Friday, 17 July 2020

चुल्ल :)

चुल्ल सबको होती है, किसी न किसी कार्य/चीज़ की! इन क्रियाओं/चीजों में विविधता होती है! ये चुल्ल सनक का लाइट वाला संस्करण है। चुल्ल और सनक को एक नज़र से देखने की भूल कदापि न करें। उदाहरण स्वरुप यदि आपको अपडेट रहने की चुल्ल हो और आपको पता चले कि आपके आधार में गलत नंबर अपडेट हो गया है तो आपकी नींद तब तक उड़ जाएगी जब तक सही नंबर अपडेट न हो जाए। कुछ लोगों को फास्टैग लेने की चुल्ल होती है। समय से बिल मिल जाए और जमा भी हो जाए, वैसे तो ये अच्छी आदत है किन्तु बिल अगर एक दिन देर से मिले से मिले और व्यक्ति परेशान हो जाए तो ये परेशान होने की आदत भी उस व्यक्ति की चुल्ल ही कहलाएगी। उम्र बूढी हो जाएगी लेकिन चुल्ल नहीं जाएगी। जवानी तक तो ठीक है किन्तु बुढ़ापे में ये चुल्ल आपको नई जनरेशन से अच्छी खासी-गाली खिलवा सकती है। इसलिए सावधान रहें और अपनी चुल्ल अपने तक ही रखें। 

मुझे भी है चुल्ल, ऑनलाइन कुछ भी करने की! कुछ  भी..... चाहे नौकरी का फॉर्म भरना हो या एडमिशन का, ऑनलाइन शॉपिंग, बैंकिंग, या कुछ और! बस कोई इतना कह दे की इस काम के लिए वहाँ जाने की क्या जरुरत, ये तो ऑनलाइन भी हो जायेगा। बस साइट खोलिये और आवेदन कर दीजिए। मेरी बाँछें खिल जाती है। सामने वाला दुनिया का सबसे ज्ञानी आदमी प्रतीत होने लगता है और उसी पल से मैं उसका सुपर फैन। इसी चुल्ल की वजह से मैं ऑनलाइन का इतना अभ्यस्त हो गया कि मुझे ऑनलाइन की लत हो गई और कुछ भी याद आता है, मैं उस चीज की खोज ऑनलाइन करने लगता हूँ। धीरे-२ ये आदत मेरे जीवन का बहुत अधिक समय बर्बाद करने लगी। ऑनलाइन फॉर्म भरने की चुल्ल तो इतनी है कि मैं कोई भी फॉर्म भर देता हूँ और फीस भी भर देता हूँ। फॉर्म भरने को बाद एक उपलब्धि वाली फीलिंग आती है और अपार ख़ुशी का अनुभव होता है किन्तु थोड़ी देर बाद मैं सोचता हूँ कि ये मैनें क्यों भरा? इसकी जरुरत क्या थी? फ़ालतू का समय और पैसा दोनों बर्बाद हो गया। हालत इतनी बिगड़ गई कि मैं बेवजह व्यस्त रहने लगा और आर्थिक नुक्सान की वजह से परेशान रहने लगा। फिर बहुत विचार करने के बाद इस आदत को नियंत्रण में लाने के लिए मैं पुनः डायरी पर आ गया हूँ। दिन भर जो भी याद आए उसे एक जगह नोट कर लेता हूँ और शाम को एक तय समय लेकर एक बड़े सीमित समय में सब निपटा देता हूँ। लिखने से ये होता है कि शाम तक गैर जरुरी चीजें छंट जाती है और इस वजह से समय नहीं बर्बाद होता।

२०१४ के बाद से देश डिजिटल होने लगा। अभिलेखों को ऑनलाइन अपडेट करने की बाढ़ आ गई। स्मार्ट फ़ोन का दौर भी पीक पर था। दुनिया भर के मोबाइल एप्लीकेशन की बाढ़ आ गई। जवान व्यक्ति एप्लीकेशन डाउनलोड करने में लग गए और अधेड़/बूढ़े होने को अशिक्षित और असहाय समझने लगे। जो जितना बढ़िया मोबाइल चलाना जानता वो उतना बड़ा विद्वान प्रतीत होने लगा और विद्वान व्यक्ति मूर्ख लगने लगे। २०-२१ साल घिस-घिस कर कठोर अनुशासन का पालन कर पढ़ने वालों को तो चक्कर ही आ गया।  खैर.... डिजिटल इनफार्मेशन क्राउडिंग इतनी बढ़ी कि पुनः सभी को चक्कर आने लगा। सही-गलत में अंतर करना मुश्किल हो गया। ऐसे में पुनः वास्तविक विद्वानों की जरुरत पड़ने लगी और ऐसे विद्वानों ने राहत की सांस ली। अब वो पुनः अपनी विद्वता झाड़ने की चुल्ल मिटा सकते हैं। 

ये पोस्ट मैंने १६ से ३० वर्ष के नौजवानों को डिजिटल इनफार्मेशन क्राउडिंग से बचाने के लिए लिखी है क्यूंकि मैनें अभी-२ ३१ वर्ष पूरे किये हैं। अपने से बड़ी उम्र वालों को समझाने की गलती मैं कर नहीं सकता और खुद से छोटे व्यक्तियों को सँभालने की मेरी नैतिक जिम्मेदारी बनती है, अब चाहे वो समझें या हवा में जाने दें। जोर मैं उन पर भी नहीं डाल सकता। लेकिन आज के दौर में डिजिटल  क्रांति में संयम बरतने की बहुत जरुरत है। मैं तो आज की जनरेशन को सलाम करता हूँ कि वे पढ़-लिख कर अपनी पढ़ाई पूरी कर ले रहे हैं वरना मैं तो इस सूचना क्रांति और व्हाट्सप्प वाले ज़माने में पास भी न हो पाता। दिमाग को केंद्रित करने के लिए जितने कम ताम-झाम हो उतना अच्छा। 

वैसे अधेड़ उम्र के आदमियों को भी सलाह देना चाहूंगा कि वो कितना भी व्यस्त हो और बगल से कोई लड़की/महिला गुज़र जाये तो  धीरे से नज़रें उठा कर ताकना और दूसरे आदमी की तरफ देखकर मुस्कुराने की उनकी इस आदत को भी चुल्ल ही कहा जायेगा। बुरा तो कुछ नहीं मगर उम्र का लिहाज़ रखने की सलाह जरूर देना चाहूंगा :) बाकी चुहल का मजा तो अलग है ही....... इसके बिना जीवन नीरस हो जायेगा।

आपको कौन सी चुल्ल है ;) 
बताइयेगा जरूर :) 
ईमानदारी से ;)

~अनुनाद/आनन्द कनौजिया/१७.०७.२०२० 

No comments:

Post a Comment