Monday 31 August 2020

नज़र ..... (पहली नज़र का प्यार vs पहली नज़र से प्यार)

लिंक के ज़रिए दिया गया गीत मुझे एक ख़ास एहसास से रुबरू कराता है। ऐसा एहसास जो आप जी चुके हैं और जितनी बार ये गीत सुनते हैं आप पुनः उसी काल खंड में उसी ख़ास व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति के पास पहुँच जाते हैं। बिल्कुल सजीव हो जाता है वो पुराना वाला माहौल! जिससे आप प्यार करते हों और वह आपकी तरफ एक खास नज़र से देख रहा हो और आपके पता चलते ही वो नज़रें झुक जाएँ! आहा....... सोच कर ही एहसासों की तरंगे हिलोरे मारने लगती हैं। इस ख़ास समय में किसी का हस्तक्षेप पसंद नहीं, इसलिए ये गीत सुकून और एकांत में ही सुना जाता है।

एक दिन मैंने यूँ ही पूँछ लिया कि कोरोना के इस काल में जहाँ सब लोग मास्क लगाए हुए हैं तो क्या ऐसे समय में पहली नज़र वाला प्यार हो सकता है क्या? भिन्न-२ लोगों की भिन्न प्रतिक्रियाएँ! काफ़ी होनहार लोग हैं दिलों के खेल के मामले में! बड़ी उम्र की अपेक्षा छोटी उम्र के लोग़ ज़्यादा अनुभवी निकले! उनके उत्तरों ने तो सोचने पर मजबूर कर दिया और ये भी साबित कर दिया कि चेहरे की उतनी ज़रूरत नहीं, लोग नज़रों से भी काम चला ही लेंगे लेकिन प्यार करना नहीं छोड़ेंगे 😁 । बड़ी उम्र वाले शायद ज़िंदगी में आटा-दाल के भाव पर बहस करने में लगे हैं या प्यार करने के उपरान्त ९९ प्रतिशत केस में मिलने वाले बुरे परिणामों से त्रस्त हो चुके हैं और वो अब प्यार मोहब्बत पर बात ही नहीं करना चाहते😆।

ख़ैर........ प्यार मोहब्बत करते रहिए और लिंक में दिए गए गीत से काम चलाइए। तब तक मैं कोरोना की वैकसीन पता कर लेता हूँ। मास्क सहित चेहरे मुझे हज़म नही होते! चेहरा ज़रूरी है ......! 😜

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/३१.०८.२०२०

Saturday 29 August 2020

लापरवाह...!

हर कोई नहीं हो सकता लापरवाह......... ईश्वर प्रदत्त अनेकों मौलिक गुणों में से एक है ये! हज़ार नेमतों में से एक। किसी काम को जिम्मेदारी के साथ न करने वाले व्यक्ति को लापरवाह नहीं कहते। ऐसे व्यक्ति को आलसी कहते हैं। ऐसा व्यक्ति देर-सवेर काम कर ही लेता है। लापरवाह तो वो है जो अपना ही या दूसरे के द्वारा दिया कोई कार्य न करे और उसे कोई अफ़सोस भी न हो। चाहे इसके लिए उसे कितना ही नुकसान उठाना या गाली खाना पड़ जाये। ऐसे व्यक्ति की खाल मोटी होती है और सांसारिक लाज-शर्म आदि से ये व्यक्ति ऊपर उठ चुका होता है। जीवन उद्देश्य रहित तथा रस-हीन होता है। इनकी कोई इज्जत नहीं होती इसलिए बेइज्जती का भी कोई डर नहीं। ये किसी काम को न करने का कोई बहाना भी नहीं ढूढ़ते या यूँ कह लीजिये की कोई इन्हें काम देने की कोशिश भी नहीं करता तो बहाना बनाना भी क्यूँ! गाली भी एक समय के बाद मिलना बंद हो ही जाती है। लापरवाह व्यक्ति को गाली देने में कोई समय भी क्यों बर्बाद करे? जब होना-जाना कुछ नहीं! लापरवाह का शीर्षक आसानी से नहीं मिलता और इसे कमाने में समय और सतत लगन की जरुरत होती है। इसे सीखा नहीं जा सकता, ये इनबिल्ट होता है और ईशर का प्रसाद होता है जो किसी-२ व्यक्ति को ही प्राप्त होता है। बस थोड़ी सी देर लगती है कि दुनिया वाले आपकी लापरवाही की कला को कितनी देर में पहचानते हैं ! एक बार पहचान गए फिर उस लापरवाह व्यक्ति की ऐश......!

मैंने भी लापरवाह बनने की बहुत कोशिश की ! शुरुवात पढ़ाई से की लेकिन हो नहीं पाया। एक स्टेज तक आते-२ शर्म आ ही गयी और इज्जत बचाने के लिए पढ़ाई पूरी कर ली गई। फिर इसी इज्जत को बचाते-२ ग्रेजुएट, पोस्ट-ग्रेजुएट और फिर नौकरी में आ गए। यहाँ पर भी इज्जत बचाने के क्रम में काफी कुछ सीख गए और अब तो दुनिया को नचा दें......! लेकिन दिल में एक अफ़सोस हमेशा रह गया कि लापरवाह नहीं हो पाए😑 और एक निश्चिंत जीवन से वंचित हो गए। और अब तो लापरवाह बनने की कोशिशों से हार मान ली। लापरवाह व्यक्ति निश्चिंत रहता है और उसका दिल शांत रहता है। इसी वजह से कोई रोग-दोष भी नहीं लगता। हम जैसे लोग तो भविष्य की चिंता में ही खोये रहते हैं और आप तो जानते ही हैं कि चिंता चिता के समान होती है। धीरे-२ दुनिया भर के रोग घर कर जाते हैं।  

वैसे तो नहीं चाहता कि कोई मेरे पैर छुए और अक्सर लोगों को मना भी कर देता हूँ। किन्तु ३१ का हो गया हूँ और अब पीढ़ी बदलने के अगले पायदान पर हूँ। १५ -२० वर्ष के बच्चे अंकल भी बुला लेते हैं और प्रणाम भी कर लेते हैं। अच्छा तो नहीं लगता लेकिन कब तक! एक न एक दिन तो बढ़ती उम्र को स्वीकार तो करना ही पड़ेगा। कर भी रहा हूँ। अब कोई अभिवादन करे तो आशीर्वाद भी देना जरुरी है ! बहुत दिन से कुछ बढ़िया आशीर्वाद ढूंढ़ रहा था, सबसे अलग। आज से मस्त आशीर्वाद दूंगा- लापरवाह बनों! ईश्वर तुम्हें लापरवाह बनाएँ! शुरुवात में थोड़ा अजीब तो लगेगा, आशीर्वाद देने वाले और लेने वाले को भी, किन्तु जो समझदार होगा वो समझ जायेगा कि सामने वाले कितनी बड़ी दुआ दे गए। 

अब जिसको बुरा लगेगा वो जबरदस्ती सम्मान देने के चक्कर में न तो अंकल बोलेगा और न ही झुक कर पैर ही छुएगा (माता-पिता लोग पहले ही मना करके रखेंगे कि फलाँ अंकल आएँगे तो अभिवादन मत करना या फिर दूर से नमस्ते कर लेना या सामने ही मत आना।)! ये भी बढ़िया ही होगा। भीड़ में अंकल कहलाने से भी बच जायेंगे और उम्र भी जाहिर नहीं होगी😎। ख़्वामखाह भीड़ में किसी खूबसूरत मोहतरमा के सामने उम्र को लेकर भद्द पिट जाती है😏। मरद जात - इस लालच से कभी ऊपर नहीं उठ पायेगा😍! अब छुपाना क्या ? आप सब भी भाई लोग हैं और जो मोहतरमा ये पढ़ रहीं हो चाहे किसी भी उम्र वर्ग की हों, वो मुस्कुरा दें, बस इतना ही काफी! लिखना सफल! खैर........ !

थोड़ा गौर से सोचियेगा.......! लापरवाह होने के कितने फायदे हैं? जिम्मेदार व्यक्ति होने से जीवन भर दर्द मिलता है, ये जिम्मेदार लोग समझ सकते हैं। लापरवाह होने से कुछ समय तक परेशानी....... उसके बाद सब चंगा! बस एक बार लापरवाह का टैग मिल जाये। ये भी जिम्मेदार व्यक्ति समझ सकता है। अपने अगल बगल लापरवाह लोगों को ऐश करते देख आखिर में सबसे ज्यादा जिम्मेदार लोगों की ही सुलगती है। लापरवाह तो बेचारा कभी जान भी नहीं पाता की उसके पास एक ऐसी नेमत है जिसके लिए लोग तरस रहे हैं......! 😂


~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/२९.०८.२०२० 


फोटू: साभार इंटरनेट 

Monday 17 August 2020

अफ़सोस

पता नहीं क्यूँ मुझे मँहगा खाना खाने का हमेशा अफसोस हुआ😞 २-३ लोगों के खाने पर किसी रेस्टॉरेन्ट में २-३ हजार स्वाहा कर देना हमेशा बुरा लगा😣 भारत जैसे देश में २-३ हजार में एक औसत परिवार का महीने भर का राशन आ सकता है🤔 महँगे कपड़े पहन लो😎, मँहगी गाड़ी खरीद लो😍, मँहगी दारू पी लो🤗, मँहगा घर ले लो🤑 लेकिन मँहगा खाना हमेशा अपराध लगता है मुझे। कपड़े साल में कितने लेंगे आप (बहुत रईस हैं तो बात अलग है)? गाड़ी भी एक बार ले लिया तो ८-१० साल फुरसत ! दारू भी पारिवारिक आदमी/औरत कितना ही पियेगा। पर खाना तो रोज खाया जाता है। और प्रत्येक व्यक्ति की बिल्कुल बेसिक जरूरत है खाना, जो सबको मिलना ही चाहिए। दिखावे में मँहगा खा लिए, खिला दिए पर दिल में एक अफसोस हमेशा रहा। शायद ये अफसोस हमेशा रहेगा, जब तक भारत में भूख से मौतें होती रहेंगी। जब तक बच्चे कुपोषण का शिकार होते रहेंगें। 

बहुत कर लिए नौकरी के शुरुआती दिनों में खाने पर पैसा बर्बाद। अब नहीं करेंगें। ये मितव्ययिता खुद भी सीखना है और बच्चों में भी इनकोड करना है। नीलिमा जी तो चावल का एक दाना भी नही बेकार जाने देती हैं। घर का बना भोजन ही प्रसाद रूप में ग्रहण करेंगे। सौगंध ले लिए हैं......! हॉबी वाली लिस्ट में कुकिंग लिख लिए हैं और यूट्यूब पर कुकिंग क्लास भी ले रहे हैं। खुद बनाएँगे और नीलिमा जी को भी खिलाएँगे 😆। आखिर सौगंध जो लिए हैं। अब सौगंध हम लिए हैं तो उन्हें किचन में क्यों धकेले। इतने भी खुदगर्ज नहीं हम 😋

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१७.०८.२०२०

फोटू: साभार - इण्टरनेट

Saturday 15 August 2020

अलविदा_धोनी ......!

आपके इसी अंदाज के तो कायल हैं हम सब.... बिल्कुल अचानक और अलग निर्णय लेना और उसे सही साबित कर देना। आपने कभी किसी के बारे में नही सोचा कि लोग क्या सोचेंगे, क्या बाते बनाएँगे! आपने बहुत सारी यादें दी जिनमे कुछ विशेष हमेशा याद रहेंगी, जैसे-
*आपका हेलीकाप्टर शॉट याद रहेगा।
*मैदान पर बैटिंग के लिए आने की स्टाइल याद रहेगी।
*छक्के याद आएंगे।
*हेयर स्टाइल याद रहेगा।
*दिल में जो हारने का डर होता था उसे आपने ही खत्म किया।
*डीआरएस सिस्टम को धोनी रिव्यु सिस्टम कर देना याद रहेगा।
*बिना विकेटों को देखे थ्रो मारना तो कोई आपसे सीखे।
*क्रिकेट में आपने अपनी जो छाप छोड़ी उसने क्रिकेट की परिभाषा बदल दी। आप एक अध्याय नही पूरा उपन्यास हो।
*क्रिकेट माइंड गेम है, भारतीय परिदृश्य में ये आपने सत्यापित किया।
*सचिन, दादा और द्रविड़ की विदाई पर दुःख हुआ था पर आपके सन्यास लेने का दुःख नही हुआ। सचिन, दादा, द्रविड़ जैसे खिलाड़ी नहीं मिलेंगें, हमें इसका दुख था। पर आपने तो अपनी कप्तानी में किसी भी खिलाड़ी से मैच जिता दिया इससे जो भरोसा पैदा हुआ उससे दिल सदा मजबूत रहेगा। आपसे नए खिलाडी बहुत कुछ सीखेंगे।
*आपकी हाज़िर जवाबी भी याद आएगी।

छोटे शहर से इतना बड़ा क्रिकेटिंग ब्रेन निकलेगा और दुनिया पर छा जाएगा, पहले कभी किसी ने नही सोचा होगा। छोटे शहर के खिलाड़ियों के लिए तो आपने जो रोशनी दिखाई है वो लाजवाब है !

किसी रिटायरमेंट गेम का लालच नहीं। कोई बड़ा विदाई समारोह नहीं। चुपचाप आये और धमाके किए और चुपचाप चल दिये। मजा आ गया इस स्टाइल में। 

छा गए आप ! आज़ाद ख्यालों वाले कप्तान ने आजादी का दिन चुना रिटायर होने के लिए। मजा आ गया।

अलविदा कैप्टेन कूल .......! अलविदा! 

ईश्वर आपको सदैव स्वस्थ रखे और बिजली की गति नवाजे 😁
बांग्लादेशी खिलाड़ी की विकेट कीपिंग वाला रन आउट याद रहेगा।

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१५.०८.२०२०

स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाएँ 🇮🇳

समान शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य सुविधा, सबको रोजगार, भेद-भाव एवं ऊँच-नीच रहित समाज, विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी की कामना के साथ आप सभी को 74वें स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाएँ। तिरंगा यूँ ही फहराता रहे।

🇮🇳

#जय_हिंद 

आज़ाद तन और आज़ाद हो मन,
सच्चे अर्थों में तब आज़ाद वतन।

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१५.०८.२०२०

Friday 14 August 2020

शहर धुल गया...

तुम्हें आदत थी नए अनुभवों को लेने की,
होकर मलंग देश दुनिया घूमते रहने की।

हमें अपना शहर पसंद था सो यहीं रह गए,
अपनी आदतों के कारण हम दूर हो गए ।

लो हो गयी बारिश, ये शहर धुल गया!
आ जाओ, अब ये फिर से नया हो गया......🤗

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१४.०८.२०२०

Tuesday 11 August 2020

अलविदा राहत साहब

जहाँ पहुँच कर मिलती राहत,
वहाँ को रुख़सत हुए आप राहत!

यूँ बेबाक़ शब्दों में अब कौन गुनगुनाएगा ?
बेख़ौफ़ होकर सियासत को आँखें कौन दिखाएगा ?

सत्ता के आगे जहाँ रुंध जाते हैं गले सबके...!
हुकूमत को उसकी औक़ाद कौन दिखाएगा ?

माना कि तेरा जाना तय था, सबका है!
तेरे जाने से ख़ाली हुयी जगह अब कौन भरेगा?

तू गया मगर विरासत में इतना कुछ छोड़ गया .....
इस ख़ज़ाने को देख तू हमको सदा याद आएगा ........

जब भी खुद को अकेला और कमजोर पाएँगे....
तेरे शब्दों की ताक़त से खुद को मज़बूत पाएँगे!

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/११.०८.२०२०