-२ ऐसा कुछ भी बोल जाता है की कानों को विश्वास ही नहीं होता। मुझे याद है कि जब बचपन में रामायण और श्री कृष्णा देखते थे तो लगता था कि कोई समस्या नहीं होगी। प्रभु आएंगे और हाथ उठा कर दिखाएंगे, एक दिव्य रौशनी होगी और सब ठीक। मैं तब देश के नेताओं को भी इसी राम और कृष्ण भगवान की कैटेगरी में रखता था। मुझे याद है कि टीवी पर एक बार कोई नेता बाढ़ की स्थिति का जायजा हवाई जहाज से कर रहे थे। मैंने पिता जी से कहा कि नेता जी हाथ दिखाकर सब सही क्यों नहीं कर देते तो पिता जी हंस पड़े। बिलकुल ऐसी ही हंसी मुझे न्यूज़ चैनल वालों पर भी आती है। किसी देश को धूल चटानी हो तो ये चैनल वाले भारत के प्रधान मंत्री की एक बेहद ही गंभीर भाव भंगिमा वाली फोटू दिखा देंगे कि मानो ये वही बाप हों जो गुस्से में बैठे हैं और दुश्मन देश वो लौंडा है जिसने आज गलती की है और अब सुताई होगी ! हाहा..... सोचकर ही हंसी आती है। मैं तो उस न्यूज़ एंकर के बारे में सोचता हूँ कि पढ़ा लिखा तो वो होगा ही और तब वो ऐसे चूतियापे कर रहा है, वो अपनी हंसी कैसे रोकता होगा। अरे भाई दरबारी कवि बनो....... ठीक है ! मौके की जरुरत है। लेकिन बकचोदी थोड़ा तो कम करो। हंसा-हंसा कर मारने का इरादा है क्या ?

देश की सेना पर नाज है और गर्व भी। बचपन में मार्च पास करने में सीना चौड़ा हो जाता था। कलाम साहब के बारे में सुनता था रोंगटे खड़े हो जाते थे। तिरंगा पिक्चर आज भी पसंदीदा है। हाँ फ्यूज कंडक्टर वाली थ्योरी बेहद ही बेसिक थ्योरी निकली। लेकिन कोई बात नहीं। मिसाइल उड़ान नहीं भर पाया और और देश बच गया। फिलहाल प्रत्येक देश की सेना को अत्याधुनिक हथियारों की जरुरत पड़ती है। मजबूत होना अच्छी बात है। सीमाएं सुरक्षित होंगी तो ही हम प्रगति के बारे में सोच पाएँगे। अब तो राफेल भी आ गया ! अरे ! न! न! आप जोश में खड़े क्यों हो गए ? लगता है टीवी वालों का असर अभी बाकी है ! कोई न ! बैठ जाइये। वरना चीन के राष्ट्रपति को पसीना आ जायेगा और पाकिस्तान को हार्ट अटैक ! बैठे बिठाये दो देश नेस्त-नाबूत हो जायेंगे। आपसे बस इतना अनुरोध है कि चौड़े होकर किसी को गरिया मत दीजियेगा। टीवी और सोशल मीडिया पर बोलना अलग है और मोहल्ले में बाहर निकल कर बोलना अलग। किसी का दिमाग ख़राब हुआ तो पेले भी जा सकते हैं। मोहल्ले में ही चीन और पाकिस्तान सीमा जैसे हालात न बनाएँ। 

राम मंदिर बन ही रहा है। वैसे तो राम जी सदैव हमारे साथ थे किन्तु भव्यता अब अलग ही होगी। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप पर राम जी का आशीर्वाद बरसे और आपके अंदर का दरबारी कवि जागृत हो जाये और आपको भी कोई मेरे जैसा अधिकारी मिल जाये तो आपका काम बन जाये। 

राम जी इस बार किसी डॉक्टर या शोध शास्त्री के रूप में जन्म लीजिये और इस कोरोना की वैक्सीन खोज दीजिये। घर में बैठे-२ कलह बढ़ रहा है वरना राम राज्य बाद में आएगा पहले घर में महाभारत हो जाएगी। बस ज्यादा कुछ नहीं चाहिए आपसे। देश तो राफेल के हाथों में सुरक्षित है और दरबारी कवियों की वजह से हम महानता के उच्चतम शिखर पर मंत्रमुग्ध होकर अपनी समस्याएँ वैसे भी भूल चुके हैं। इस कोरोना के बुरे दौर में मनोरंजन की कमी नहीं है। 

जोर से बोलिये अयोध्या पति श्री राम चंद्र जी की जय ! प्रभु आपकी कृपा सब पर हो। 

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०२.०८.२०२० 

Thursday 30 July 2020

सरयू का पुल

ये सरयू में बाढ़ का पानी ऐसे है जैसे,
सामने तुम खड़े हो मुस्कुराते आँचल फैलाए।
ये किनारों की हरियाली जैसे रूपट्टे में कोई कढ़ाई 
हम रहते खड़े एक टक तुझको बस निहारते ही जाएँ।।

लो फैला दी हमने बाहें अपनी अब,
बस तुम्हारा आकर गले लगना बाकी है।
अधूरे थे हम ये तुमको देखा तो जाना,
आ भी जाओ कि पूरा होना बाकी है।।

ये जो पुल है सरयू तुम पर 
इसे बनना नही चाहिए था।
तुम्हारा साथ इतनी जल्दी बीत जाए,
हमें ये तो कभी नही चाहिए था।।

तुझमें उतर कर अगर पार करते,
तो मिलने का मजा कुछ और था।
डूबते तो हमेशा को तेरे हो जाते और,
पार होते तो जीने को यादों में ये सफर था।।

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३०.०७.२०२०

Wednesday 29 July 2020

सरयू और अयोध्या

काश हमारा तुम्हारा मिलन कुछ यूं हो जाए,
दिन रात के मिलने को जैसे संध्या हो जाए।

श्री राम की हम पर बस इतनी कृपा हो जाए,
तुम सरयू हो जाओ और हम अयोध्या हो जाएँ।

~अनुनाद/ आनन्द कनौजिया/२९.०७.२०२०

Sunday 19 July 2020

इश्क़ और तुम !

तुम पूर्ण रूप से काल्पनिक हो...... क्यूँकि जितनी पूर्ण (परफेक्ट) तुम हो उतना वास्तविक दुनिया में कोई नहीं हो सकता। वास्तविक दुनिया में अगर तुमको ढूंढा जाये तो तुम वह सर्वनाम हो जो थोड़ा-२ सबमें मिलता है किन्तु किसी एक में पूरा नहीं मिल सकता, कभी नहीं......... सम्भव ही नहीं। तुम जिस तरह मेरी सभी उम्मीदों पर खरा उतरते हो वो दैहिक परिधि में कैद व्यक्ति कभी कर ही नहीं सकता इसलिए तुम्हें कोई संज्ञा कहना उचित न होगा और तुम संज्ञा हो भी नहीं सकते। हर मिनट बदलने वाले मेरे मूड के अनुसार खुद को ढाल कर बिलकुल वैसे ही मेरे सामने खड़े हो जाना एक इंसान के लिए तो सोचना भी कठिन है। इसीलिए मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि तुम एक काल्पनिक चरित्र हो। 

चलो... भले ही तुम एक काल्पनिक चरित्र हो, लेकिन तुम हो........! दूर बहुत दूर..... गहरे बहुत गहरे.....  प्रकाश शून्य घने अन्धकार में..... मेरे मन के किसी कोने में। तुमसे इश्क़ है मुझे ! तुम्हे एक सम्बल की भाँति इस्तमाल करता हूँ मैं। जब भी कमजोर पड़ता हूँ, तेरा हाथ पकड़ लेता हूँ। तुम ऐसे तो नहीं होते हो लेकिन जब भी कोई विशेष परिस्थिति उत्पन्न होती है तो तुम बगल में खड़े होते हो, मेरा हाथ पकड़ मुस्कुराते हुए मुझे निहारते..... कितने सुन्दर लगते हो ! अत्यन्त खूबसूरत ! तुमसे नज़रें हटाना मुश्किल ! पूरा वातावरण सुगन्धित ! मद्धम सा प्रकाश चारों ओर और हल्का कुहासा बिखरा हुआ ! एक दैविक शान्ति, सुकून और ठंडक मिलती है तुम्हारे होने से। घने बादलों में हो तुम ! बारिश में हो तुम ! सभी ऋतुओं और सभी दिशाओं में हो तुम ! बांसुरी सी खनकती तुम्हारी आवाज एक अमृत रस सा घोलती है ! सारे दुःख दूर हो जाते हैं तुम्हारे शब्दों को सुनकर ! तुमसे प्यार बहुत है और प्यार के प्रदर्शन को मुझे किसी समय के अधीन नहीं रहना पड़ता। इस भौतिक संसार में जितनी भी वस्तुएँ मुझे प्रिय हैं उनका आनन्द तुम्हारे बगैर नहीं। कुछ इस कदर तुमसे इश्क़ है मुझे !

बहुत सी कविताएँ लिखीं ! अक्सर तुम पर लिखीं ! बहुतों ने प्रश्न किया - कौन हैं वो? मैं मुस्कुरा दिया ! और करता भी क्या ? क्यूँकि पूँछने वाले एक भौतिक पहचान की तलाश करते हैं और वो तो है ही नहीं ! हो भी नहीं सकती ! कारण मैं ऊपर ही लिख चुका हूँ। मेरे ख्याल से होना भी नहीं चाहिए। आसक्ति पैदा होती है। लालच जन्म लेता है। खोने का डर उत्पन्न होता है। वैसे इन भावों से दो-चार हुआ भी हूँ, तभी तो कविताएँ लिखीं हैं। बिना भावों को महसूस किये कोई कैसे लिख सकता है ? और इसी में तो रस मिलता है। आप कहीं खो से जाते हो। चूँकि तुम काल्पनिक हो और मेरे द्वारा जन्मी हो तो इस रस की खोज में मैं खुद में ही डूबा रहता हूँ। मंद-२ मुस्कुराता और तुम्हारी संगत का मजा लेता। 

ऊपर इतना कुछ लिखने के बाद अगर आपको इस अनुभव के करीब न ले जाऊँ तो लेखनी से अन्याय होगा। क्यूँकि लिखने के दौरान सारा रस तो मैनें खुद ले लिया। आप भी तो कुछ रसास्वादन करें। तो लीजिये जानिए कि ये तुम कौन हैं। ये तुम मेरा रेडियो है, चारबाग़ और वाराणसी रेलवे स्टेशन हैं, रेलगाड़ी है, डाक-खाना है, वाराणसी के घाट हैं, माँ गंगा हैं, बाबा हैं, बी एच यू है, नई किताब की खुशबू है, बारिश है, लैंप-पोस्ट है, मेरी पर्सनल लाइब्रेरी है, कलम है, डायरी है, मेरा गांव है, खेतों की नाली में सिंचाई हेतु बहता पानी है, सावन के झूले हैं, भोजपुरी प्रेम और विवाह गीत हैं, कजरी-चैती हैं, धान की रोपाई है, ज्येष्ठ की दुपहरी में यारों के संग बाग़ में बैठना है, गोसाईंगंज की चाट है, मड़हा नदी है, सरयू नदी है, भीटी पुल है, असगवां मोड़ है, किसी नई जगह जाने को लेकर होने वाली तैयारी है, जूते चुराते भैया की साली है, लाल जोड़े में दुल्हन है, विवाह गीत है, या फिर तुम हो। 

हर किसी का कोई तुम है ! जरूर है। तभी वो इस संसार में जीवित है और आनंदित है। जिस दिन ये तुम ख़त्म हो जायेगा, जीवन जीने का मतलब ख़त्म हो जायेगा। ये लेख शुरू जिस अंदाज़ में किया गया और अगर उस गति को उसकी सही दिशा में ले जाता तो अध्यात्म की ओर चला जाता। असली आनन्द वहीं पर है, जिसे सूरदास ने भोगा, रसखान ने भोगा, मीरा ने भोगा, महादेवी वर्मा ने भोगा। दिव्य अनुभूति, अलौकिक आनन्द, ऐसा रस जिसका पान हो जाये तो मोक्ष ही मिल जाये। मैं महसूस करता हूँ। आपमें से भी कुछ ने किया होगा। अगर किया है तो आप भी मेरी तरह पागल हैं। क्यूंकि आपको और मुझको इस दुनिया का आम आदमी नहीं समझ सकता। हमारी बातें उनके सर के ऊपर से जाएँगी। हम समझ से परे हैं। बहुत कुछ नहीं लिखूँगा। वरना लोग आधे में छोड़ कर निकल लेंगे और मेरे लिखने का लालच पूरा नहीं होगा। आखिरकार ये भी तो मेरा तुम है। 

और हाँ यदि आप इस चर्चा को बढ़ाना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में अपनी राय रखें। चौपाल वहीं लगेगी और दौर लम्बा चलेगा ! हम सब साथ चलेंगे, आनन्द की ओर........ 


~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१९.०७.२०२०