Saturday, 14 September 2019

हिन्दी...

हिन्दी दिवस पर क्या लिखूँ
हिन्दी में ही तो लिखता हूँ
हिन्दी को मनाऊँ कैसे
मैं हिन्दी से परे कब हूँ।

हिन्दी उच्चारण
हिन्दी आचरण
हिन्दी से हो
सभी दर्द निवारण।

हिन्दी में करते बात
मेरे ये दो नयन
प्रेम हो विरह हो
चाहे हो तुमसे मिलन।

हँसना-रोना
रूठना - मानना
ख़ुशी या फिर ग़ुस्सा होना
है तो सब हिन्दी ही।

तेरा रूप सुनहरा हिन्दी
तेरी आँखें काली हिन्दी
माथे पर वो बिंदी हिन्दी
उलझे हुए बालों में हिन्दी।

तुझको लिखी चिट्ठी हिन्दी
न मिला जो जवाब हिन्दी
तुम भूल गए तो हिन्दी
मुझे याद आए तो हिन्दी।

मुझमें हिन्दी
मुझसे हिन्दी
मैं जिससे निर्मित
वो है हिन्दी।

मेरे लिए तो
सभी दिवस है हिन्दी।

Tuesday, 10 September 2019

इकतरफ़ा इश्क़...

मत पूंछ वो लम्हा जब सब महफ़िल से चलने को हुए थे,
तेरी एक झलक पाने को किसी ने मुड़कर हज़ार बार देखा था।

तुम मंज़िलों की खोज में गौर नही कर पाए,
और किसी ने गौर करते-२ तुझमें अपनी मंज़िल ढूंढ़ ली थी।

तुम सुलझाते रहे उलझने जीवन की इस कदर,
और किसी ने तुम्हारे उलझे बालों में सुलझनें ढूंढ ली थी।

हर कदम पर तेरे बगल में एक शख्श खड़ा तुझे देखता रहा,
तुम चीजों में खुशी ढूढ़ते रहे और किसी ने तुझ में खुशी ढूंढ ली थी।

तुमने यूँ ही राह में चलते-2 संभलने को हाथ पकड़ लिए थे,
तुम हमसफर थे पल भर के और किसी ने गुस्ताख़ी उम्र भर की कर ली थी।

वैसे तो भरोसा खूब है इन रेलों पर कि कुछ पल और मिल जाएंगे,
मगर तेरी ट्रैन के समय से आने पर किसी को नाराज़गी बहुत हो रही थी।

तेरी बक-बक भी बहुत खास हुआ करती थी उसके लिए ,
तुम्हारे होठों पर आ गया किसी गैर का नाम और किसी ने अपने होंठ सिल लिए थे।

चाहत थी संग उड़ने की मगर वो अपनी हाथों की लकीरों में कैद जो ठहरा,
कत्ल करने को खुद को किसी ने खुद से दुश्मनी कर ली थी।

Friday, 6 September 2019

दौर...

मेरी ख़ामोशी का वो ग़लत मतलब निकाल बैठे,
हमारी शराफ़त और तरीक़ों को कमज़ोरी समझ बैठे।

माना कि वो दौर उनका था और वो माहिर हैं इस खेल के,
मगर समझा लें वो ख़ुद को कि हम खिलाड़ी हैं इस दौर के।

पर्दा तो अभी उठा ही है यारों और मंच सज़ा है अभी,
उनसे कह दो सब्र रखें खेल तो बस शुरू हुआ है अभी।

पृथ्वी, चाँद, और मंगल से भी आगे हम पहुचें हैं अब,
तुम्हारे पुराने तरीक़ों को कह चुके हैं हम अलविदा अब।

कह कर हमें नौसिखिया तुम अपनी खिसियाहट छुपाते हो,
कौन पूछता है अब तुम्हें, छोड़ दो, तुम किसे उल्लू बनाते हो।

बैठो दर्शक दीर्घा में अब तुम केवल कुर्सी की शोभा बढ़ाओ,
ग्रहण करो अभिवादन हमारा और इज़्ज़त से अपने घर जाओ।

ये दौर यूँ ही नही बदलते, बहुत कुछ भूलना होता है इन्हें भी!
पल-२ की ख़बर कैसे रखते ये, जीना होता है सदियाँ इन्हें भी।

Saturday, 31 August 2019

ख्यालों-बेख़यालों में....

रात की इस बेख़याली में इक ख़्याल ऐसा आ जाए....
बंद आँखों में नींद आए न आए, बस चेहरा तेरा आ जाए ।

इस लम्बी और सुनसान सड़क पर इक मोड़ ऐसा आ जाए....
घूमने को जब भी मैं तनहा निकलूँ और तुझसे मुलाक़ात हो जाए ।

ज़िंदगी तो काटनी ही है, कट रही है और कट ही जाएगी....
अगर तेरे साथ कट जाए तो बस जीने में मज़ा ही आ जाए ।

रंगों को बदलते ख़ूब देखा है और धोखे भी हमने हज़ार खाए....
इक साथ तेरा सच्चा था अब और किस पर भरोसा किया जाए।

खुदा करे काश कि इन ग़ैरों में कोई अपना नज़र आ जाए....
चेहरों की इस बेतहाशा भीड़ में चेहरा तेरा नज़र आ जाए ।

आओ मिलकर इन घड़ी की सुइयों को उलटा घुमाया जाए....
आगे तो जुदाई है कि उस पुराने हसीन दौर में फिर से वापस चला जाए ।

Friday, 23 August 2019

कशमकश !

आज सुबह उठा तो फिर एक अफ़सोस के साथ,
कुछ याद नही, न जाने किस नशे में गुज़र गयी कल की शाम भी !

एक हम है जो दिल के ज़रा मासूम हैं ,
चालाकी तो सीखी लेकिन, दुनियादारी में कल हम फिर पीछे रह गए !

मिलना जुलना तो एक आम बात होती थी पहले,
उनका यूँ मुस्कुराना आम तो नही, कल की मुलाक़ात के मायने हज़ार होंगे !

रोज़ कुछ नया सीखने की ख़्वाहिश रखता हूँ,
मैं हार जाता हूँ फिर भी, खेल पुराना ये और इसमें पैंतरे अधिक है ।

मदद को लोग साथ हज़ार हैं मेरे,
हाथ जुड़ते नही मेरे, और लोग मुझसे ख़्वाहिशें ख़ूब रखते हैं !

कई बार गिरा हूँ मैं इस दौड़ में,
मैं डूबता हूँ क्यूँकि ज़िंदा हूँ, लाश होता तो ये नौबत ही न आती।

बस ये कहकर मैं ख़ुद को थाम लेता हूँ,
तू पीछे ही सही पर कोई ग़म नही, तेरे तो ख़ुद के नाम में आनन्द बहुत है ।

Friday, 16 August 2019

बात वही...

दौर बदला, सोच बदली ,
आनन्द वही, बस परिस्थितियाँ बदलीं।

तासीर वही, मिज़ाज नए ,
कहानी वही, बस काग़ज़ नए।

भीड़ नयी, जगह नयी, 
लेकर चले, सभी दोस्त पुराने वही।

रास्ते नापे, मंज़िलें भी पायी,
आँखों में लेकिन, पुराने सपने वही।

इजाज़त हो, तो कह दूँ,
दिल में दबी, पुरानी बात वही।

Friday, 9 August 2019

आज तक...

सड़क सी है ये जिंदगी अपनी,
न जाने कितनों से वास्ता आज तक।
गुजरती भीड़ हज़ारों की मगर,
सड़क फिर भी तन्हा है आज तक।

बीती इस उम्र में न जाने,
मुलाकात कितनों से हुयी आज तक।
जीवन के इस सफर में बहुत मिले
पल-पल के हमसफ़र आज तक।

काम जब तक, ये साथ तब तक,
मतलबों के सब साथी आज तक।
अब तो बहरूपिया शब्द बेमतलब है
न जाने कितने रूप लिए आज तक।

तुम जो मिले चेहरे पर लेकर मुस्कान,
देखी नही ऐसी चासनी आज तक।
सामने तुम थी और हाथों में ट्रे चाय की थी,
रिश्ता ऐसा जुड़ा कि ऐसा फेविकॉल नही बना आज तक।

तन्हाई की क्या बिसात थी तुम्हारे आने के बाद,
पल भर सोचने को भी नही मिला आज तक।
बेमतलब लड़ाइयों का सिलसिला जो चला,
खुदा कसम, बदस्तूर जारी है आज तक।