ये सरयू में बाढ़ का पानी ऐसे है जैसे,
सामने तुम खड़े हो मुस्कुराते आँचल फैलाए।
ये किनारों की हरियाली जैसे रूपट्टे में कोई कढ़ाई
हम रहते खड़े एक टक तुझको बस निहारते ही जाएँ।।
लो फैला दी हमने बाहें अपनी अब,
बस तुम्हारा आकर गले लगना बाकी है।
अधूरे थे हम ये तुमको देखा तो जाना,
आ भी जाओ कि पूरा होना बाकी है।।
ये जो पुल है सरयू तुम पर
इसे बनना नही चाहिए था।
तुम्हारा साथ इतनी जल्दी बीत जाए,
हमें ये तो कभी नही चाहिए था।।
तुझमें उतर कर अगर पार करते,
तो मिलने का मजा कुछ और था।
डूबते तो हमेशा को तेरे हो जाते और,
पार होते तो जीने को यादों में ये सफर था।।
~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३०.०७.२०२०
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