ढलती शाम
और ये चौराहा…
दिल में बेचैनी
मन में उम्मीद भी !
शाम ढल गयी
तुम अभी आए नहीं…
दिल घबराए कि
तुम आओगे या नहीं !
उम्मीद ये है कि
तुम अगर आए कभी…
चौराहे पर हूँ ताकता खड़ा कि
यहाँ से तो गुज़रोगे ही !
ढलती शाम
और ये चौराहा…
दिल में बेचैनी
मन में उम्मीद भी !
©️®️चौराहा और ढलती शाम/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०४.०१.२०२२
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