Tuesday, 4 January 2022

चौराहा और ढलती शाम!

ढलती शाम 
और ये चौराहा…
दिल में बेचैनी 
मन में उम्मीद भी !

शाम ढल गयी 
तुम अभी आए नहीं…
दिल घबराए कि
तुम आओगे या नहीं !

उम्मीद ये है कि 
तुम अगर आए कभी…
चौराहे पर हूँ ताकता खड़ा कि
यहाँ से तो गुज़रोगे ही !

ढलती शाम 
और ये चौराहा…
दिल में बेचैनी 
मन में उम्मीद भी !

©️®️चौराहा और ढलती शाम/अनुनाद/आनन्द कनौजिया/०४.०१.२०२२

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