भटकना नसीब में था
इसीलिए
तुमसे बिछड़ गए…..!
आवारगी फ़ितरत न थी
मगर
घर से निकल पड़े।
एक शहर से दूसरे घूमे बहुत
मगर
कहीं ठहरना न हुवा….!
लोग बहुत जानते है यहाँ हमें
मगर
कोई अपना नहीं….!
ठहरना चाहा बहुत हमने
मगर
कहीं तुम मिले ही नहीं….!
रास्तों से दोस्ती कर ली
और
आशियाँ कोई बनाया नहीं….!
भटकना नसीब में था
इसीलिए
फिर दिल कहीं लगा ही नही…..!
©️®️बिछड़ गए/अनुनाद/आनन्द/२१.०७.२०२३
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