मेरे दिल का सुकून हो तुम,
लंका, गोदौलिया और शायद अस्सी हो तुम।
गहरे घने अंधेरे के बीच एक रोशनी हो तुम,
गंगा के पानी में चमकने वाली चांदनी हो तुम।
मेरी भक्ति मेरी आस्था और मेरी श्रद्धा हो तुम,
संकट मोचन , दुर्गा कुंड या बाबा विश्वनाथ हो तुम।
तेरी यादों में खोया आवारा सा बहकता हूँ मैं,
बी एच यू कैंपस की वो गलियां हो तुम।
दिल की जलन का आराम हो तुम ,
शायद गंगा उस पार की रेत हो तुम।
नीरव में बजता एक मधुर संगीत हो तुम,
आधी रात को गंगा के पानी का कल-कल हो तुम।
पाकर तुम्हे खत्म मेरी हर इच्छा हो जाये,
पा लूँ मैं मोक्ष कि मणिकर्णिका हो तुम।
इन्ही घाटों पर गुजरी हुई कहानी हो तुम,
ताजगी का एहसास दिलाती वो पुरवी बयार हो तुम।
गुंजायमान कर दे अंतर्मन को वो नाद हो तुम,
मंत्रमुग्ध हो जाये दिल और दिमाग कि गंगा आरती हो तुम।
मेरी जान , मेरा इश्क़, मेरा ज़ुनून हो तुम ,
कुछ और नही बस बनारस हो तुम !
बनारस हो तुम।
No comments:
Post a Comment