Wednesday, 5 February 2020

तेरा साथ ही आनन्द...

आपकी बातों में छुपी शैतानियाँ समझते हुए भी वो अनजान बनते हों...
जब समझाओ तो ज्यादा होशियार न बनो, ये कहकर बातों को टाल देते हों...
इससे ज्यादा कोई रिश्ता क्या मुकम्मल होगा, कि दोनों दिल एक ही मुकाम पर हैं...
तू बस उनके साथ सफ़र को जी, इससे ज्यादा की क्यों उम्मीद करते हो...

Tuesday, 4 February 2020

ज्ञान !

ज्ञान बहुत है सबके पास तुम्हें अब बहुत मिलेगा, तू लेता रह,
बुरे वक़्त में ऊँट पर बैठे बौने को भी लंगड़ी कुतिया काट लेती है ।

सब्र रख और मुस्कुराकर लोगों के हाव भाव देख, ये नयी बात नही, 
जिन्हें कभी बोलना तुमने सिखाया था, उनकी भी बात सुननी पड़ती है।

तूफ़ान है अभी दरिया में बहुत तेज, थम जा ज़रा,
मौसम साथ न दे तो नाव क़रीने से पार करनी पड़ती है।

दिन को सूरज यूँ ही नसीब नही होता, तुमको पता होगा,
उसे भी ये काली अंधेरी रात पूरी इंतज़ार में बितानी पड़ती है ।

इश्क़ बनारस ...

तुम्हारे सर पे पल्लू और बंद आँखो से नज़रें हटाना मुश्किल है.......
तुम मिले भी तो बाबा के दरबार में जहां रुकना भी मुमकिन नही होता।

सुनो, पीपे के पुल के शोर में कुछ भी सुन पाना बड़ा मुश्किल है......
और बिना समझे तुमको ताकना कि तुम्हारा बोलना बंद नही होता । 

बनारस की नशीली हवाओं में सीधे खड़े रहना भी मुश्किल है......
उस पर तुम्हारे हाथों से मिली ठंडई का क़हर कम नही होता । 

मिज़ाज अक्खड़ बनारसिया कि कदमों का ठहरना ज़रा मुश्किल है.....
उस पर तुम्हारे सोलह सोमवार का व्रत का असर कम नही होता ।  

कुछ मुलाक़ातों बातों में कोई कहानी बनाना बड़ा मुश्किल है......
इस तरह बिन बताए गोदौलिया की भीड़ में कोई साथ नही छोड़ता।

अब तो यहाँ किनारों पर एक एक पल भी काटना मुश्किल है......
ये वही अस्सी घाट ही है जहां दिन का भी पता नही चलता।

बीतती शाम के साथ दिल को सम्भालना बड़ा मुश्किल है......
अब तो गंगा आरती पर भी उनका आना जाना नही होता ।

अब तो गंगा किनारे यूँ ही तनहा भटकना भी मुश्किल हैं......
तुम्हारी यादों का कारवाँ कभी साथ ही नही छोड़ता।

Thursday, 16 January 2020

मोहब्बत और तुम !

क्या ख़ाक असर होगा अल्फ़ाज़ों के समंदर में,
दिलों की बात समझने को आंखों के ये इशारे ही काफ़ी है....

तुमने कभी देखकर यूँ ही मुस्करा दिया था,
और हम आज तक तेरी मुस्कान का मतलब ढूँढ रहे हैं.....

उनको शिकायत है कि हम उन पर गौर नही करते !
गौर करने वाली बात है कि शिकायत भी हमसे ही......

तुम तो मेरे लिए यूँ ही बेवजह बेहद ख़ूबसूरत थे....
तुमको या दूसरों को मैं इसकी वजह क्या बताऊँ ?

ये जो मेरे हिस्से में रात सुहानी है....
तेरी ही तो निशानी है!

वो दुवाओं में भी अपना हुस्न बरकरार माँगती है , 
हमसे दीवानगी वो कुछ इस क़दर बयाँ करती है। 

मदहोश करने को इन तरंगों में वेग कितना है.... 
मुझमें उठती है जो तेरी उँगलियों के छूने के अन्दाज़ से।

काश तुम भी इस बारिश सी होती 
तुम बरसते और हम भीगते !
और ये सिलसिला यूँ ही चलता रहता...

सुना है बेमौसम बरसात भी होती है,
तुम भी मिल लिया करो.... कभी... बेवजह....!

बरस बीते, और अब तो तेरे दिए सभी घाव भी भर गए हैं.....!
लेकिन कमबख़्त ये पुरवी बयार..... काफ़ी है.... तेरी याद दिलाने को !

मैं बनारस !

जब हमने बनारस को छोड़ा था,
एक हिस्सा अपना वहीं छोड़ा था !
निकल पड़े थे निभाने दुनिया की रवायतों को,
शरीर साथ था मगर आत्मा को वहीं छोड़ा था।

पहले कुछ और ही आनंद था ये जानने वाले ये बताते हैं 
हम भी पूछने वालों को अपनी कहनी कुछ यूँ सुनाते हैं , 
जन्म तो कहीं और ही हुवा था हमारा ये सब जानते हैं,
पर पुनर्जन्म का स्थान तो सबको हम बनारस बताते हैं  ।

किरदार क्या हूँ मैं, कैसे बयाँ करें तुमको, हम नही जानते हैं,
एक नाम मिला था आनन्द हमें और सब इसी से पहचानते हैं,
किसी ने पूछ लिया कि तुम्हारे बारे में कुछ और जानना चाहते हैं 
बनारस के पहले या बाद? जीवन के यही दो हम अध्याय बताते हैं। 

सर्द इश्क़...

रंग कई रूप कई
रोज़ कोई कहानी नई।

दिन वही रात वही 
ज़िंदगी वही तारीख़ नई।

शख़्स वही प्यार वही 
कहाँ से दूँ दलीलें नई?

उन्नीस वही बीस वही 
उन्नीस-बीस की बात नई।

गर्मी वही सर्दी वही 
सर्द इश्क़ में गर्मी नई।

समय का ताना-बाना ...

मानवीय प्रकृति
अजीब सी!
स्मृतियों में उलझा 
बुनता है भविष्य
वर्तमान में 
और 
खबर नही 
वर्तमान की!