Sunday 19 July 2020

इश्क़ और तुम !

तुम पूर्ण रूप से काल्पनिक हो...... क्यूँकि जितनी पूर्ण (परफेक्ट) तुम हो उतना वास्तविक दुनिया में कोई नहीं हो सकता। वास्तविक दुनिया में अगर तुमको ढूंढा जाये तो तुम वह सर्वनाम हो जो थोड़ा-२ सबमें मिलता है किन्तु किसी एक में पूरा नहीं मिल सकता, कभी नहीं......... सम्भव ही नहीं। तुम जिस तरह मेरी सभी उम्मीदों पर खरा उतरते हो वो दैहिक परिधि में कैद व्यक्ति कभी कर ही नहीं सकता इसलिए तुम्हें कोई संज्ञा कहना उचित न होगा और तुम संज्ञा हो भी नहीं सकते। हर मिनट बदलने वाले मेरे मूड के अनुसार खुद को ढाल कर बिलकुल वैसे ही मेरे सामने खड़े हो जाना एक इंसान के लिए तो सोचना भी कठिन है। इसीलिए मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि तुम एक काल्पनिक चरित्र हो। 

चलो... भले ही तुम एक काल्पनिक चरित्र हो, लेकिन तुम हो........! दूर बहुत दूर..... गहरे बहुत गहरे.....  प्रकाश शून्य घने अन्धकार में..... मेरे मन के किसी कोने में। तुमसे इश्क़ है मुझे ! तुम्हे एक सम्बल की भाँति इस्तमाल करता हूँ मैं। जब भी कमजोर पड़ता हूँ, तेरा हाथ पकड़ लेता हूँ। तुम ऐसे तो नहीं होते हो लेकिन जब भी कोई विशेष परिस्थिति उत्पन्न होती है तो तुम बगल में खड़े होते हो, मेरा हाथ पकड़ मुस्कुराते हुए मुझे निहारते..... कितने सुन्दर लगते हो ! अत्यन्त खूबसूरत ! तुमसे नज़रें हटाना मुश्किल ! पूरा वातावरण सुगन्धित ! मद्धम सा प्रकाश चारों ओर और हल्का कुहासा बिखरा हुआ ! एक दैविक शान्ति, सुकून और ठंडक मिलती है तुम्हारे होने से। घने बादलों में हो तुम ! बारिश में हो तुम ! सभी ऋतुओं और सभी दिशाओं में हो तुम ! बांसुरी सी खनकती तुम्हारी आवाज एक अमृत रस सा घोलती है ! सारे दुःख दूर हो जाते हैं तुम्हारे शब्दों को सुनकर ! तुमसे प्यार बहुत है और प्यार के प्रदर्शन को मुझे किसी समय के अधीन नहीं रहना पड़ता। इस भौतिक संसार में जितनी भी वस्तुएँ मुझे प्रिय हैं उनका आनन्द तुम्हारे बगैर नहीं। कुछ इस कदर तुमसे इश्क़ है मुझे !

बहुत सी कविताएँ लिखीं ! अक्सर तुम पर लिखीं ! बहुतों ने प्रश्न किया - कौन हैं वो? मैं मुस्कुरा दिया ! और करता भी क्या ? क्यूँकि पूँछने वाले एक भौतिक पहचान की तलाश करते हैं और वो तो है ही नहीं ! हो भी नहीं सकती ! कारण मैं ऊपर ही लिख चुका हूँ। मेरे ख्याल से होना भी नहीं चाहिए। आसक्ति पैदा होती है। लालच जन्म लेता है। खोने का डर उत्पन्न होता है। वैसे इन भावों से दो-चार हुआ भी हूँ, तभी तो कविताएँ लिखीं हैं। बिना भावों को महसूस किये कोई कैसे लिख सकता है ? और इसी में तो रस मिलता है। आप कहीं खो से जाते हो। चूँकि तुम काल्पनिक हो और मेरे द्वारा जन्मी हो तो इस रस की खोज में मैं खुद में ही डूबा रहता हूँ। मंद-२ मुस्कुराता और तुम्हारी संगत का मजा लेता। 

ऊपर इतना कुछ लिखने के बाद अगर आपको इस अनुभव के करीब न ले जाऊँ तो लेखनी से अन्याय होगा। क्यूँकि लिखने के दौरान सारा रस तो मैनें खुद ले लिया। आप भी तो कुछ रसास्वादन करें। तो लीजिये जानिए कि ये तुम कौन हैं। ये तुम मेरा रेडियो है, चारबाग़ और वाराणसी रेलवे स्टेशन हैं, रेलगाड़ी है, डाक-खाना है, वाराणसी के घाट हैं, माँ गंगा हैं, बाबा हैं, बी एच यू है, नई किताब की खुशबू है, बारिश है, लैंप-पोस्ट है, मेरी पर्सनल लाइब्रेरी है, कलम है, डायरी है, मेरा गांव है, खेतों की नाली में सिंचाई हेतु बहता पानी है, सावन के झूले हैं, भोजपुरी प्रेम और विवाह गीत हैं, कजरी-चैती हैं, धान की रोपाई है, ज्येष्ठ की दुपहरी में यारों के संग बाग़ में बैठना है, गोसाईंगंज की चाट है, मड़हा नदी है, सरयू नदी है, भीटी पुल है, असगवां मोड़ है, किसी नई जगह जाने को लेकर होने वाली तैयारी है, जूते चुराते भैया की साली है, लाल जोड़े में दुल्हन है, विवाह गीत है, या फिर तुम हो। 

हर किसी का कोई तुम है ! जरूर है। तभी वो इस संसार में जीवित है और आनंदित है। जिस दिन ये तुम ख़त्म हो जायेगा, जीवन जीने का मतलब ख़त्म हो जायेगा। ये लेख शुरू जिस अंदाज़ में किया गया और अगर उस गति को उसकी सही दिशा में ले जाता तो अध्यात्म की ओर चला जाता। असली आनन्द वहीं पर है, जिसे सूरदास ने भोगा, रसखान ने भोगा, मीरा ने भोगा, महादेवी वर्मा ने भोगा। दिव्य अनुभूति, अलौकिक आनन्द, ऐसा रस जिसका पान हो जाये तो मोक्ष ही मिल जाये। मैं महसूस करता हूँ। आपमें से भी कुछ ने किया होगा। अगर किया है तो आप भी मेरी तरह पागल हैं। क्यूंकि आपको और मुझको इस दुनिया का आम आदमी नहीं समझ सकता। हमारी बातें उनके सर के ऊपर से जाएँगी। हम समझ से परे हैं। बहुत कुछ नहीं लिखूँगा। वरना लोग आधे में छोड़ कर निकल लेंगे और मेरे लिखने का लालच पूरा नहीं होगा। आखिरकार ये भी तो मेरा तुम है। 

और हाँ यदि आप इस चर्चा को बढ़ाना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में अपनी राय रखें। चौपाल वहीं लगेगी और दौर लम्बा चलेगा ! हम सब साथ चलेंगे, आनन्द की ओर........ 


~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१९.०७.२०२० 





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